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What it means to be a Kinnar | Impact stories talks with Laxmi Narayan Tripathi

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  • Опубліковано 1 чер 2023
  • In a country of diversity and various religious beliefs are we really empathic and respectful to each other.
    What is means to be a transwomen, truth and history of our culture is revealed in this candid interview with Laxmi Narayan Tripathi
    #transgender #kinnar #hijrah #lgbt #lgbtq

КОМЕНТАРІ • 27

  • @RamKumar-tm2jb
    @RamKumar-tm2jb 4 місяці тому +2

    बहुत ही सुन्दर है आपकी बातें ❤🙏🏳️‍🌈

  • @PrateekGoyal-kl9fc
    @PrateekGoyal-kl9fc 5 місяців тому +1

  • @vijaygopal1723
    @vijaygopal1723 2 місяці тому

    Nice 😊

  • @ManpreetSingh-bt4nb
    @ManpreetSingh-bt4nb Рік тому +1

    nice one Ankit

  • @bhavikapatile3089
    @bhavikapatile3089 Рік тому +1

    Ankit nice work

  • @chandrikadhulekar8638
    @chandrikadhulekar8638 Рік тому +1

    Kinnar,phr Anuraag,phr Delhi Parking walla,phr Priyank!what a long wait! inko kitna make up krna parta hai ldki dikne Mei,Priyank toh bina makeup ldki lagta hai!

    • @arpitpandey5793
      @arpitpandey5793 Рік тому +1

      Aapki soch dekhkar aap par dya aa rhi eshwar aapko Gyan de

    • @chandrikadhulekar8638
      @chandrikadhulekar8638 Рік тому

      @@arpitpandey5793 haa, ishwar ne mujhe gyaan diya, ankit chauhan ne jab Priyank ko pucha, ab woh kaunse stage me hai? Priyank ne kaha ki krke dikhaunga, nahi bolega. Phir Priyank ne boldi ishaara se"theher jaa". 5 saal older Priyank ko woh ab ye advice dega. Jee nahi! Theher Jaa ek music video ka naam hai jiska Director Daanish ab Priyank ke sath kaam music video kar rha hai. Priyank ab Ajay Devgn ke camp me aa gaya, mukesh chabra ko bottle me utar ke! Ishwaar ka gyaan ye hai

    • @chandrikadhulekar8638
      @chandrikadhulekar8638 Рік тому

      @@arpitpandey5793 Kinnar ko 2 kilo ka make up krne se better hai, kinner dinner naa kre oar weight loss krle.

    • @chandrikadhulekar8638
      @chandrikadhulekar8638 Рік тому

      Ankit, Priyank toh sirf Deepna ka naam le raha hai par sach toh ye hai usne Mukesh Chabra, dilli ka Punjabi ko bottle mei utar rakha hai, toh itna kaam mil rha hai, mukesh chabra ke chinku pinku ne bhola ki casting kri Jo ab Priyank ka gaana kar rha hai.

    • @arpitpandey5793
      @arpitpandey5793 Рік тому

      @@chandrikadhulekar8638 aap kisi ko judge karne wale hote kon hai

  • @aurangabadtransgenderfondt7417
    @aurangabadtransgenderfondt7417 2 місяці тому

    Tata institute in zharkhand chattisgarh me 25 transgender community job krte

  • @illusion6238
    @illusion6238 6 місяців тому

    प्रश्न १ - क्या वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह सत्य है कि मर्यादा पुरुषोत्तम ‘श्री राम’ १४ वर्ष के वनवास के कारण महल को छोड़कर वन को गए तब उनके पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए । और वन में श्री राम ने सभी पुरुष-स्त्री को जाने को कहा । जिससे सभी पुरुष-स्त्री तो आ गए किन्तु ‘नपुंसक’ (जो न स्त्री थे न पुरुष) नहीं आए और उन ‘नपुंसकों’ ने वन में १४ वर्ष तक ‘श्री राम’ की प्रतीक्षा की और जब ‘श्री राम’ वनवास पुरा करके वापस आए तो उन ‘नपुंसकों’ की ‘श्री राम’ के प्रति इतनी भक्ति और प्रेम देखकर उन्हें ‘श्री राम’ ने वरदान दिया कि तुम सदैव समाज में पूजित होंगे?
    उत्तर - नहीं, बिल्कुल भी नहीं ! वाल्मीकी रामायण में ऐसी किसी भी घटना का उल्लेख नहीं है अपितु वाल्मीकी रामायण में तो यह बतलाया गया है कि श्री राम के पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए थे, और श्री राम ने कभी भी यह नहीं कहा था कि सभी स्त्री और पुरुष वापस अयोध्यानगरी चले जाए।
    वा॰रा॰ के अनुसार तो श्री राम किसी भी अयोध्यावासी को बिना बतलाए ही रात्रि में लक्ष्मण और सीता के साथ सुमंत्र के रथ पर बैठ कर तमसा नदी के उस पार चले गए थे ।
    यथैते नियमं पौराः कुर्वन्त्यस्मन्निवर्तने ।
    अपि प्राणान् न्यसिष्यन्ति न तु त्यक्ष्यन्ति निश्चयम् ॥२०॥
    यावदेव तु संसुप्तास्तावदेव वयं लघु ।
    रथमारुह्य गच्छामः पन्थानमकुतोभयम् ॥२१॥
    अयं युक्तो महाबाहो रथस्ते रथिनां वर ।
    त्वरयाऽऽरोह भद्रं ते ससीतः सहलक्ष्मणः ॥२७॥
    तं स्यन्दनमधिष्ठाय राघवः सपरिच्छदः ।
    शीघ्रनामाकुलावर्ती तमसामतरन्नदीम् ॥२८॥
    वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४६
    और वा॰रा॰ के अनुसार सभी अयोध्यावासी भी वन से आ गए थे, तो वहाॅं नपुंसकों भी नहीं रहे होंगे ( क्योंकी श्रीराम ने पुरुष स्त्री को जानें को ही नहीं कहा था) -
    रथमार्गानुसारेण न्यवर्तन्त मनस्विनः ।
    किमिदं किं करिष्यामो दैवेनोपहता इति ॥१४॥
    तदा यथागतेनैव मार्गेण क्लान्तचेतसः ।
    अयोध्यामगमन् सर्वे पुरीं व्यथितसज्जनाम् ॥१५॥
    वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४७
    और वा॰रा॰ के युद्धकाण्ड के सर्ग १२७ और १२८ में (जब १४ वर्ष का वनवास पुरा करके अयोध्या नगरी वापस आए) भी कहीं पर भी यह नहीं बतलाया गया है कि श्री राम किसी ने नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था ।
    यदि हम तुलसीदास जी की रामचरितमानस में भी यह नपुंसक वाली घटना देखते हैं तो वहाॅं पर भी ऐसी कोई भी घटना का वर्णन नहीं मिलता है वहां भी यही कहा गया है कि श्री राम बिना अयोध्यावासी को बतलाए ही रात्रि में तमसा नदी के उस पार चले गए थे और सभी अयोध्यावासी वापस को अयोध्या नगरी आ गए थे -
    जबहिं जाम जुग जामिनि बीती । राम सचिव सन कहेउ सप्रीती ।।
    खोज मारि रथु हाँकहु ताता । आन उपायँ बनिहि नहिं बाता ।।
    रामच॰ अयो॰का॰ दो॰ ८४ चौ॰ ४
    राम लखन सिय जान चढ़ि संभु चरन सिरु नाइ ।
    सचिवँ चलायउ तुरत रथु इत उत खोज दुराइ ।।८५।।
    रामच॰अयो॰दो॰८५
    इसके अतिरिक्त आध्यात्म रामायण, महाभारत, विष्णु, पद्म, गरुड़, अग्नि आदि पुराण में भी ‘श्री राम और नपुंसकों’ की इस घटना का वर्णन नहीं मिलता। जिससे यह सिद्ध होता है कि श्री राम ने कभी भी अयोध्यावासी को जानें को नहीं कहा, और नहीं कभी नपुंसक उस वन में रुके थे और नहीं श्री राम ने कभी नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था । हो सकता है ये एक दंत कथा हों या फिर किसी अन्य भाषा में लिखीं हुई रामायण में हों यदि LGBT के पास इसका प्रमाण हों तो बता दीजिए ।

  • @chandrikadhulekar8638
    @chandrikadhulekar8638 Рік тому +1

    Agar Kinnar Shiv ke pramukh gano mei ginti hoti hai,toh inka naam"Lakshmi narayan"kaise?

    • @aj00.7official
      @aj00.7official Рік тому +1

      Laxmi Narayan ek naam hai duffer maa baap ne rakha hai.

    • @chandrikadhulekar8638
      @chandrikadhulekar8638 Рік тому

      @@aj00.7official naam change nahi kar sakte, Kinnar hai toh ye mohini avatar kyu

    • @illusion6238
      @illusion6238 6 місяців тому

      प्रश्न १ - क्या वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह सत्य है कि मर्यादा पुरुषोत्तम ‘श्री राम’ १४ वर्ष के वनवास के कारण महल को छोड़कर वन को गए तब उनके पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए । और वन में श्री राम ने सभी पुरुष-स्त्री को जाने को कहा । जिससे सभी पुरुष-स्त्री तो आ गए किन्तु ‘नपुंसक’ (जो न स्त्री थे न पुरुष) नहीं आए और उन ‘नपुंसकों’ ने वन में १४ वर्ष तक ‘श्री राम’ की प्रतीक्षा की और जब ‘श्री राम’ वनवास पुरा करके वापस आए तो उन ‘नपुंसकों’ की ‘श्री राम’ के प्रति इतनी भक्ति और प्रेम देखकर उन्हें ‘श्री राम’ ने वरदान दिया कि तुम सदैव समाज में पूजित होंगे?
      उत्तर - नहीं, बिल्कुल भी नहीं ! वाल्मीकी रामायण में ऐसी किसी भी घटना का उल्लेख नहीं है अपितु वाल्मीकी रामायण में तो यह बतलाया गया है कि श्री राम के पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए थे, और श्री राम ने कभी भी यह नहीं कहा था कि सभी स्त्री और पुरुष वापस अयोध्यानगरी चले जाए।
      वा॰रा॰ के अनुसार तो श्री राम किसी भी अयोध्यावासी को बिना बतलाए ही रात्रि में लक्ष्मण और सीता के साथ सुमंत्र के रथ पर बैठ कर तमसा नदी के उस पार चले गए थे ।
      यथैते नियमं पौराः कुर्वन्त्यस्मन्निवर्तने ।
      अपि प्राणान् न्यसिष्यन्ति न तु त्यक्ष्यन्ति निश्चयम् ॥२०॥
      यावदेव तु संसुप्तास्तावदेव वयं लघु ।
      रथमारुह्य गच्छामः पन्थानमकुतोभयम् ॥२१॥
      अयं युक्तो महाबाहो रथस्ते रथिनां वर ।
      त्वरयाऽऽरोह भद्रं ते ससीतः सहलक्ष्मणः ॥२७॥
      तं स्यन्दनमधिष्ठाय राघवः सपरिच्छदः ।
      शीघ्रनामाकुलावर्ती तमसामतरन्नदीम् ॥२८॥
      वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४६
      और वा॰रा॰ के अनुसार सभी अयोध्यावासी भी वन से आ गए थे, तो वहाॅं नपुंसकों भी नहीं रहे होंगे ( क्योंकी श्रीराम ने पुरुष स्त्री को जानें को ही नहीं कहा था) -
      रथमार्गानुसारेण न्यवर्तन्त मनस्विनः ।
      किमिदं किं करिष्यामो दैवेनोपहता इति ॥१४॥
      तदा यथागतेनैव मार्गेण क्लान्तचेतसः ।
      अयोध्यामगमन् सर्वे पुरीं व्यथितसज्जनाम् ॥१५॥
      वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४७
      और वा॰रा॰ के युद्धकाण्ड के सर्ग १२७ और १२८ में (जब १४ वर्ष का वनवास पुरा करके अयोध्या नगरी वापस आए) भी कहीं पर भी यह नहीं बतलाया गया है कि श्री राम किसी ने नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था ।
      यदि हम तुलसीदास जी की रामचरितमानस में भी यह नपुंसक वाली घटना देखते हैं तो वहाॅं पर भी ऐसी कोई भी घटना का वर्णन नहीं मिलता है वहां भी यही कहा गया है कि श्री राम बिना अयोध्यावासी को बतलाए ही रात्रि में तमसा नदी के उस पार चले गए थे और सभी अयोध्यावासी वापस को अयोध्या नगरी आ गए थे -
      जबहिं जाम जुग जामिनि बीती । राम सचिव सन कहेउ सप्रीती ।।
      खोज मारि रथु हाँकहु ताता । आन उपायँ बनिहि नहिं बाता ।।
      रामच॰ अयो॰का॰ दो॰ ८४ चौ॰ ४
      राम लखन सिय जान चढ़ि संभु चरन सिरु नाइ ।
      सचिवँ चलायउ तुरत रथु इत उत खोज दुराइ ।।८५।।
      रामच॰अयो॰दो॰८५
      इसके अतिरिक्त आध्यात्म रामायण, महाभारत, विष्णु, पद्म, गरुड़, अग्नि आदि पुराण में भी ‘श्री राम और नपुंसकों’ की इस घटना का वर्णन नहीं मिलता। जिससे यह सिद्ध होता है कि श्री राम ने कभी भी अयोध्यावासी को जानें को नहीं कहा, और नहीं कभी नपुंसक उस वन में रुके थे और नहीं श्री राम ने कभी नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था । हो सकता है ये एक दंत कथा हों या फिर किसी अन्य भाषा में लिखीं हुई रामायण में हों यदि LGBT के पास इसका प्रमाण हों तो बता दीजिए ।

  • @sofiaishratjabeen7473
    @sofiaishratjabeen7473 Рік тому +1

    Madam aap ki community hi is Ko chalange kar k kamayab hogi.
    Dekho isk liye ham sabhi man &women dono ko is ko exept karna hoga or barabar ka darja dena hoga. Or iske liye government ko education or job dono me barabar haq dena hoga.hum sab usi ma bap k bachche hi to hain. Yeh humko khud samajhna hoga. Ma-bap dono ko is bachche ko apnana hoga. Ab yeh itna mushkil bhi nahi hai. Unconditional love jo aap apne bete ya beti dono ko karte hain vohi love un bachchon ko dena unka haq hai.

    • @illusion6238
      @illusion6238 6 місяців тому

      प्रश्न १ - क्या वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह सत्य है कि मर्यादा पुरुषोत्तम ‘श्री राम’ १४ वर्ष के वनवास के कारण महल को छोड़कर वन को गए तब उनके पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए । और वन में श्री राम ने सभी पुरुष-स्त्री को जाने को कहा । जिससे सभी पुरुष-स्त्री तो आ गए किन्तु ‘नपुंसक’ (जो न स्त्री थे न पुरुष) नहीं आए और उन ‘नपुंसकों’ ने वन में १४ वर्ष तक ‘श्री राम’ की प्रतीक्षा की और जब ‘श्री राम’ वनवास पुरा करके वापस आए तो उन ‘नपुंसकों’ की ‘श्री राम’ के प्रति इतनी भक्ति और प्रेम देखकर उन्हें ‘श्री राम’ ने वरदान दिया कि तुम सदैव समाज में पूजित होंगे?
      उत्तर - नहीं, बिल्कुल भी नहीं ! वाल्मीकी रामायण में ऐसी किसी भी घटना का उल्लेख नहीं है अपितु वाल्मीकी रामायण में तो यह बतलाया गया है कि श्री राम के पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए थे, और श्री राम ने कभी भी यह नहीं कहा था कि सभी स्त्री और पुरुष वापस अयोध्यानगरी चले जाए।
      वा॰रा॰ के अनुसार तो श्री राम किसी भी अयोध्यावासी को बिना बतलाए ही रात्रि में लक्ष्मण और सीता के साथ सुमंत्र के रथ पर बैठ कर तमसा नदी के उस पार चले गए थे ।
      यथैते नियमं पौराः कुर्वन्त्यस्मन्निवर्तने ।
      अपि प्राणान् न्यसिष्यन्ति न तु त्यक्ष्यन्ति निश्चयम् ॥२०॥
      यावदेव तु संसुप्तास्तावदेव वयं लघु ।
      रथमारुह्य गच्छामः पन्थानमकुतोभयम् ॥२१॥
      अयं युक्तो महाबाहो रथस्ते रथिनां वर ।
      त्वरयाऽऽरोह भद्रं ते ससीतः सहलक्ष्मणः ॥२७॥
      तं स्यन्दनमधिष्ठाय राघवः सपरिच्छदः ।
      शीघ्रनामाकुलावर्ती तमसामतरन्नदीम् ॥२८॥
      वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४६
      और वा॰रा॰ के अनुसार सभी अयोध्यावासी भी वन से आ गए थे, तो वहाॅं नपुंसकों भी नहीं रहे होंगे ( क्योंकी श्रीराम ने पुरुष स्त्री को जानें को ही नहीं कहा था) -
      रथमार्गानुसारेण न्यवर्तन्त मनस्विनः ।
      किमिदं किं करिष्यामो दैवेनोपहता इति ॥१४॥
      तदा यथागतेनैव मार्गेण क्लान्तचेतसः ।
      अयोध्यामगमन् सर्वे पुरीं व्यथितसज्जनाम् ॥१५॥
      वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४७
      और वा॰रा॰ के युद्धकाण्ड के सर्ग १२७ और १२८ में (जब १४ वर्ष का वनवास पुरा करके अयोध्या नगरी वापस आए) भी कहीं पर भी यह नहीं बतलाया गया है कि श्री राम किसी ने नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था ।
      यदि हम तुलसीदास जी की रामचरितमानस में भी यह नपुंसक वाली घटना देखते हैं तो वहाॅं पर भी ऐसी कोई भी घटना का वर्णन नहीं मिलता है वहां भी यही कहा गया है कि श्री राम बिना अयोध्यावासी को बतलाए ही रात्रि में तमसा नदी के उस पार चले गए थे और सभी अयोध्यावासी वापस को अयोध्या नगरी आ गए थे -
      जबहिं जाम जुग जामिनि बीती । राम सचिव सन कहेउ सप्रीती ।।
      खोज मारि रथु हाँकहु ताता । आन उपायँ बनिहि नहिं बाता ।।
      रामच॰ अयो॰का॰ दो॰ ८४ चौ॰ ४
      राम लखन सिय जान चढ़ि संभु चरन सिरु नाइ ।
      सचिवँ चलायउ तुरत रथु इत उत खोज दुराइ ।।८५।।
      रामच॰अयो॰दो॰८५
      इसके अतिरिक्त आध्यात्म रामायण, महाभारत, विष्णु, पद्म, गरुड़, अग्नि आदि पुराण में भी ‘श्री राम और नपुंसकों’ की इस घटना का वर्णन नहीं मिलता। जिससे यह सिद्ध होता है कि श्री राम ने कभी भी अयोध्यावासी को जानें को नहीं कहा, और नहीं कभी नपुंसक उस वन में रुके थे और नहीं श्री राम ने कभी नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था । हो सकता है ये एक दंत कथा हों या फिर किसी अन्य भाषा में लिखीं हुई रामायण में हों यदि LGBT के पास इसका प्रमाण हों तो बता दीजिए ।

  • @illusion6238
    @illusion6238 6 місяців тому

    Koi reference hai is baat ka???😂

  • @anuchauhan6838
    @anuchauhan6838 Рік тому +2

    Waoooo ma'am......pHD holder.....great ma'am.....m aapko phle se bhuttttt pasand krti hu.....aaj tk jitne v kinner milte h m unki bhuttt respect krti hu...unke payo shuti hu...alwyz blessing's leti hu......ma'am...plzzz aapse mujhe talk . krni h.....plzzzz snd me ur contact no......plzzzz n plzzzzz

    • @illusion6238
      @illusion6238 6 місяців тому

      प्रश्न १ - क्या वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह सत्य है कि मर्यादा पुरुषोत्तम ‘श्री राम’ १४ वर्ष के वनवास के कारण महल को छोड़कर वन को गए तब उनके पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए । और वन में श्री राम ने सभी पुरुष-स्त्री को जाने को कहा । जिससे सभी पुरुष-स्त्री तो आ गए किन्तु ‘नपुंसक’ (जो न स्त्री थे न पुरुष) नहीं आए और उन ‘नपुंसकों’ ने वन में १४ वर्ष तक ‘श्री राम’ की प्रतीक्षा की और जब ‘श्री राम’ वनवास पुरा करके वापस आए तो उन ‘नपुंसकों’ की ‘श्री राम’ के प्रति इतनी भक्ति और प्रेम देखकर उन्हें ‘श्री राम’ ने वरदान दिया कि तुम सदैव समाज में पूजित होंगे?
      उत्तर - नहीं, बिल्कुल भी नहीं ! वाल्मीकी रामायण में ऐसी किसी भी घटना का उल्लेख नहीं है अपितु वाल्मीकी रामायण में तो यह बतलाया गया है कि श्री राम के पीछे पीछे अयोध्यावासी भी वन को गए थे, और श्री राम ने कभी भी यह नहीं कहा था कि सभी स्त्री और पुरुष वापस अयोध्यानगरी चले जाए।
      वा॰रा॰ के अनुसार तो श्री राम किसी भी अयोध्यावासी को बिना बतलाए ही रात्रि में लक्ष्मण और सीता के साथ सुमंत्र के रथ पर बैठ कर तमसा नदी के उस पार चले गए थे ।
      यथैते नियमं पौराः कुर्वन्त्यस्मन्निवर्तने ।
      अपि प्राणान् न्यसिष्यन्ति न तु त्यक्ष्यन्ति निश्चयम् ॥२०॥
      यावदेव तु संसुप्तास्तावदेव वयं लघु ।
      रथमारुह्य गच्छामः पन्थानमकुतोभयम् ॥२१॥
      अयं युक्तो महाबाहो रथस्ते रथिनां वर ।
      त्वरयाऽऽरोह भद्रं ते ससीतः सहलक्ष्मणः ॥२७॥
      तं स्यन्दनमधिष्ठाय राघवः सपरिच्छदः ।
      शीघ्रनामाकुलावर्ती तमसामतरन्नदीम् ॥२८॥
      वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४६
      और वा॰रा॰ के अनुसार सभी अयोध्यावासी भी वन से आ गए थे, तो वहाॅं नपुंसकों भी नहीं रहे होंगे ( क्योंकी श्रीराम ने पुरुष स्त्री को जानें को ही नहीं कहा था) -
      रथमार्गानुसारेण न्यवर्तन्त मनस्विनः ।
      किमिदं किं करिष्यामो दैवेनोपहता इति ॥१४॥
      तदा यथागतेनैव मार्गेण क्लान्तचेतसः ।
      अयोध्यामगमन् सर्वे पुरीं व्यथितसज्जनाम् ॥१५॥
      वा॰रा॰बालकाण्ड सर्ग ४७
      और वा॰रा॰ के युद्धकाण्ड के सर्ग १२७ और १२८ में (जब १४ वर्ष का वनवास पुरा करके अयोध्या नगरी वापस आए) भी कहीं पर भी यह नहीं बतलाया गया है कि श्री राम किसी ने नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था ।
      यदि हम तुलसीदास जी की रामचरितमानस में भी यह नपुंसक वाली घटना देखते हैं तो वहाॅं पर भी ऐसी कोई भी घटना का वर्णन नहीं मिलता है वहां भी यही कहा गया है कि श्री राम बिना अयोध्यावासी को बतलाए ही रात्रि में तमसा नदी के उस पार चले गए थे और सभी अयोध्यावासी वापस को अयोध्या नगरी आ गए थे -
      जबहिं जाम जुग जामिनि बीती । राम सचिव सन कहेउ सप्रीती ।।
      खोज मारि रथु हाँकहु ताता । आन उपायँ बनिहि नहिं बाता ।।
      रामच॰ अयो॰का॰ दो॰ ८४ चौ॰ ४
      राम लखन सिय जान चढ़ि संभु चरन सिरु नाइ ।
      सचिवँ चलायउ तुरत रथु इत उत खोज दुराइ ।।८५।।
      रामच॰अयो॰दो॰८५
      इसके अतिरिक्त आध्यात्म रामायण, महाभारत, विष्णु, पद्म, गरुड़, अग्नि आदि पुराण में भी ‘श्री राम और नपुंसकों’ की इस घटना का वर्णन नहीं मिलता। जिससे यह सिद्ध होता है कि श्री राम ने कभी भी अयोध्यावासी को जानें को नहीं कहा, और नहीं कभी नपुंसक उस वन में रुके थे और नहीं श्री राम ने कभी नपुंसकों को आशीर्वाद दिया था । हो सकता है ये एक दंत कथा हों या फिर किसी अन्य भाषा में लिखीं हुई रामायण में हों यदि LGBT के पास इसका प्रमाण हों तो बता दीजिए ।