लोक संस्कृति में जीवन का रूप, रंग और ढंग.... | डॉ. श्रीराम परिहार
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- Опубліковано 3 жов 2024
- लोक संस्कृति में जीवन दर्शन - लोक ने जो देखा, पहना, जाना उसको अपनी संस्कृति से जोड़ लिया। उत्सव त्यौहार के भी अपने अपने अर्थ हैं ये क्यूँ, कैसे व किस कारण से मनाये जाने लगे इस विडिओ से समझा जा सकता है। लोक संस्कृति, लोक परम्परा, लोक गीत, लोकोत्सव एवं भाषा (बोली) ये प्रत्येक समाज का स्वाभिमान है, जिसे आने वाली पीढ़ी तक भी पहुँचना चाहिये, हमारे पूर्वजों के प्रयासों से हम हमारी सभ्यता को जान पायें है, पहचान एवं समझ पाए हैं, हमारा भी दायित्व है की इस महान सभ्यता की निरंतरता लुप्त होने से बचाएं।
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