अद्वितीय अद्भुत। हज़ारों सालों से इतने आकर्षक मंदिर बचे हुए हैं यह हमारा बहुत बड़ा सौभाग्य है। इनको बचाकर रखने की जिम्मेदारी आज की तथा आगामी पीढ़ियों की है। जय जिनेन्द्र।
जय जिनेंद्र बहोत ही सुंदर और आकर्षक जैन मंदिर है!और मंदिर के बारेमे बहोत ही उपयुक्त और अच्छी जानकारी दि गयी है! यह हमारी ऐतिहासिक धरोहर है ! जिसका अच्छी तरहसे जतन होना जरूरी है! धन्यवाद. जय जिनेंद्र. 🙏🙏👌👌👌👌👌👍👍
Common note for several discussions in this forum: Learn the lessons from past and build bright future, "Past ke liye jghagadana chorro, Future ke liye sambhalna shuru karro, Hamari virasat ki Raksha karna, Kisi Hindu, kisi Jain ya koi jati vishesh ki nahin hai, Ham sabki hai !!!
योग परिणाम सिद्धियाँ ऐश्वैरय दासी बन खड़ी रहती है।। बाधा भी वही पथ प्रदर्शक भी वही।। यही कारण है कि जैनी मारवाड़ियों से भी अधिक सुखी सम्पन होते हैं।। त्यागी के पिछे पिछे अष्ट सिद्धि नव निधि हाथ जोड़े चलती है।ः
पहँचे हुए महात्मा कामना के वशीभूत होते ही वैकुण्ठ विशुद्धी चक्र के निचे के लोक मुलाधार में भेज दिए जाते हैं ं। भगवद्गीता प्रयोगशाला है। निस्तार परिणाम परिणति ईशावास्योपनिषद् देता है।। ऊँ शान्ति ऊँ शान्ति ऊँ सु शान्तिर्भवतु।।
जय जिनेन्द्र आपने प्राचीन जैन संस्कृति बहुत ही अच्छी प्रस्तुति की है। हमारे पूर्वज भी जैसलमेर से थे ,हम लोगो की हवेली वहाँ आज भी मौजूद है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
जब आर्य्यावर्त्तस्थ मनुष्यों में सत्याऽसत्य का यथावत् निर्णय करानेवाली वेदविद्या छूटकर अविद्या फैल के मतमतान्तर खड़े हुए, यही जैन आदि के विद्याविरुद्ध मतप्रचार का निमित्त हुआ। क्योंकि वाल्मीकीय और महाभारतादि में जैनियों का नाममात्र भी नहीं लिखा और जैनियों के ग्रन्थों में वाल्मीकीय और भारत में ‘राम’, कृष्णादि’ की गाथा बड़े विस्तारपूर्वक लिखी हैं। इस से यह सिद्ध होता है कि यह मत इनके पीछे चला क्योंकि जैसा अपने मत को बहुत प्राचीन जैनी लोग लिखते हैं वैसा होता तो वाल्मीकीय आदि ग्रन्थों में उनकी कथा अवश्य होती इसलिए जैनमत इन ग्रन्थों के पीछे चला है। कोई कहे कि जैनियों के ग्रन्थों में से कथाओं को लेकर वाल्मीकीय आदि ग्रन्थ बने होंगे तो उन से पूछना चाहिए कि वाल्मीकीय आदि में तुम्हारे ग्रन्थों का नाम लेख भी क्यों नहीं? और तुम्हारे ग्रन्थों में क्यों है? क्या पिता के जन्म का दर्शन पुत्र कर सकता है? कभी नहीं। इस से यही सिद्ध होता है कि जैन बौद्ध मत; शैव शाक्तादि मतों के पीछे चला है। अब इस १२ बारहवें समुल्लास में जो-जो जैनियों के मतविषयक में लिखा गया है सो-सो उनके ग्रन्थों के पते पूवक लिखा है। इस में जैनी लोगों को बुरा न मानना चाहिये क्योंकि जो-जो हम ने इन के मत विषय में लिखा है वह केवल सत्याऽसत्य के निर्णयार्थ है न कि विरोध वा हानि करने के अर्थ। इस लेख को जब जैनी बौद्ध वा अन्य लोग देखेंगे तब सब को सत्याऽसत्य के निर्णय में विचार और लेख करने का समय मिलेगा और बोध भी होगा। जब तक वादी प्रतिवादी होकर प्रीति से वाद वा लेख न किया जाय तब तक सत्यासत्य का निर्णय नहीं हो सकता। जब विद्वान् लोगों में सत्याऽसत्य का निश्चय नहीं होता तभी अविद्वानों को महा- अन्धकार में पड़कर बहुत दुःख उठाना पड़ता है। इसलिए सत्य के जय और असत्य के क्षय के अर्थ मित्रता से वाद वा लेख करना हमारी मनुष्यजाति का मुख्य काम है। यदि ऐसा न हो तो मनुष्यों की उन्नति कभी न हो। और यह बौद्ध जैन मत का विषय विना इन के अन्य मत वालों को अपूर्व लाभ और बोध कराने वाला होगा क्योंकि ये लोग अपने पुस्तकों को किसी अन्य मत वाले को देखने, पढ़ने वा लिखने को भी नहीं देते। बड़े परिश्रम से मेरे और विशेष आर्य्यसमाज मुम्बई के मन्त्री ‘सेठ सेवकलाल कृष्णदास’ के पुरुषार्थ से ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं। तथा काशीस्थ ‘जैनप्रभाकर’ यन्त्रलय में छपने और मुम्बई में ‘प्रकरणरत्नाकर’ ग्रन्थ के छपने से भी सब लोगों को जैनियों का मत देखना सहज हुआ है। भला यह किन विद्वानों की बात है कि अपने मत के पुस्तक आप ही देखना और दूसरों को न दिखलाना। इसी से विदित होता है कि इन ग्रन्थों के बनाने वालों को प्रथम ही शंका थी कि इन ग्रन्थों में असम्भव बातें हैं। जो दूसरे मत वाले देखेंगे तो खण्डन करेंगे और हमारे मत वाले दूसरों का ग्रन्थ देखेंगे तो इस मत में श्रद्धा न रहेगी। अस्तु जो हो परन्तु बहुत मनुष्य ऐसे हैं जिन को अपने दोष तो नहीं दीखते किन्तु दूसरों के दोष देखने में अति उद्युक्त रहते हैं। यह न्याय की बात नहीं क्योंकि प्रथम अपने दोष देख निकाल के पश्चात् दूसरे के दोषों में दृष्टि देके निकालें। अब इन बौद्ध, जैनियों के मत का विषय सब सज्जनों के सम्मुख धरता हूं। जैसा है वैसा विचारें।
Mai jab in mandir ji mei gaya.. to sab tourists ke beech mei khada hua mai bhi darshan kar raha tha... Parantu meri bhakti dekh ke vahan upasthit pujari ji ko mere Jain hone ka aabhaas hua... Aur unhone mujhse puchha... Jab maine haan kaha to uske baad pujari ji ne mujhe andar bulakar dhang se poore mandir ji ke darshan karwaye...
Bharatvarsh society should keenly observe the rich knowledge stored in Jain Heritage, through their Mandirs and Scriptures. When deeply observed and understood, it will transform the conscience and heritage intelligence of entire nation. Making our society more stronger and unified. Currently, facts and info about Jain Dharm is extremely low, among average citizens, due to various governmental policies.
यह बात जगत जाहिर है कि जैन धर्म मे 24 तीर्थंकर है जिनमे महावीर स्वामी सबसे आखरी 24 वे तीर्थंकर है तो कुछ लोगो का ये बोलना की जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी थे कहा तक तर्क संगत है, और ऐसा बोलने वाले लोगो की बुद्धि मत्ता पर भी शक होता है, जैन धर्म अनादि है, आज भी है कल भी था और आगे भी रहेगा, ज्यादा परेशान न हो,
अपना जैन धर्म अनादिकाल से है अंनतकाल तक रहेगा धर्म हिंसा रहित होना चाहिए भूतकाल के तीर्थंकर भविष्यकाल के तीर्थंकर तो अलग है वर्तमान के आदिनाथ से लेकर महावीर तक।।
@Aryan Jaiswal aree voo.hein nautanki baaj, usko meine pehele hi exposed kia hein. vo apne ego satisfied karne mein laga hein. apne zuute baat kehne mein usatad hein, aur na pata hoo tho bolta uske religion la.adha baate.fake hi hein, jo usko bola javab deneko tho dein nahi sakata. om namah shivya ka fake identity lekar ata hein yaha katva jain.
@Aryan Jaiswal - aree yaar, voo jabarjsti advaita ko jainism ke saat fake connect karta hein. Usko zero gyan hein advaita ka. usko pata hi kaha ki advaita mein bhagwan creator hein duniya kein, baad mein kaal chakra hein, 14 raaj lok ki vyvsta kuch pata hi nahi.
@Aryan Jaiswal -मुजे डिबेट या उस के विषय चर्चा नही करना। में सिर्फ आपसे वैदिक धर्म ज्ञान चाहिए गीता या वेद उपनिषद पर था जो यहां पर सम्भव नही, करके आपसे विनंती है आप हमें whatsp मेसेज करे Hi बोलकर, नाम के साथ, मेरा नंबर है दिया है। 7875089389
भाई मूडबिद्रे का जो मूर्तियां हैं वह चोरी की गया हुआ है इसलिए सिक्योरिटी वजह से किसी को यह वीडियो पब्लिक मत बनाइए हमें गोपी से बचाना होगा जय जिनेंद्र 🙏
Amazing temple but unfortunately focus of the video was on narrator than on temple. Narrator should have been in background while focussing on the architecture of the temple.
जयसियाराम , जय जिनेद्र , मान्यवर आपसे अनुरोध है के कृपया हिन्दी मे उर्दू के शब्दो का प्रयोग ना हो तो अधिक अच्छा होगा , मंदीर के संबंधित जो भी व्यक्ती समझा रहे थे उन्हे थोडा धिमी गती से बोलने की आवश्यकता है , आभार , धन्यवाद ! वंदेमातरंम , जयहिंद , जयजवान , जयकिसान !
हिंदुस्तान के कलाकारों को शत शत नमन। क्या अभी खरबो खर्च कर के भी ऐसी कलकीर्ति बन सकती है? नही नही । क्योंकि वो सामाजिक व्यवस्था इस्लामी आक्रमण में खो चुकी है। तब के मनुष्य अपने काम से संतोष पाता था न कि काम की मजदूरी लेकर । इस्लाम के मानने वाले इसका कोई जबाब नही दे पाएंगे।
@@tapasdey7635 भाई जनों के 23वें तीर्थंकर नेमिनाथ किस समय भगवान श्री कृष्ण हुए थे और 20 वे तीर्थंकर मुनीसुव्रत के समय भगवान राम तो प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ कितने समय पहले हुए होंगे ? उन्हीं के बेटे भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है उन्हीं की बेटी ब्राम्ही के नाम पर ब्राम्ही लिपि की खोज हुई थी भगवान आदिनाथ ऋषभदेव नहीं असी मसी कृषि की शिक्षा सर्वप्रथम दुनिया को दी थी यह तो वर्तमान चौबीसी की बात है ऐसी चौबीसी भूतकाल में भी हुई थी और भविष्य काल में भी होगी महावीर भगवान तो अंतिम तीर्थंकर है
@@tapasdey7635 जगदीश वे तीर्थंकर मुनीसुव्रत है तब राम भगवान पैदा हुए थे तो सोच लो प्रथम तीर्थंकर नोट गुरु ऋषभदेव कितने समय पहले पैदा हुए होंगे.... ऋषभदेव उस समय से है जब कल्पवृक्ष हुआ करते थे जब कल्पवृक्ष खत्म हो गए तो ऋषभदेव ने ही प्रथम बार लोगों को खेती करना शस्त्र चलाना सिखाया था और भी दूसरी कलाई सिखाई थी ताकि बिना कल्पवृक्ष के जीवन यापन कर सके
Those who wants to talk about jainism I humbly request you to go meet any jain maharaj saheb first & try to clear your thoughts there.. Thank you.. If I offended anyone of you by my comment મિચ્છામિ દુક્કડમ્
जो जीता वो सिकंदर ...नहीं ! ये कहना विदेशी विधर्मी माना आसुरी वृति के लुटेरे संत महात्मा देवी देवताओं के इंसानियत के दुश्मन अक्ल के दुश्मन इस्लामी मुस्लिम हिंसक वृति इवन महावीर स्वामी राम नारायण कृष्ण के दुश्मन कौन लोग हैं प्राचीन भारतवासी सहित दुनिआ इस लूटेरी बेईमान जाती को बहुत अच्छी तरह जानती है .....अपनी रक्षा करना ही सूर्य वंशी राजपूतों का धर्म इन विदेशी विधर्मी वामपंथी माया रावण पंथियों की किसी भी छद्दम चालबाज़ियों में अब किसी भी सनातन हिन्दू को नहीं आना है ..... जिनकी पाताल में जगह है वो पाताल में जाकर रहिये बाकी जिनको जन्नत में जाना है वो वहां जाने की तयारी करें इंतजार की घड़ियाँ ख़त्म इंतजाम कीजिये .... विधर्मियों को उनका धर्म और अपना धर्म दोनों की परिभाषा इंसान किसे तथा शैतान इसको कहा जाता है ...आइये बताते है....
नही भाई वो समय महावीर से शरू हुआ था उस से पहले 23 तीर्थंकर धरती पर आ चुके थे। पहले तीर्थंकर ऋषभदेव का जिक्र ऋग्वेद में भी मिलता है। इससे सिद्ध होता है कि ऋषभदेव ऋगवेद सेभी पहले इस धरती पर आ चुके थे।
Ye mandir jab banaye gaye Uske bad un karigaro Korahasaymay Dhang se gayab kar diya Or sat hi sat Macino Ko bhi Nast kar diya gaya Jisse dusra koi na bana sake Ab tab se Ab tak Or aage bhi Bas dakbe wale hi Hai Or isi Karad Ye mandir Darsniy mandir Ban gaya Or aage Kalantar Mai bhi Darsniy Mandir rahaga ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️ Para. Psyctrist ❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Some of the things can be edited / removed. It needs to be historical information only and should not be specific on rich assets. Whoever are in Jaisalmer or you know anyone, can take up this issue. Also request publisher of this video the same.
@@rinklejain8251 You can always remove your post. As a responsible person of the community and as there are several Lessons learnt, the video need not be so elaborated and the priest of the temple should be given authority to display the things in public forum. As you also may not be displaying your every household items in public. People should be attached with temple with devotion and art. My request in this forum is for all our ancient temple and rich knowledge. We need to do all possible precaution and protection to safeguard such unique heritage.
कलाकारिता का अजव नमुना हे,जिसे जितना सराहना किया जाए फिर भि कम हे। हर मानव जाे भि गए मात्र अाँखकि नजर से दिखे, वयान करनेवाले भि बाहिरि दृष्टिकोण हि रखा पर इन मन्दिरमे सजाए ६६०० मुर्ति से अध्यात्मिक सन्देस दिए जाे उस सत्य काे कितनाेने देखाकितनाेने नहि महत्त्व इसमे हे। हर प्राचीन मन्दिराेंसे ज्ञान हि दिए हे उसकाे पकड पाना या देख पाना अपनी अपनी चिन्तन पर निर्भर करता हे। वे काला गाेरा मुर्तियां जाे तपस्या पर निर्वस्त्र हो बैठे दिखाए उनसे ज्ञान हि वाँते हे कि तपस्या वह हे जाे देहभान से पृथक हो अात्मरति रहकर किए गए तप हि वास्तविक तप हे। महावीर जैन का हर मुर्ति निर्वस्त्र दिखानेका तात्पर्य हे जाे अात्मास्वरुपमे रहते हे वे हर इन्द्रियाे पर विजयी बनचुके होते हे, यहि जनेन्द्रिय पर विजयी अात्मा हि वास्तविक जैन हे, जाे काेहि जित न पाए हे वे नामके जैन हे। शरिर(देह) एक अात्माके लिए वस्त्र हे, जैसे हम ने पहने वस्त्र जब जिर्ण(फिर प्रयोगमे न अा पाए) हाेते हे ताे नुतन(नए वस्त्र) पहनते हे ठिक वैसे हि अात्मा भि इसशरीर रुपि जिर्ण शरीर काे त्याग(मृत्युु वरण) कर दुसरे अन्य नुतनशरीर के रुपमे जन्म लेते हे(गीता २:२२)। यहि शरीर काे निर्वस्त्र या नग्न दिखाना हि अात्मास्वरुपमे रहना हे, शरीर रुपि वस्त्र जिर्ण हो नष्ट हाेते हे पर अात्मा न अागसे जले न पानी गलाए या वहाए, न हावा उडाए न सुखा सके यानी अजर अमर अविनाशि हे(गीता २:२३) वे अपने शरीर मेरहते किएगए कर्मभाेग अनुसार जनमकाे पाकर नए कर्मभाेगमे निरन्तरता पाते हे। अगर अात्मास्वरुपमे वैठ नित्य ईश्वरका ध्यानष्ट हो याेगमे रहना हि तप या तपस्या हे, काेइ शरीर काे हि निर्वस्त्र रखनेका भावार्थ महावीर का नहि था, इसिलिए मात्र वे मुर्ति ध्यानमे जितेन्द्रिय हो दिखाया, अन्य अर्थसे नहि पर चिन्तनमन्थन किए बिना दिगम्बर रहना महान भुल व असतकर्म हे, या महा अज्ञानता हे। मात्र जय जिनेन्द्र कहनेसे जैनी बनता नहि हे। उन मुर्तियाेंमे काेइ काला, गाेरा, पूरा सफेद दिखाना भि, ज्ञानयुक्त हे, वैसे हि वे रंगका बनाया नहि। जाे जितेन्द्रिय अात्मा हे जिनमे काेइ विकार व विकृति रहित पुरा कन्चन हे यानी सम्पूर्ण पवित्र हे वह पूरा सफेद कन्चन का शरीर वाला दिखाया, अन्य कुछ विकार सहितका अौर काेहि पूरा विकारि(काला) मुर्ति काे दिखाया। जाे वास्तविक जैन हे वह सफेद वाला हे,जाे मात्र जय जिनेन्द्र कहाँ करते हे उनमे काला अौर कम काला वाला मुर्तियां हे नहि ताे उतने सारे मुर्ति काे एक मन्दिरमे सजाए क्याें ? मुर्ति ताे एक हि काफि हे। वर्ष चाहे जितने पुराना दिखाया वह गलतफहमि के कारण हे जवकि जैनपंथका स्थापना बर्ध्यमान महावीर से शुरु हुए हे, उनका इतिहास कितना हे वह ताे जगजाहेर हे। महावीर के समकालीन सिद्धार्थ गौतम ने भि उसि सत्यका बाेध किए पर निर्वस्त्र रहे नहि मात्र सभिकाे अात्मास्वरुप का समझ देने अर्थ नग्न या वस्त्ररहित रहनेका हिम्मत केवल बर्ध्यमान ने हि करसका इसिलिए उनको "महावीर" कहे प्रसिद्ध बना रहा अन्य किम्बदन्तियां अज्ञानता के कारण हि दिखे, अन्यथा जैनपंथमे हि तेरापंथ, स्वेताम्वरि, व दिगम्वरि क्याें ? जैन ताे सभि हे ! यहि हे तमसता। मात्र मन्दिर का अवलोकन करना भि तमसता हि हे, उनसे मिले ज्ञान सभि के लिए उजगार करना भि एक तरहका कल्याण का कर्म हे , कमेन्ट नहि चिन्तन हे, धन्यवाद !!!
विश्व के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म की जय हो।।
अद्वितीय अद्भुत। हज़ारों सालों से इतने आकर्षक मंदिर बचे हुए हैं यह हमारा बहुत बड़ा सौभाग्य है। इनको बचाकर रखने की जिम्मेदारी आज की तथा आगामी पीढ़ियों की है। जय जिनेन्द्र।
जय जिनेंद्र बहोत ही सुंदर और आकर्षक जैन मंदिर है!और मंदिर के बारेमे बहोत ही उपयुक्त और अच्छी जानकारी दि गयी है! यह हमारी ऐतिहासिक धरोहर है ! जिसका अच्छी तरहसे जतन होना जरूरी है! धन्यवाद. जय जिनेंद्र. 🙏🙏👌👌👌👌👌👍👍
गौरवान्वित हूँ यह जानकर कि जैनों की धरोहर आज भी कुछ श्रधालु सुरक्षित किये हुए हैं।
बधाई के पात्र हैं।
⁸
बहोत सुंदर है, बहोत सुंदर है, बहोत सुंदर है
बहुत सुंदर उपयोगी जानकारी।
एक बार जरूर दर्शन करने आएंगे। जैजीनेंद्र।
Sunil Jain हहबफ
Very nice ingormation
Jai jinendra ji
Most beautiful wonderful world famous Jain temples
Common note for several discussions in this forum:
Learn the lessons from past and build bright future,
"Past ke liye jghagadana chorro,
Future ke liye sambhalna shuru karro,
Hamari virasat ki Raksha karna,
Kisi Hindu, kisi Jain ya koi jati vishesh ki nahin hai,
Ham sabki hai !!!
Mera Bharat mahaan. I am fortunate to have my birth in Bharat. ❤️❤️❤️❤️ I love my India.
This is so beautiful. Thank u for giving such great information about our great culture 🙏
We are glad you liked it.
जय जिनेंद्र
योग परिणाम
सिद्धियाँ ऐश्वैरय
दासी बन खड़ी रहती है।।
बाधा भी वही पथ प्रदर्शक भी वही।।
यही कारण है कि जैनी मारवाड़ियों से भी अधिक सुखी सम्पन होते हैं।।
त्यागी के पिछे पिछे अष्ट सिद्धि नव निधि
हाथ जोड़े चलती है।ः
OMPRAKASH GUPTA
भगवद्गीता अध्याय षस्ठं
श्लोक 45---46
पहँचे हुए महात्मा
कामना के वशीभूत होते ही
वैकुण्ठ विशुद्धी चक्र के
निचे के लोक मुलाधार में
भेज दिए जाते हैं ं।
भगवद्गीता प्रयोगशाला है।
निस्तार परिणाम परिणति
ईशावास्योपनिषद् देता है।।
ऊँ शान्ति ऊँ शान्ति ऊँ सु शान्तिर्भवतु।।
जय जिनेन्द्र आपने प्राचीन जैन संस्कृति बहुत ही अच्छी प्रस्तुति की है। हमारे पूर्वज भी जैसलमेर से थे ,हम लोगो की हवेली वहाँ आज भी मौजूद है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Aap abhi kaha virajte h sir
nai
जब आर्य्यावर्त्तस्थ मनुष्यों में सत्याऽसत्य का यथावत् निर्णय करानेवाली वेदविद्या छूटकर अविद्या फैल के मतमतान्तर खड़े हुए, यही जैन आदि के विद्याविरुद्ध मतप्रचार का निमित्त हुआ। क्योंकि वाल्मीकीय और महाभारतादि में जैनियों का नाममात्र भी नहीं लिखा और जैनियों के ग्रन्थों में वाल्मीकीय और भारत में ‘राम’, कृष्णादि’ की गाथा बड़े विस्तारपूर्वक लिखी हैं। इस से यह सिद्ध होता है कि यह मत इनके पीछे चला क्योंकि जैसा अपने मत को बहुत प्राचीन जैनी लोग लिखते हैं वैसा होता तो वाल्मीकीय आदि ग्रन्थों में उनकी कथा अवश्य होती इसलिए जैनमत इन ग्रन्थों के पीछे चला है। कोई कहे कि जैनियों के ग्रन्थों में से कथाओं को लेकर वाल्मीकीय आदि ग्रन्थ बने होंगे तो उन से पूछना चाहिए कि वाल्मीकीय आदि में तुम्हारे ग्रन्थों का नाम लेख भी क्यों नहीं? और तुम्हारे ग्रन्थों में क्यों है? क्या पिता के जन्म का दर्शन पुत्र कर सकता है? कभी नहीं। इस से यही सिद्ध होता है कि जैन बौद्ध मत; शैव शाक्तादि मतों के पीछे चला है। अब इस १२ बारहवें समुल्लास में जो-जो जैनियों के मतविषयक में लिखा गया है सो-सो उनके ग्रन्थों के पते पूवक लिखा है। इस में जैनी लोगों को बुरा न मानना चाहिये क्योंकि जो-जो हम ने इन के मत विषय में लिखा है वह केवल सत्याऽसत्य के निर्णयार्थ है न कि विरोध वा हानि करने के अर्थ। इस लेख को जब जैनी बौद्ध वा अन्य लोग देखेंगे तब सब को सत्याऽसत्य के निर्णय में विचार और लेख करने का समय मिलेगा और बोध भी होगा। जब तक वादी प्रतिवादी होकर प्रीति से वाद वा लेख न किया जाय तब तक सत्यासत्य का निर्णय नहीं हो सकता। जब विद्वान् लोगों में सत्याऽसत्य का निश्चय नहीं होता तभी अविद्वानों को महा- अन्धकार में पड़कर बहुत दुःख उठाना पड़ता है। इसलिए सत्य के जय और असत्य के क्षय के अर्थ मित्रता से वाद वा लेख करना हमारी मनुष्यजाति का मुख्य काम है। यदि ऐसा न हो तो मनुष्यों की उन्नति कभी न हो। और यह बौद्ध जैन मत का विषय विना इन के अन्य मत वालों को अपूर्व लाभ और बोध कराने वाला होगा क्योंकि ये लोग अपने पुस्तकों को किसी अन्य मत वाले को देखने, पढ़ने वा लिखने को भी नहीं देते। बड़े परिश्रम से मेरे और विशेष आर्य्यसमाज मुम्बई के मन्त्री ‘सेठ सेवकलाल कृष्णदास’ के पुरुषार्थ से ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं। तथा काशीस्थ ‘जैनप्रभाकर’ यन्त्रलय में छपने और मुम्बई में ‘प्रकरणरत्नाकर’ ग्रन्थ के छपने से भी सब लोगों को जैनियों का मत देखना सहज हुआ है। भला यह किन विद्वानों की बात है कि अपने मत के पुस्तक आप ही देखना और दूसरों को न दिखलाना। इसी से विदित होता है कि इन ग्रन्थों के बनाने वालों को प्रथम ही शंका थी कि इन ग्रन्थों में असम्भव बातें हैं। जो दूसरे मत वाले देखेंगे तो खण्डन करेंगे और हमारे मत वाले दूसरों का ग्रन्थ देखेंगे तो इस मत में श्रद्धा न रहेगी। अस्तु जो हो परन्तु बहुत मनुष्य ऐसे हैं जिन को अपने दोष तो नहीं दीखते किन्तु दूसरों के दोष देखने में अति उद्युक्त रहते हैं। यह न्याय की बात नहीं क्योंकि प्रथम अपने दोष देख निकाल के पश्चात् दूसरे के दोषों में दृष्टि देके निकालें। अब इन बौद्ध, जैनियों के मत का विषय सब सज्जनों के सम्मुख धरता हूं। जैसा है वैसा विचारें।
Thank to you too. We are glad you enjoyed it.
Bhai ME ek sadhrmik ben hu boat taklip ME hu bache chote he koi rasta dikhao bhai muje ben samaj kar Koch madat kar do boat muskil ME hu 9113565179
Great to see such information is safely stored by our ancestors.
Mai jab in mandir ji mei gaya.. to sab tourists ke beech mei khada hua mai bhi darshan kar raha tha...
Parantu meri bhakti dekh ke vahan upasthit pujari ji ko mere Jain hone ka aabhaas hua... Aur unhone mujhse puchha... Jab maine haan kaha to uske baad pujari ji ne mujhe andar bulakar dhang se poore mandir ji ke darshan karwaye...
Hamne bhi same anubhav kiya
Bharatvarsh society should keenly observe the rich knowledge stored in Jain Heritage, through their Mandirs and Scriptures. When deeply observed and understood, it will transform the conscience and heritage intelligence of entire nation. Making our society more stronger and unified. Currently, facts and info about Jain Dharm is extremely low, among average citizens, due to various governmental policies.
यह बात जगत जाहिर है कि जैन धर्म मे 24 तीर्थंकर है जिनमे महावीर स्वामी सबसे आखरी 24 वे तीर्थंकर है तो कुछ लोगो का ये बोलना की जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी थे कहा तक तर्क संगत है, और ऐसा बोलने वाले लोगो की बुद्धि मत्ता पर भी शक होता है, जैन धर्म अनादि है, आज भी है कल भी था और आगे भी रहेगा, ज्यादा परेशान न हो,
Both is true.. જૈન ધર્મમાં બધા ભગવાન સંઘ સ્થાપના કરે છે. જે પછીના ભગવાન સુધી ચાલે છે. એટલે અત્યારના આ ધર્મ ની સ્થાપના મહાવીર સ્વામી ભગવાન એ કરી..
this guide is superb, great knowledge
अपना जैन धर्म अनादिकाल से है अंनतकाल तक रहेगा
धर्म हिंसा रहित होना चाहिए भूतकाल के तीर्थंकर भविष्यकाल के तीर्थंकर तो अलग है वर्तमान के आदिनाथ से लेकर महावीर तक।।
अतिसुंदर 🙏
JAINAM Temples Are Extremely important to And for Worship&+Stone Art Really Extream all Golden Kila Jaisalmer
now i have to visit this place.
thanks for the keeping safe the granthas nd taadpatra because nowadays its not safe anything
Hello
हमको स्कूल की किताबो में ताजमहल और मेहमूद गजनवी को पढ़वाया जाता हैं 😤😤😤
Jai Jinendra 🙏🏻 bht sundr derasr Pratima bi ek dm parachin
Jain dharm sansar ka sabse pracjin dharm hai
Ek kal me chobise
Thirtanker hote he
Aadinath phartam
Mahavir chobisve
@Aryan Jaiswal aree voo.hein nautanki baaj, usko meine pehele hi exposed kia hein. vo apne ego satisfied karne mein laga hein. apne zuute baat kehne mein usatad hein, aur na pata hoo tho bolta uske religion la.adha baate.fake hi hein, jo usko bola javab deneko tho dein nahi sakata. om namah shivya ka fake identity lekar ata hein yaha katva jain.
@Aryan Jaiswal - aree yaar, voo jabarjsti advaita ko jainism ke saat fake connect karta hein. Usko zero gyan hein advaita ka. usko pata hi kaha ki advaita mein bhagwan creator hein duniya kein, baad mein kaal chakra hein, 14 raaj lok ki vyvsta kuch pata hi nahi.
@Aryan Jaiswal - give me your number wanna talk with you
@Aryan Jaiswal - bhai, reply to what im saying and whatsap me on 7875089389....
@Aryan Jaiswal -मुजे डिबेट या उस के विषय चर्चा नही करना। में सिर्फ आपसे वैदिक धर्म ज्ञान चाहिए गीता या वेद उपनिषद पर था जो यहां पर सम्भव नही, करके आपसे विनंती है आप हमें whatsp मेसेज करे Hi बोलकर, नाम के साथ, मेरा नंबर है दिया है। 7875089389
Jaisalmer jain library first library of world & comprises jains Aagam
This video should not be for public reference for security reasons.
Haa yaar ye log samjte nai he
सही बात है 🙏
Jaijinendra, jai jin shashan ki, jai shree Paras nath Tirthanker ji ki jai ho, jai Bhavya prachin jain samaj ki, jaijinendra
I have been here with family .Simply amazing
Pro tip: you can watch movies on Flixzone. Been using it for watching loads of movies recently.
@Leroy Benjamin definitely, have been using Flixzone} for since november myself :)
It's a heaven. We proud of This.
भाई मूडबिद्रे का जो मूर्तियां हैं वह चोरी की गया हुआ है इसलिए सिक्योरिटी वजह से किसी को यह वीडियो पब्लिक मत बनाइए हमें गोपी से बचाना होगा जय जिनेंद्र 🙏
Sahi hai hum you tube pe video acche bhav se dalte per hamare mandir pe dusare samaj ke log galat kam karte hai
Include some of these facts in education system of India so future generations know actual history.
Very nice temples..
Jain ,and Hindu temples ke aage saree Muslims architecture fail hai 28 Jain temples Ko todkar hi mullo ne kutub minar banvaye thy...
जय जिनेन्द्र बहुत सुंदर
Jai Jinendra 🙏 bahut Sundar Mandir ji
Amazing temple but unfortunately focus of the video was on narrator than on temple. Narrator should have been in background while focussing on the architecture of the temple.
Naman aur dhanyvaad aapka aisy virasat ,dharohar ko sambhalne,dekh rekh krne k liye 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jaijinendra.
Marvelous temple. Will pray God to visit this early!
Really exilent job
जय हो जिन शासनकाल की
So..Beautiful.....
Thanks a lot for such informative video. I look forward to visiting Jaisalmer in future.
भाई साहब के ज्ञान को कोटि कोटि नमन 🙏🙏🙏🙏
जय हो 🙏🙏 मेरे जैन धर्म की
जयसियाराम , जय जिनेद्र ,
मान्यवर आपसे अनुरोध है के कृपया हिन्दी मे उर्दू के शब्दो का प्रयोग ना हो तो अधिक अच्छा होगा , मंदीर के संबंधित जो भी व्यक्ती समझा रहे थे उन्हे थोडा धिमी गती से बोलने की आवश्यकता है , आभार , धन्यवाद !
वंदेमातरंम , जयहिंद , जयजवान , जयकिसान !
Awesome 🙏🙏🙏🙏👌👌👌👌💐💐💐💐💐
Very good information!
जय जिनेन्द्र जी,
जैसलमेर कितने दिन में घूम सकते हैं।होटल के कुछ नाम बताए प्लीज़।
Nice collection of granth and Hira panna's murti,koti koti bar Naman
हिंदुस्तान के कलाकारों को शत शत नमन। क्या अभी खरबो खर्च कर के भी ऐसी कलकीर्ति बन सकती है? नही नही । क्योंकि वो सामाजिक व्यवस्था इस्लामी आक्रमण में खो चुकी है। तब के मनुष्य अपने काम से संतोष पाता था न कि काम की मजदूरी लेकर ।
इस्लाम के मानने वाले इसका कोई जबाब नही दे पाएंगे।
200% TRUE
Very beautiful h temple,
Very nice jankari mila sir ji
जिनके पहने हुए कपड़े भी अग्नि से नही जले ऐसे श्री दत्त सूरी जी मा. सा. के चरणों मे कोटि कोटि वंदना
JAI JINENDRA 🙏. Nice information.
जय हो चौबीसों भगवान की
Nice video quality. Which camera sir?
Super post sa
Bhut acci information......
Nmskar
जैन धर्म आदिकाल से चला आ रहा है।
Jain dharm mahabir ji ne ki,to fir aadikal se kase?
@@tapasdey7635 bhai ek barr history dekhlo badd me bolo
@@tapasdey7635 भाई जनों के 23वें तीर्थंकर नेमिनाथ किस समय भगवान श्री कृष्ण हुए थे और 20 वे तीर्थंकर मुनीसुव्रत के समय भगवान राम तो प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ कितने समय पहले हुए होंगे ?
उन्हीं के बेटे भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है उन्हीं की बेटी ब्राम्ही के नाम पर ब्राम्ही लिपि की खोज हुई थी भगवान आदिनाथ ऋषभदेव नहीं असी मसी कृषि की शिक्षा सर्वप्रथम दुनिया को दी थी
यह तो वर्तमान चौबीसी की बात है ऐसी चौबीसी भूतकाल में भी हुई थी और भविष्य काल में भी होगी महावीर भगवान तो अंतिम तीर्थंकर है
@@dhyanjain4065 to pahela Jain guru kon si samay hoya tha?
@@tapasdey7635
जगदीश वे तीर्थंकर मुनीसुव्रत है तब राम भगवान पैदा हुए थे तो सोच लो प्रथम तीर्थंकर नोट गुरु ऋषभदेव कितने समय पहले पैदा हुए होंगे.... ऋषभदेव उस समय से है जब कल्पवृक्ष हुआ करते थे जब कल्पवृक्ष खत्म हो गए तो ऋषभदेव ने ही प्रथम बार लोगों को खेती करना शस्त्र चलाना सिखाया था और भी दूसरी कलाई सिखाई थी ताकि बिना कल्पवृक्ष के जीवन यापन कर सके
Ye mandir pahle digember mandir thy ab shwetambar samaj ke pass hai
Rich carving pranam
जय जिनेन्द्र
Jainism pure Bharat mein hai, jain murtiyon ki rakha honi chahiye
बहुत सुंदर है
पहले सभी राजा जैन धर्म का पालन करते थे
Maximum Oswal jain Rajput hi the .
💐JAI JAINENDAR💐
💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐
Jai Jinendra, information ke liye shukriya.
Jai Mahaveer👑🚩
Jai jinendra om mahavirya namah Om parswanathaye namah Om chandra prarrabhu jinedraye namah Mahendra Jain Reeta Jain Mehul Jain from dehradun
Amazing
अति सुंदर ।
jaiho
Namo Jinanam
Those who wants to talk about jainism I humbly request you to go meet any jain maharaj saheb first & try to clear your thoughts there.. Thank you.. If I offended anyone of you by my comment મિચ્છામિ દુક્કડમ્
Jain are the True Rajputs👑🚩Jai Kshatriyavansh 🚩👑
WT....? Jains aren't Rajputs
@@samyakjain5318 Go & read the History Bro...😂
@@Dharashiv25 Huh? You go and read...Jainism is very VERY different from Hinduism
@@samyakjain5318 Yes Bro it's different but it is said that many Rajputs have adopted Jainism isn't it True
@@Dharashiv25 yes Oswals are one of Jain Rajputs
Please make
Temples all over bharat
Om shri Aadinathaye namha
Nmskar .kha se ho .
Great sir
जिन शासन देव की जय। 🙏🙏🙏
Proud to be jain
,,preserve the ancient cultural heritage
Jainism is incredible...
वाह वाह क्या बात है
Aati sundar yaha jane ka avsar mile
, साथ में पुराना ज्ञान भंडार हैं।
जो जीता वो सिकंदर ...नहीं ! ये कहना विदेशी विधर्मी माना आसुरी वृति के लुटेरे संत महात्मा देवी देवताओं के इंसानियत के दुश्मन अक्ल के दुश्मन इस्लामी मुस्लिम हिंसक वृति इवन महावीर स्वामी राम नारायण कृष्ण के दुश्मन कौन लोग हैं प्राचीन भारतवासी सहित दुनिआ इस लूटेरी बेईमान जाती को बहुत अच्छी तरह जानती है .....अपनी रक्षा करना ही सूर्य वंशी राजपूतों का धर्म इन विदेशी विधर्मी वामपंथी माया रावण पंथियों की किसी भी छद्दम चालबाज़ियों में अब किसी भी सनातन हिन्दू को नहीं आना है .....
जिनकी पाताल में जगह है वो पाताल में जाकर रहिये बाकी जिनको जन्नत में जाना है वो वहां जाने की तयारी करें इंतजार की घड़ियाँ ख़त्म इंतजाम कीजिये ....
विधर्मियों को उनका धर्म और अपना धर्म दोनों की परिभाषा इंसान किसे तथा शैतान इसको कहा जाता है ...आइये बताते है....
जिनशासन देव की जय जय जिनेन्द्र
Echo kum Karo please
Jai Jinendra 🙏 bahut Sundar
જય જિનેન્દ્ર સુપ્રભાત ❤🙏🏻
जैन धर्म की उत्त्पत्ति लगभग 2600वर्ष पूर्व हुईं थी, मंदिर बहुत ही सुन्दर बने है, इन को बनाने वाले और बनवाने वाले बधाई के पात्र है।
नही भाई वो समय महावीर से शरू हुआ था उस से पहले 23 तीर्थंकर धरती पर आ चुके थे।
पहले तीर्थंकर ऋषभदेव का जिक्र ऋग्वेद में भी मिलता है।
इससे सिद्ध होता है कि ऋषभदेव ऋगवेद सेभी पहले इस धरती पर आ चुके थे।
@@Nayneshjain99 ha sahi bola aapne usse bhi 24 Tirthankar the
Ye mandir jab banaye gaye
Uske bad un karigaro
Korahasaymay
Dhang se gayab kar diya
Or sat hi sat
Macino
Ko bhi
Nast kar diya gaya
Jisse dusra koi na bana sake
Ab tab se
Ab tak
Or aage bhi
Bas dakbe wale hi
Hai
Or isi Karad
Ye mandir
Darsniy mandir
Ban gaya
Or aage
Kalantar
Mai bhi
Darsniy
Mandir rahaga
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Para. Psyctrist
❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Bahut achha..🙏🙏
Some of the things can be edited / removed. It needs to be historical information only and should not be specific on rich assets. Whoever are in Jaisalmer or you know anyone, can take up this issue.
Also request publisher of this video the same.
Sorry this is not allowed.
@@rinklejain8251 You can always remove your post. As a responsible person of the community and as there are several Lessons learnt, the video need not be so elaborated and the priest of the temple should be given authority to display the things in public forum. As you also may not be displaying your every household items in public.
People should be attached with temple with devotion and art. My request in this forum is for all our ancient temple and rich knowledge. We need to do all possible precaution and protection to safeguard such unique heritage.
Good video
Oldest religion of world
कलाकारिता का अजव नमुना हे,जिसे जितना सराहना किया जाए फिर भि कम हे। हर मानव जाे भि गए मात्र अाँखकि नजर से दिखे, वयान करनेवाले भि बाहिरि दृष्टिकोण हि रखा पर इन मन्दिरमे सजाए ६६०० मुर्ति से अध्यात्मिक सन्देस दिए जाे उस सत्य काे कितनाेने देखाकितनाेने नहि महत्त्व इसमे हे। हर प्राचीन मन्दिराेंसे ज्ञान हि दिए हे उसकाे पकड पाना या देख पाना अपनी अपनी चिन्तन पर निर्भर करता हे। वे काला गाेरा मुर्तियां जाे तपस्या पर निर्वस्त्र हो बैठे दिखाए उनसे ज्ञान हि वाँते हे कि तपस्या वह हे जाे देहभान से पृथक हो अात्मरति रहकर किए गए तप हि वास्तविक तप हे। महावीर जैन का हर मुर्ति निर्वस्त्र दिखानेका तात्पर्य हे जाे अात्मास्वरुपमे रहते हे वे हर इन्द्रियाे पर विजयी बनचुके होते हे, यहि जनेन्द्रिय पर विजयी अात्मा हि वास्तविक जैन हे, जाे काेहि जित न पाए हे वे नामके जैन हे।
शरिर(देह) एक अात्माके लिए वस्त्र हे, जैसे हम ने पहने वस्त्र जब जिर्ण(फिर प्रयोगमे न अा पाए) हाेते हे ताे नुतन(नए वस्त्र) पहनते हे ठिक वैसे हि अात्मा भि इसशरीर रुपि जिर्ण शरीर काे त्याग(मृत्युु वरण) कर दुसरे अन्य नुतनशरीर के रुपमे जन्म लेते हे(गीता २:२२)। यहि शरीर काे निर्वस्त्र या नग्न दिखाना हि अात्मास्वरुपमे रहना हे, शरीर रुपि वस्त्र जिर्ण हो नष्ट हाेते हे पर अात्मा न अागसे जले न पानी गलाए या वहाए, न हावा उडाए न सुखा सके यानी अजर अमर अविनाशि हे(गीता २:२३) वे अपने शरीर मेरहते किएगए कर्मभाेग अनुसार जनमकाे पाकर नए कर्मभाेगमे निरन्तरता पाते हे। अगर अात्मास्वरुपमे वैठ नित्य ईश्वरका ध्यानष्ट हो याेगमे रहना हि तप या तपस्या हे, काेइ शरीर काे हि निर्वस्त्र रखनेका भावार्थ महावीर का नहि था, इसिलिए मात्र वे मुर्ति ध्यानमे जितेन्द्रिय हो दिखाया, अन्य अर्थसे नहि पर चिन्तनमन्थन किए बिना दिगम्बर रहना महान भुल व असतकर्म हे, या महा अज्ञानता हे। मात्र जय जिनेन्द्र कहनेसे जैनी बनता नहि हे। उन मुर्तियाेंमे काेइ काला, गाेरा, पूरा सफेद दिखाना भि, ज्ञानयुक्त हे, वैसे हि वे रंगका बनाया नहि। जाे जितेन्द्रिय अात्मा हे जिनमे काेइ विकार व विकृति रहित पुरा कन्चन हे यानी सम्पूर्ण पवित्र हे वह पूरा सफेद कन्चन का शरीर वाला दिखाया, अन्य कुछ विकार सहितका अौर काेहि पूरा विकारि(काला) मुर्ति काे दिखाया। जाे वास्तविक जैन हे वह सफेद वाला हे,जाे मात्र जय जिनेन्द्र कहाँ करते हे उनमे काला अौर कम काला वाला मुर्तियां हे नहि ताे उतने सारे मुर्ति काे एक मन्दिरमे सजाए क्याें ? मुर्ति ताे एक हि काफि हे। वर्ष चाहे जितने पुराना दिखाया वह गलतफहमि के कारण हे जवकि जैनपंथका स्थापना बर्ध्यमान महावीर से शुरु हुए हे, उनका इतिहास कितना हे वह ताे जगजाहेर हे। महावीर के समकालीन सिद्धार्थ गौतम ने भि उसि सत्यका बाेध किए पर निर्वस्त्र रहे नहि मात्र सभिकाे अात्मास्वरुप का समझ देने अर्थ नग्न या वस्त्ररहित रहनेका हिम्मत केवल बर्ध्यमान ने हि करसका इसिलिए उनको "महावीर" कहे प्रसिद्ध बना रहा अन्य किम्बदन्तियां अज्ञानता के कारण हि दिखे, अन्यथा जैनपंथमे हि तेरापंथ, स्वेताम्वरि, व दिगम्वरि क्याें ? जैन ताे सभि हे ! यहि हे तमसता। मात्र मन्दिर का अवलोकन करना भि तमसता हि हे, उनसे मिले ज्ञान सभि के लिए उजगार करना भि एक तरहका कल्याण का कर्म हे , कमेन्ट नहि चिन्तन हे, धन्यवाद !!!
JAI JINENDRA
Kaun se bhasa me hai
आभार
Adbhut.
Jain dharma ki jai