गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
जैसे करोड़ों नक्षत्रो में चंद्रमा चमकता है उसी प्रकार विश्व के सभी राजा तथा सम्राटों में सम्राट अशोक का नाम सबसे ऊंचा है तथा सर्वोपरि है तथा सबसे चमकीला है जय मौर्यवंशी जय सम्राट अशोक
वह एक समय था जब भारत सोने की चिड़िया था । आशोक सम्राट के शासन काल में जानता बहुत सुखद जीवन जी रहे थे । ऐसा सम्राट लोगों के दिलों बस चुका था नमो बुध्दाय जय सम्राट
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
दुनिया ने इस देश से बुद्ध लिया इस देश का नाम दुनिया में भगवान बुद्ध, चक्रवर्ती सम्राट अशोक और बाबासाहब कि वजह से हि अमर हे...नमो बुध्दाय जय सम्राट अशोक🙏🙏
आक्रमणकारी और घुसबैठीयो मे फर्क होता है ! भारतपर आक्रमण करणेवाले हो या कोई भी आक्रमणकारी साम्राज्यविस्तार उनका मकसद होता है ! वे प्रजाके धार्मिक बाबीयोमे कभी हस्तक्षेप नही करेंगे क्योंकी उन्हे उनके भरोसे ही वहापर सत्ता कायम करणी होती है किसीके परसनल मॅटर या घरगुती मामले मे हस्तक्षेप करेंगे तो लोग धार्मिक आझादी के लिए उनके खिलाफ होकर उस सत्ता से बगावत करेंगे जैसा की शिक्षाबंदी करके शिक्षा के एकाधिकार से पढे़नेलिखे होने के कारण शुरुवात मे अंग्रेजो की चमचेगीरी कर साथ देनेवाले बारामनोने की थी जब अंग्रेजोने उनके धार्मिक मॅटर या कुप्रथावो को बंद करना शुरु कर दिया तब उन्हे अंग्रेज उनके स्वार्थ के लिए बनाए पाखंडके लिए खतरा लगने लगे तब जाके उन्होने भारत के नौजवानो को उनकी खुद की धार्मिक आझादी के लिए अंग्रेजो के खिलाप भडकाया ! भारत की या भारतीयो की आझादी के लिए नही ! दुनियाके कोई भी आक्रमणकारीयोने कभी किसी का धर्मपरिवर्तन जबरदस्ती नही किया भारतीयोने उनका धर्मपरिवर्तन तो विदेशी बारामण घुसबैठीए चोरो के अन्याय,अत्याचार,जातीवर्ण भेदभाव के कारण पिडीत,वंचीतोने किया है ! अगर धर्मपरिवर्तन या संस्कृती थोपना आक्रमणकारीयो का मकसद होता तो आज भारत मे सभी या तो मोगल होते या तो अंग्रेज आज सभी भारतीय या तो मोगल होते या तो अंग्रेज होते ! भारतीयो का धर्मपरिवर्तन तो भारत के प्राचीन बौध्दस्थलोपर कब्जा करनेवाले स्वार्थी घुसबैठीए बारामण चोरोने किया है जिन्होने भारत के बौध्दस्थलोपर बौध्द मठो,संघोमे,विश्वप्रसिध्द विश्वविद्यालयो मे शिक्षा के बहाने या बुध्दधम्म को अपनाने के बहाने वहापर घुसबैठ कर कब्जा कर लिया है और पाखंडसे भारतीयोपर खुद की गाली और संस्कृती थोपकर उसी थोपी हुई गालीपर उन्होने हमे गर्व करने को बोला है !🕯✨दिपदानोत्सव, 84000अशोकस्थंभ⛩️
🌹 बुध्दं शरणं गच्छामि 💕 🌹 शंघम् शरणं गच्छामि 💕 🌹 धम्मं शरणं गच्छामि 💕 🇮🇳 सत्यमेव जयते 🇮🇳 हमें गर्व है भारत के गौरवशाली इतिहास पर, हम सबको इस देश के महान शासकों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए सिकंदर जैसे शासक को उसके भारतविजय का स्वप्न चकनाचूर कर दिया और उसे खाली हाथ लौटने को मजबूर कर दिया ।
यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं कि अशोक किस जाति एवं कुल से थे महत्वपूर्ण यह है की मानव से महामानव तक का सफर उन्होंने तय किया असाधारण है धर्म शिक्षा कला वीरता उदारता का अद्भुत सममिश्रण मनुष्योचित नहीं देवी गुण है आज हम सब भारतवासी वासियों को चक्रवर्ती सम्राट देवा नाम प्रिय अशोक पर गर्व है जिन के द्वारा दिए गए धर्म चक्र चार शेरों का चिन्ह और उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम अखंड भारत राष्ट्र की परिकल्पना हमारे देश को एक राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करता है
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 चुतिया बनाना छोड़ और सही बात समझ ले , 1166 में ब्राह्मणों ने अपने ही जाती के ब्राह्मणों को राजपूत बनाया था जिसका 1178 में पृथ्वीराज राजपूत नाम का पहला राजा बना । जिसकी बहुजनो पर अत्याचार की निति की वजह से मुहम्मद गोरी ने मार डाला । जब तक भारत में बौद्ध धम्म के राजाओ का राज था कोई राज हार नहीं पाया और बाद में कोई भी ब्राह्मण राजा और 1166 में बनी राजपूत जाती का कोई भी राज एक भी युद्ध जीत नहीं पाया । #हिन्दू इतिहास हारों की दास्तान नामक किताब पढ़ सब पता चल जायेगा । अकबर और उससे पहले राजपूतो ने अपनी बेटियो को 60-60 वर्ष के मुसलमानो से शादियां कर के गुलामी में राज किया है । शर्म नहीं आती बकवास करते हुए !!
@@thekoregaon4601 भारत में इस्लाम के आगमन के पश्चात यहां की त्रस्त हिंदू जनता ब्राह्मण की गलाजत से छुटकारा पाने के लिए स्वेक्षा से इस्लाम कबूल किया। मोहम्मद गोरी ने वैसे किताबों को जला दिया जो धार्मिक मतांधता को बढ़ावा देते थे जो पुस्तक ब्राह्मणों के लिए गुलाम पैदा करते थे। तुम्हारे अंदर सच सुनने का शक्ति नहीं है। तुम सब दिन ब्राह्मणों के सुझाए हुए धार्मिक कर्मकांड के ही गुलाम रहोगे। मुझे लगा था ऐसे ज्ञान की वर्षा में तुम नहा उठोगे। सांख्य दर्शन हमारे देश के ही सांस्कृतिक धरोहर थी जो पुरुष से प्रकृति का विकास मानता है लेकिन इसे विकसित करने की बजाय ब्राह्मणों ने धर्म के चक्रव्यूह में फंसा दिया। खैर मुझे तुमसे बहस नहीं करना है लेकिन तुम्हारी अज्ञानता पर मुझे दया है।
मौर्य वंश) शाक्य वंश के ही थे जिनका जन जन कल्याणकारी योजनाओं और शासन-प्रशासन का विश्व में कोई शानी नहीं है।👌👏👏👏👍🙏🙏🙏 सब पर तथागत गोतम की करूणा हो।सबका बहुत मंगल हो।🙏🙏🙏💐💐💐🇮🇳🇮🇳🇮🇳
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 सर पर गिरे हो क्या। इतिहास ठीक से पढ़ लो नालंदा तक्षशिला विश्वविद्यालय को जान लो भारत बुद्ध का देश था है और रहेगा बुद्ध के मानवतावाद को सारे दुनियाने अपनाया। जग में बुद्धा का नाम है एहि भारत की शान है !!! जय भीम नमो बुद्धाय
@@aquibhyaat3385Tum Brahman log ki akalanshakti dimakh ke bahar kyo hoti hai. Katha kahani likhane ka tumhe bahot shouk hai. Buddha kal me aisehi kalp anik tathyahin katha kahani likhkar tumane bharatvasiyo ko murkha banaya hai. Vastavikata ko chupa kar jhute asatya katha logo ke samane rakhate ho. Itihas ka jnyan bilkul hai nahi. 'The great emperor of ashok samrat' yah granth London ke musium me hai jakar padh lo akal me a jayega. Vishva vijeta ashok vijaya dashami. Bharat me isase mahan aur parakrami raja dusara koyi nahi huva tha.
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की जय जिन्होंने आचार्य चाणक्य की सहायता से महान अखन्ड भारत जैसा साम्राज्य स्थापित किया औरपश्चिम एशिया केएवन यूनानी आतताइयों के आक्रमण से भारत की रक्षा की।इसका भारतबंशियों को गर्व होना चाहिये।जयहिन्द
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@samratasoka3739 dear bro ashok ke smay bodh ek dhrm ke rup me nhi snatan dhrm me ek reform ke rup me tha us smay aaj ki trh ka religion ka concept hi nhi tha ye religion ka concept to yha pr muslimo aur isaiyo ke aane ke bad aaya..hmare yha dhrm ka arth religion nhi blki achhe kamo se liya jata tha n ki kisi puja pdhati se.. jb ashok ne pure bhart ko jeeta us smay vo ek snatani tha bad me usne bodh shikasho ko sveekar kiya .is pkar ashok jb chkrvtei smrat bna us smay vo ek vedic dhrm ko mamane vala raja tha ..bodh bnne ke bad to usne koi ladai hi nhi ldi thi ji kuch bhi kiya ek snatni raja ke rup me kiya tha. Vaise budh bhi toh hmare hi hai koi gair thode hi hai hr snatni unka utna hi smman krta h jitna anay mahapurushon ka..
@@SandeepYadav-gx3nj भ्राता अपनी थ्योरी अपने पास रखो। सम्राट असोक के समय आजिवक अलारकालाम निगुंठनाथपट्ट कश्यप और बुद्ध बस इनकी विचारधारा चलती थी । और सनातन तो विशेषण है कोई नाम नही है। जैसे हिंदु नाम है जो बहुत बाद मे आया लगभग फायहान के बाद और अल्बरुनी से पहले। और असोक के शिलालेखो से पता चलता है की असोक ने कलिंग युद्ध के 2वर्ष पहले ही बुद्ध को अपनाना शुरु कर दिया था। और असोक के कोई भी शिलालेख मे सनातन का कोई उल्लेख नही है तो अपनी गपोड कहानी अपने पास रखो
We are proud and excited to hear all episodes of Awaz India TV. These all are much informative and useful to all those who are having interest in Buddha Dhamma and Sangha. Dr Phule sir's narration touches to heart. NAMO Buddhay Jay Bhim
Buddha is not the light of Asia but also the whole world. If all people in the world will follow buddhism the world will be a heaven. Namo buddhaya.Im a Buddhist from sri lanka 🇱🇰☸🙏
Great Samrat Ashok , useful information, Thanks for video,,because of him we came to know Buddhism otherwise manuvadi peoples fully tried to demolish Buddha's vachan/ speech , samrat ashok spread it out of India sothat it preserved so Thanks Samrat Ashok,all Bhante, Bhante Mahendra,Dr Babasaheb Ambedkar n great Lord Budha,,,Mrs Nileema Birhade. Nasikroad
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
अशोक मौर्य क्षत्रीय वंश का था ।मौर्य उस समय बहुत राजा थे। बाद में उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति कमजोर हो गई थी।और आज ये ओबीसी वर्ग में शामिल है परंतु ये इस समय सबसे ताकतवर वंश था जहाँ तक मेरी जानकारी है।
Yahi log ashok kay namm par sanatan ko gali detya hai Ram ko ramayan ko kalpnik batatya hai Brahman ny buddh dharm khatam kiya Sarya st sc obc Buddhist thay Braham, Rajput aur vaishya ny inko mar kar hindu banaya Yahi log boltya hai ayodhya kalpnik hai Shree Ram nahi gautam buddh ki sakat nagri hai. Sirf iss video my Hindu ko gali nahi di Inn logo ny
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aryawartaabhishek6654 गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी।
🇮🇳🦚☸अखंड भारत के निर्माता प्रथम 👑चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य! अखंड भारत के संरक्षक विश्वविजेता 👑चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान मौर्य की जय!! ☸विश्व गुरु तथागत भगवान गौतम बुद्ध की करूणा हो!!! नमो बुद्धाय! सम्राट अशोक महान के पूर्वज बुद्धिस्ट और क्षत्रिय हैं!जय मौर्यवंशी! 🇮🇳🦚☸🌸❤️🌺💐🌹✌️🙏
One of the greatest Indian Emperor who extended the boundary of India up to Iran border after kalinga war he stopped the war other wise he extended whole Asia and Urope .
अशोक सिर्फ बौद्ध थे और हम उनको बौद्ध के ही रूप में मानते हैं...आज कल के चूतियों को कौन समझाये की बौद्ध धर्म में जातियां नही होती हैं...नमन सम्राट अशोक🙏
ये ब्राह्मणों का चाल है। जब कोई प्रसिद्ध होता तो उसका ब्रह्मणीकरण कर देते हैं। एक अंग्रेज आकर बता गया यहां सम्राट असोक जैसा विशाल राजा नहीं तो ये लोग इतने महान राजा को इतिहास से गायब कर देते।
@@THEKRRAHUL ब्रमाण ही दोषी है सब जगह लोल आरक्षण मिलने के 75 साल बाद भी खुद का दोष दुसरो पर मंढते रहोगे तुम कब इतिहास लिखने वाले बनोगे ब्रामण रावण का नाम लगा कर आदर्श मानेंगे, महिषासुर को पुर्वज बताओ गे, शाक्य बणिया जाती में आये भगवान् बुद्ध को मानोगे खुद बन जाओ ईश्वर जिस तर संत रामपाल बन बैठा है
@@mamtasharma-activeschool3256 तो आपके सो कॉल्ड हिंदुवो में दुसरे धर्मो को बदनाम किया जाता है? और अपना धर्म दुसरो पर थोपा जाता है? भगवा दहशतवाद किसे केहते है?
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
बौद्ध के बाद तीन महान लोग आए, धर्म कीर्ति अशोक और शांति देव। उन तीन लोगों ने बौद्ध धर्म को भारत में बहुत मजबूत किया, धर्म कीर्ति ने बहस या तर्क से बौद्ध का प्रसार किया, अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनी शक्ति से फैलाया, शांति देव ने शांति से बौद्ध का प्रसार किया।
Samrat Ashok ka Bharat thha jab gharo me taale nahi lagte thhe jab bharat sone ki chidiya kahlata thha.. Kanshiram ji yahi samrat Ashok ka Bharat chahte thhe.. Jaybhim sathiyo
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है। बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका। ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था। यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था। बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था। राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है। कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था। अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है। बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
आपने सम्राट अशोक के जीवन, राज व्यवस्था और बौद्ध धर्म में चक्रवर्ती सम्राट की रुचि से लेकर दुनिया में उसे फैलाने की सार्थक जानकारी आपके वीडियो से मिली आपका आभार, साधुवाद 🙏🙏 आप इसी तरह की और औथेन्टिक जानकारी सम्राट अशोक के जीवन चरित्र के वारे में देते रहेंगे ऐसी आशा करता हूँ
Bhai aap snaptube me 1 minute me download kar lijiye fir whats app par share kijiye Pehle play store se snaptube download karo fir usme type kar do is video ka naam
ऐतिहासिक सम्राट अशोक के बौद्धमयी भारतवर्ष के इतिहास के सबसे बड़े एवं महान् शासन काल पर आपका प्रयास सराहनीय है।
आवाज इंडिया को सेल्यूट
मौर्यवंश की वीर गाथा की एक महान और शानदार इतिहास की एक झलक ।
जय सूर्यवंश
Jai samrat ashok aap jaisa koi nahi
प्रियदर्शी सम्राट अशोक के बारें में बहुत ही सुंदर जानकारी , संपादन , चित्रण तथा निवेदन किया गया है । पार्श्वसंगीत भी बहुत बढ़िया है👌👌👍🙏 .
महान सम्राट अशोक के जीवन गाथा को सम्पूर्ण भारत में प्रचार प्रसार करना चाहिए।
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
Lolololloololllooolo
@@aquibhyaat3385 bramhno ki hatya jaruri hai ,achha bete
मादरचोदो तभी कटुए काटे जाते है
जैसे करोड़ों नक्षत्रो में चंद्रमा चमकता है उसी प्रकार विश्व के सभी राजा तथा सम्राटों में सम्राट अशोक का नाम सबसे ऊंचा है तथा सर्वोपरि है तथा सबसे चमकीला है जय मौर्यवंशी जय सम्राट अशोक
BY H. G. WELLS🏆🏆.
Ake ram sahi sashi 100 taka sahi he nais samrata Asoka 🌹🌹🥀🥀
Thanks you
🙏🙏🙏🙏🙏
जय मौर्यवंश 👍👍👍👍👍👍👍👍👍
जय हो महान सम्राट अशोक मौर्य की ।
वह एक समय था जब भारत सोने की चिड़िया था । आशोक सम्राट के शासन काल में जानता बहुत सुखद जीवन जी रहे थे । ऐसा सम्राट लोगों के दिलों बस चुका था
नमो बुध्दाय जय सम्राट
🎉videshi bramhan mule dagle sample
सम्राट बहुत से हुए ओर चले गए पर जो सम्राट लोगो के दिलो में जगह बनाये जो लोगो की भलाई के लिए काम करे वो सम्राट सिर्फ एक था और वो था साम्राट अशोक
Bodhh hi sachcha brahmin ko kaha jata tha, baad me dwesh, irshya, lalach, ahankari, jaatiwaadi aur 5 vikaro ne milke nakli pakhandi paida Kar diye
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@gaurav2254 nahi
Right
बहोत सुंदर ,अशोक का जीवन प्रत्येक भारतीय को प्रेरणा देता रहेगा#omprakashausar
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
व्वाँव... ऐसेही डाँक्युमेंट्री चाहीये थी...बहोत अच्छी जानकारी दि गई आपके द्वारा...
बहुत बहुत अच्छा है मौर्यवंश का इतिहास पूरी दुनिया में सही मार्ग पर ले जाता है ।
Phir se kom ko jagane kam kiya
Hai
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 samrat Ashok buddh bhagwan ko mante the
Thank you very much for taking the history of Emperor Ashok, सम्राट अशोक का इतिहास लेने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
दुनिया ने इस देश से बुद्ध लिया इस देश का नाम दुनिया में भगवान बुद्ध, चक्रवर्ती सम्राट अशोक और बाबासाहब कि वजह से हि अमर हे...नमो बुध्दाय जय सम्राट अशोक🙏🙏
दजटजटदटटदडटजदटजटजटजटजजटटजटदटटजददद
Galit fami hai
आक्रमणकारी और घुसबैठीयो मे फर्क होता है ! भारतपर आक्रमण करणेवाले हो या कोई भी आक्रमणकारी साम्राज्यविस्तार
उनका मकसद होता है ! वे प्रजाके धार्मिक बाबीयोमे कभी हस्तक्षेप नही करेंगे क्योंकी उन्हे उनके भरोसे ही वहापर सत्ता कायम करणी होती है किसीके परसनल मॅटर या घरगुती मामले मे हस्तक्षेप करेंगे तो लोग धार्मिक आझादी के लिए उनके खिलाफ होकर उस सत्ता से बगावत करेंगे जैसा की शिक्षाबंदी करके शिक्षा के एकाधिकार से पढे़नेलिखे होने के कारण शुरुवात मे अंग्रेजो की चमचेगीरी कर साथ देनेवाले बारामनोने की थी जब अंग्रेजोने उनके धार्मिक मॅटर या कुप्रथावो को बंद करना शुरु कर दिया तब उन्हे अंग्रेज उनके स्वार्थ के लिए बनाए पाखंडके लिए खतरा
लगने लगे तब जाके उन्होने भारत के नौजवानो को उनकी खुद की धार्मिक आझादी के लिए अंग्रेजो के खिलाप भडकाया ! भारत की या भारतीयो की आझादी के लिए नही !
दुनियाके कोई भी आक्रमणकारीयोने कभी किसी का धर्मपरिवर्तन जबरदस्ती नही किया भारतीयोने उनका धर्मपरिवर्तन तो विदेशी बारामण घुसबैठीए चोरो के अन्याय,अत्याचार,जातीवर्ण भेदभाव के कारण पिडीत,वंचीतोने किया है !
अगर धर्मपरिवर्तन या संस्कृती थोपना आक्रमणकारीयो का मकसद होता तो आज भारत मे सभी या तो मोगल होते या तो अंग्रेज आज सभी भारतीय या तो मोगल होते या तो अंग्रेज होते !
भारतीयो का धर्मपरिवर्तन तो भारत के प्राचीन बौध्दस्थलोपर कब्जा करनेवाले स्वार्थी घुसबैठीए बारामण चोरोने किया है जिन्होने भारत के बौध्दस्थलोपर बौध्द मठो,संघोमे,विश्वप्रसिध्द विश्वविद्यालयो मे शिक्षा के बहाने या बुध्दधम्म को अपनाने के बहाने वहापर घुसबैठ कर कब्जा कर लिया है और पाखंडसे भारतीयोपर खुद की गाली और संस्कृती थोपकर उसी थोपी हुई गालीपर उन्होने हमे गर्व करने को बोला है !🕯✨दिपदानोत्सव, 84000अशोकस्थंभ⛩️
@@khandeshawargadade4504 sahi hai ese swikar karo
नमो बुद्धाय
जय चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य विश्व महान जय मौर्यवंश जय अखण्ड भारत नमो बुध्दाय
hindu ho ya Buddhist?
Namo buddhay
निशांत बौद्ध ।।। जय हो मौर्य वंश ।।
@@ghanshyammaurya6606 Jay morya vans
@@nitindurge7978 hindu mtlb murkh.
Aur hindu word albruni ne diya tha
अखंड भारत के निर्माता सम्राट अशोक महान का शासन का वर्णन सोने के अक्षरों में इतिहास में दर्ज है। जय हो मौर्य साम्राज्य, जय भारत।
खर्या अर्थाने प्रसार आणि प्रचार करणारे प्रियदर्शनी सम्राट आशोक की जय .
🌹 बुध्दं शरणं गच्छामि 💕
🌹 शंघम् शरणं गच्छामि 💕
🌹 धम्मं शरणं गच्छामि 💕
🇮🇳 सत्यमेव जयते 🇮🇳
हमें गर्व है भारत के गौरवशाली इतिहास पर, हम सबको इस देश के महान शासकों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए सिकंदर जैसे शासक को उसके भारतविजय का स्वप्न चकनाचूर कर दिया और उसे खाली हाथ लौटने को मजबूर कर दिया ।
Jay bhim
Abhishek Maurya namo Arhat bagvato
Jay bhim bhai
JAY BHIM
@@prashantnastik8109 नूं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। एंकर को विशेष आभार 🙏🙏🙏
यह बात उतनी महत्वपूर्ण नहीं कि अशोक किस जाति एवं कुल से थे महत्वपूर्ण यह है की मानव से महामानव तक का सफर उन्होंने तय किया असाधारण है धर्म शिक्षा कला वीरता उदारता का अद्भुत सममिश्रण मनुष्योचित नहीं देवी गुण है आज हम सब भारतवासी वासियों को चक्रवर्ती सम्राट देवा नाम प्रिय अशोक पर गर्व है जिन के द्वारा दिए गए धर्म चक्र चार शेरों का चिन्ह और उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम अखंड भारत राष्ट्र की परिकल्पना हमारे देश को एक राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करता है
आपका बहुत बहुत साधुवाद ।
हमारे महान पिता की शौर्य गाथा सुनकर सहसा रोना सा आ गया ।
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 चुतिया बनाना छोड़ और सही बात समझ ले , 1166 में ब्राह्मणों ने अपने ही जाती के ब्राह्मणों को राजपूत बनाया था जिसका 1178 में पृथ्वीराज राजपूत नाम का पहला राजा बना ।
जिसकी बहुजनो पर अत्याचार की निति की वजह से मुहम्मद गोरी ने मार डाला ।
जब तक भारत में बौद्ध धम्म के राजाओ का राज था कोई राज हार नहीं पाया और बाद में कोई भी ब्राह्मण राजा और 1166 में बनी राजपूत जाती का कोई भी राज एक भी युद्ध जीत नहीं पाया ।
#हिन्दू इतिहास हारों की दास्तान नामक किताब पढ़ सब पता चल जायेगा ।
अकबर और उससे पहले राजपूतो ने अपनी बेटियो को 60-60 वर्ष के मुसलमानो से शादियां कर के गुलामी में राज किया है ।
शर्म नहीं आती बकवास करते हुए !!
@@thekoregaon4601 भारत में इस्लाम के आगमन के पश्चात यहां की त्रस्त हिंदू जनता ब्राह्मण की गलाजत से छुटकारा पाने के लिए स्वेक्षा से इस्लाम कबूल किया। मोहम्मद गोरी ने वैसे किताबों को जला दिया जो धार्मिक मतांधता को बढ़ावा देते थे जो पुस्तक ब्राह्मणों के लिए गुलाम पैदा करते थे। तुम्हारे अंदर सच सुनने का शक्ति नहीं है। तुम सब दिन ब्राह्मणों के सुझाए हुए धार्मिक कर्मकांड के ही गुलाम रहोगे। मुझे लगा था ऐसे ज्ञान की वर्षा में तुम नहा उठोगे। सांख्य दर्शन हमारे देश के ही सांस्कृतिक धरोहर थी जो पुरुष से प्रकृति का विकास मानता है लेकिन इसे विकसित करने की बजाय ब्राह्मणों ने धर्म के चक्रव्यूह में फंसा दिया।
खैर मुझे तुमसे बहस नहीं करना है लेकिन तुम्हारी अज्ञानता पर मुझे दया है।
@@thekoregaon4601 "हिंदू समाज के पथभ्रष्टटक : तुलसीदास" के भी किताब पढ़ लेना।
भगवान बुद्ध के दिए हुए उपदेश पर जितने मनुष्य एवं देश माने उनका उपकार हुआ। जय सम्राट अशोक जय हो अशोक के वंशजों। मैं आपका अभारी रहुगा
प्रियदर्शी सम्राट अशोक के नियमो को पूरे भारत में प्रचार प्रसार करना चाहिए
सबसे पहले हम सब को प्रियदर्शी सम्राट अशोक महान को अपने दिल में बसाना चाहिए।उनका प्रचार प्रसार करना चाहिए 🙏🙏
बहुत ही सुंदर तरीके से आपने इसमें दिखाया और बताया यह मौर्य वंश के नहीं थे यह मानव बन चुके थे इसीलिए इनका नाम महान अशोक बताया जाता
Dost maski ka laghu shila lekh pado , jis me Mahaan Samrat Ashok ne apne aap ko maurya shakya bauddh bataya hai .
Gujrat ka silalekh dekh ke aavo bhai
मौर्य वंश) शाक्य वंश के ही थे जिनका जन जन कल्याणकारी योजनाओं और शासन-प्रशासन का विश्व में कोई शानी नहीं है।👌👏👏👏👍🙏🙏🙏
सब पर तथागत गोतम की करूणा हो।सबका बहुत मंगल हो।🙏🙏🙏💐💐💐🇮🇳🇮🇳🇮🇳
@@ravimaurya5366 ye bhimte unhe apna saabit karna chahte hai
सम्राट् अशोक कि जय जय जय हो सदा सदा के लिये । मै बहुत ही भभुक हुइ सम्राट अशोक कि सत्य कहानी सुन्के ! 😭😭😭
Nice history of Ashoka
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 ja beta , school ja😢😢😢😢
Chaloo Buddha ke aur 👍
@@aquibhyaat3385 nahi tha
सम्राट अशोक की जय!भगवान बुद्ध को नमन!!
बुद्धम शरणम गच्छामि संघम शरणम गच्छामि धम्मम शरणम गच्छामि जय अशोक जय बुध
महान राजा सम्राट अशोका द ग्रेट
जय भीम नमो बुद्धाय
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 सर पर गिरे हो क्या।
इतिहास ठीक से पढ़ लो
नालंदा तक्षशिला विश्वविद्यालय को जान लो
भारत बुद्ध का देश था है और रहेगा
बुद्ध के मानवतावाद को सारे दुनियाने अपनाया।
जग में बुद्धा का नाम है एहि भारत की शान है !!!
जय भीम नमो बुद्धाय
@@aquibhyaat3385Tum Brahman log ki akalanshakti dimakh ke bahar kyo hoti hai. Katha kahani likhane ka tumhe bahot shouk hai. Buddha kal me aisehi kalp anik tathyahin katha kahani likhkar tumane bharatvasiyo ko murkha banaya hai. Vastavikata ko chupa kar jhute asatya katha logo ke samane rakhate ho. Itihas ka jnyan bilkul hai nahi. 'The great emperor of ashok samrat' yah granth London ke musium me hai jakar padh lo akal me a jayega. Vishva vijeta ashok vijaya dashami. Bharat me isase mahan aur parakrami raja dusara koyi nahi huva tha.
प्रियदर्शी सम्राट अशोक बहुत ही महान बौद्धिस्ट राजा थे
ऐसे ही सम्राट की वजह से हमारे देश का नाम पूरी दुनिया में लिया जाता है जय भीम जय भारत
You are right brother
ķ
@@n.r.dheyda )
Samrat Ashok bhi Bhagwan. Shree Krishna ka hi rup the, ye baat mat bhulo!
@@gaurav2254 aree kaise chutiye ho yaar aap matlab 😆
सैनी, मोर्य ,कुशवाह ,माली जाती के पुर्वज --सम्राट अशोक को कोटी कोटी नमन ,
Sharadsingh Saini ye dsbi csaste chtriu rsjput me aati hai smrat ashok gotm budh ye rajput the
Ashok koi jaati ko nhi maante they smjhe.
Agar Ashok saini , kushwaha, maali hote to aaj k sbhi saini, kushwaha buddhist hote.
Pramod Prabhakar sahi kaha.
Visrsh Raj beta woh kshatriya the rajput nahi. Rajput Huns Scythian hepthalites k mix breed hai
ashok gadariya caste ke the
जय सम्राट अशोक महान
जय चंद्रगुप्त मौर्य
ऐसे महान लोगो के बारे में आप जो सच्चाई बता रहे है हमे आप पर गर्व महसूस है
साधुवाद इस प्रस्तुति के लिए
सबका बहुत मंगल हो।
जय हो शाक्य वंश/मौर्य वंश और उनकी जन जन कल्याणकारी योजनाओं और शासन-प्रशासन की।🙏🙏🙏💐💐💐🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Greatest king in the world.
True follower of bauddha Dharma. Naman to samrat Ashok.
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
I got goosebumps thanks for the great Indian Kingdom SAMRAT ASHOKA
बहुत सही विडियो जयबुद्धाय नमः अशोक सम्राट धन्यवाद भाई sजी जो आप ने विडियो बनाऐ
JAI BUDDHA..JAI ASHOKA..JAI BHIM..
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की जय जिन्होंने आचार्य चाणक्य की सहायता से महान अखन्ड भारत जैसा साम्राज्य स्थापित किया औरपश्चिम एशिया केएवन यूनानी आतताइयों के आक्रमण से भारत की रक्षा की।इसका भारतबंशियों को गर्व होना चाहिये।जयहिन्द
Aap kae Naam Sae Ram Nekalo 🗣️📢🇮🇳
@@jayBharatiraanga6425 bharat bhi majharaj shantanu ke pita ka nam tha
Bhn ke lnd
किंग ऑफ इंडिया सम्राट अशोक ✌️❣️
अखंड भारत की क्या पहचान सम्राट स्तंभ चक्र निशान
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 nahi
@@aquibhyaat3385 chandragupat maury shudra tha tO ashok kaise rajput ho jayega
@@amitgautam4491 the use of Rajput word alludes to a warrior, but not caste. Now it is considered as caste. Then it was considered as warriors
I really love Samrat Ashoka....
महान चक्रवर्ती आर्य हिन्दू सम्राट अशोक मौर्य महान की विजय गाथा सदैव अमर रहेगी। बुद्ध भी अपने है वो भी हर सनातनी के लिए आदर के पात्र है।
😂😂😂😂hindu raja...
@@samratasoka3739 dear bro ashok ke smay bodh ek dhrm ke rup me nhi snatan dhrm me ek reform ke rup me tha us smay aaj ki trh ka religion ka concept hi nhi tha ye religion ka concept to yha pr muslimo aur isaiyo ke aane ke bad aaya..hmare yha dhrm ka arth religion nhi blki achhe kamo se liya jata tha n ki kisi puja pdhati se.. jb ashok ne pure bhart ko jeeta us smay vo ek snatani tha bad me usne bodh shikasho ko sveekar kiya .is pkar ashok jb chkrvtei smrat bna us smay vo ek vedic dhrm ko mamane vala raja tha ..bodh bnne ke bad to usne koi ladai hi nhi ldi thi ji kuch bhi kiya ek snatni raja ke rup me kiya tha. Vaise budh bhi toh hmare hi hai koi gair thode hi hai hr snatni unka utna hi smman krta h jitna anay mahapurushon ka..
@@SandeepYadav-gx3nj भ्राता अपनी थ्योरी अपने पास रखो।
सम्राट असोक के समय आजिवक अलारकालाम निगुंठनाथपट्ट कश्यप और बुद्ध बस इनकी विचारधारा चलती थी ।
और सनातन तो विशेषण है कोई नाम नही है। जैसे हिंदु नाम है जो बहुत बाद मे आया लगभग फायहान के बाद और अल्बरुनी से पहले।
और असोक के शिलालेखो से पता चलता है की असोक ने कलिंग युद्ध के 2वर्ष पहले ही बुद्ध को अपनाना शुरु कर दिया था।
और असोक के कोई भी शिलालेख मे सनातन का कोई उल्लेख नही है तो अपनी गपोड कहानी अपने पास रखो
@@SandeepYadav-gx3nj तुम्हे ज्ञान नही है शायद मौर्य काल का किसी वॉटसप यूनिवर्सिटी वाले लगते हो।
@@samratasoka3739 भाई तुम शायद अनार्य मुलनिवासी हो इसलिये हर वो चीज जो आर्यो से जुड़ी होती है आपको अछि नही लगती।।
नमो बुद्धाय जय सम्राट अशोक 🇮🇳बाबासाहब आंबेडकर जी कि वजह से अमर है 🌷🌷🌷🌷🌷☸️
We are proud and excited to hear all episodes of Awaz India TV. These all are much informative and useful to all those who are having interest in Buddha Dhamma and Sangha. Dr Phule sir's narration touches to heart.
NAMO Buddhay Jay Bhim
विश्व का सबसे महान राजा
Yes 💯 one of the all times best ruler....
जब तक सूरज चांद रहेगा सम्राट अशोक जी का नाम रहेगा जय भीम नमो बुद्धाय।
Vipasana Practice Prachar Prasar karo 🗣️📢
नमो बुध्दय
जय अशोक दादा😊😘🙇🙏 from Nalanda (Rajgir)
Ashoka The Great was the greatest ruler in lndian History no other King can be compared with him
Light of Asia-Buddha
Light of India-Ambedkar
King of Asia-samrat Ashok
Buddha is not the light of Asia but also the whole world. If all people in the world will follow buddhism the world will be a heaven. Namo buddhaya.Im a Buddhist from sri lanka 🇱🇰☸🙏
Great Samrat Ashok , useful information, Thanks for video,,because of him we came to know Buddhism otherwise manuvadi peoples fully tried to demolish Buddha's vachan/ speech , samrat ashok spread it out of India sothat it preserved so Thanks Samrat Ashok,all Bhante, Bhante Mahendra,Dr Babasaheb Ambedkar n great Lord Budha,,,Mrs Nileema Birhade. Nasikroad
समराट अशोक महान राजा थे यह एक स्वर्ण युग के एतिहासिक राजा है.
मुलनिवासी सम्राठ अशोक विजई रहे ....✊🏻
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
अशोक मौर्य क्षत्रीय वंश का था ।मौर्य उस समय बहुत राजा थे। बाद में उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति कमजोर हो गई थी।और आज ये ओबीसी वर्ग में शामिल है परंतु ये इस समय सबसे ताकतवर वंश था जहाँ तक मेरी जानकारी है।
@@aquibhyaat3385 बहुत हद तक सही है
@@SandeepYadav-gx3nj जो भी हो आपकी भाषा बड़ी मधुर है। सौम्यता है आपके अंदर। शांत मिजाजी व्यक्ति हैं आप। अध्ययन प्रिय भी है आप। bye Sandeep ji
क्षत्रिय वंश नहीं वर्ण है. , ओर भारतीय मुलनिवासी लोगो का वंश नागवंश है. ओर विदेश युरेशियन ब्राम्हणों का वंश उन्हे ही पता होगा ....
सम्राट अशोक के सम्राट बनने का सफर भी जानना है मुझे. बौद्ध धर्म स्वीकारने से पहले.
Salaa.dil pighal jata hai inka story sun k....jai bhim jai ashok
NAMO BUDDHAY....JAI ASHOKA..JAI BHIM....
बोलो *देवनाम प्रिय प्रियदर्शी सम्राट अशोक की जय.......*
chakravartin Ashok ki jay
Trupti Tiwari
.
Yahi log ashok kay namm par sanatan ko gali detya hai
Ram ko ramayan ko kalpnik batatya hai
Brahman ny buddh dharm khatam kiya
Sarya st sc obc Buddhist thay
Braham, Rajput aur vaishya ny inko mar kar hindu banaya
Yahi log boltya hai ayodhya kalpnik hai
Shree Ram nahi gautam buddh ki sakat nagri hai.
Sirf iss video my Hindu ko gali nahi di Inn logo ny
Hi
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aryawartaabhishek6654 गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी।
सम्राट अशोक जैसा सम्राट आज तक ना कोई हुआ ना कोई होगा
🇮🇳🦚☸अखंड भारत के निर्माता प्रथम 👑चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य! अखंड भारत के संरक्षक विश्वविजेता 👑चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान मौर्य की जय!! ☸विश्व गुरु तथागत भगवान गौतम बुद्ध की करूणा हो!!! नमो बुद्धाय! सम्राट अशोक महान के पूर्वज बुद्धिस्ट और क्षत्रिय हैं!जय मौर्यवंशी! 🇮🇳🦚☸🌸❤️🌺💐🌹✌️🙏
नमो बूध्दाय सम्राट अशोक मौर्य की जय
भारत के सम्राट अशोक दी ग्रेट
जय भीम जय भारत जय संविधान नमो बुद्धाय
Chakrawarthi ashoka 🙏🏻respect from Sri Lanka
👌🙏🙏🙏🌹🌹🌹बहुत अच्छा व्हिडिओ , बहुत अच्छी जानकारी मिली। धन्यवाद 🙏🙏🙏🌹🌹
KING of ASIA...SAMRAT ASHOKA....
@rohan loni9729 tere kyu jal rahi hai bhai sach kha raha hai Ashoka ka naam world ke Great king main aata hai top pe Google kar le lol
@@killhaters1612 Pandit hoga inlogo bohod jalti hy such sun neme buddha dharma kabja karke Hindu logo loot rahe
@@skyop3206 Right Right
best documentary. jaibhim jai ashoka jai maurya vaishi. namo bauddhay.
Ye vishwa jaati ke logo ki wajah se sarkar chal rahi hai
Buddha is also a aryan
Practice Vipassana Campaign Canvass for Same Watch All Videos From Kapilvastu to Kushinagar 🤧✍️📢
Jay samrat ashok ji
Aapko tahh dil se nmn krte hai
न्याय प्रिय चक्रवर्ती सम्राट अशोक... ❤️
👏👏👏👏👏👌👌👌👌chakravrtin samrat ashok ki jai
The Geratest Chakravartin Samrat Ashok
1st chakrawarti samrat mahapadam Nanda.
Greatest warrior of the world😎
Hi
Kon hai tu
बहुत सुन्दर
नमो बुद्धाय... Ashoka tha great
One of the greatest Indian Emperor who extended the boundary of India up to Iran border after kalinga war he stopped the war other wise he extended whole Asia and Urope .
Unhone kalinga yudh ke baad bhi bahut se desh jeete magar dil se aur dharm se
Sir aapki awaaz ithni achci hai ki bahot hi madhur lagtha hai,,,,bahot hi acha information hai,,,,Jai bhim 💙 💙💙
best documentary
आप को 🙏शत-शत 🙏नमन करते है🙏🙏 नमो बुद्धाय जय भीम🙏🙏
maharaja asok ki jai
Nice documentary namo Buddhay Jai Bhim Jai Ashoka
Jai samrat Ashok Mahan
Jai mauryvanc
Jai bharat
"Great Ashoka King" of the world
" Great salute"
Namo Budhai 🙏🙏🙏
अशोक सिर्फ बौद्ध थे और हम उनको बौद्ध के ही रूप में मानते हैं...आज कल के चूतियों को कौन समझाये की बौद्ध धर्म में जातियां नही होती हैं...नमन सम्राट अशोक🙏
ये ब्राह्मणों का चाल है। जब कोई प्रसिद्ध होता तो उसका ब्रह्मणीकरण कर देते हैं। एक अंग्रेज आकर बता गया यहां सम्राट असोक जैसा विशाल राजा नहीं तो ये लोग इतने महान राजा को इतिहास से गायब कर देते।
आपके so called बौद्घ में गालियां दी जाती हैं ?
@@THEKRRAHUL ब्रमाण ही दोषी है सब जगह लोल आरक्षण मिलने के 75 साल बाद भी खुद का दोष दुसरो पर मंढते रहोगे तुम कब इतिहास लिखने वाले बनोगे ब्रामण रावण का नाम लगा कर आदर्श मानेंगे, महिषासुर को पुर्वज बताओ गे, शाक्य बणिया जाती में आये भगवान् बुद्ध को मानोगे खुद बन जाओ ईश्वर जिस तर संत रामपाल बन बैठा है
सम्राट अशोक का इतिहास महान है
@@mamtasharma-activeschool3256 तो आपके सो कॉल्ड हिंदुवो में दुसरे धर्मो को बदनाम किया जाता है? और अपना धर्म दुसरो पर थोपा जाता है? भगवा दहशतवाद किसे केहते है?
नमो बुद्धाय जय अशोक सम्राट जय भीम
भारत के दो हिंदू राजे...
१.सम्राट अशोक
२.छत्रपती शिवाजी महाराज
जय हिंद 🚩
Thank you so much for giving us this knowledge with accuracy
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
@@aquibhyaat3385 tu kha kha batayega link bhejo hm bhi jane
King of all kings ..the greatest King
Chakravati Samrat Ashoka ko sadh sadh Naman ❤🙏🙏🙏
बौद्ध के बाद तीन महान लोग आए, धर्म कीर्ति अशोक और शांति देव। उन तीन लोगों ने बौद्ध धर्म को भारत में बहुत मजबूत किया, धर्म कीर्ति ने बहस या तर्क से बौद्ध का प्रसार किया, अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनी शक्ति से फैलाया, शांति देव ने शांति से बौद्ध का प्रसार किया।
धन्य है वो भारत मा जिन्होंने अपनी कोख से एसे वीरो को जन्म दिया है
Duniya k sabse great king samrat ashoka ki jay ho 🙏🙏🙏🙏
Priyadarshi samraat Ashok ka kaal hi bharat ko vishwaguru ka darja praapt karta hai... Hame garv hai aise mahaan yoddha par..
Samrat Ashok ka Bharat thha jab gharo me taale nahi lagte thhe jab bharat sone ki chidiya kahlata thha.. Kanshiram ji yahi samrat Ashok ka Bharat chahte thhe.. Jaybhim sathiyo
इसी भारत को हम यहाँ स्थापित करके रहेंगे!
गौर किया जाए कि सम्राट अशोक एक राजपूत था। और बुद्ध धर्म राजपूतों का धर्म था। बुद्ध ने कोई घर संसार नहीं छोड़ा था जैसा कि बताया जाता है। गौतम बुद्ध को यह बात हृदय पर चुभती थी कि सिंहासन पर बैठे राजपूत नरेश अशोक, बौद्ध धर्म के नियंत्रण में ना होकर ब्राह्मण पुरोहित बाद के नियंत्रण में क्यों है।
बौद्ध धर्म अपने उभार के मात्र 10 वर्ष के बाद ही प्रतिक्रिया की लपेट में आ गया। ना तो उसने दास प्रथा ही तोड़ सका और ना राज्यों को टूटने से ही बचा सका।
ब्राह्मण पुरोहितवाद किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि बौद्ध धर्म राजकीय धर्म बने। लेकिन ब्राह्मणों को डर सता रहा था। वह इसलिए क्योंकि राजा भी राजपूत था और बुद्ध धर्म भी राजपूतों का धर्म था।
यह हाल बिल्कुल ऐसा था मानो आपकी पत्नी किसी और से मुंह मरा रही हो और आपको गुस्सा चढ़ रहा हो। यही गुस्सा बौद्ध धर्म को अशोक से था जिसने घर के धर्म को छोड़कर ब्राह्मणों के धर्म को महत्व दिया हुआ था।
बहरहाल, एक ऐसा दिन भी आया जब अशोक को कलिंग के युद्ध के बाद बदनाम होना पड़ा। ब्राह्मण पुरोहितवाद के इशारे पर ही यह युद्ध लड़ा गया था, वह इसलिए क्योंकि उन दिनों उड़ीसा का अधिकांश क्षेत्र ब्राह्मण पुरोहितवाद के नियंत्रण में नहीं था और वहां मंदिरों का विस्तार करके लोगों को धार्मिक नियंत्रण में कसना आवश्यक हो गया था।
राजनीति का परिदृश्य बदलता रहा है लेकिन राजनीतिक चालें किसी भी दौर में नहीं बदली। उन दिनों बौद्ध धर्म और ब्राह्मण पुरोहितवाद के बीच का झगड़ा आज के बीजेपी और कांग्रेस के बीच के झगड़े के समान है।
कलिंग युद्ध और साम्राज्य विस्तार के बाद, अशोक भारतवर्ष में बदनाम हो गया। श्रेष्ठियों ने उसे आगे युद्ध के लिए धन देना बंद कर दिया। जनता अब ऐसे राजा को पसंद नहीं करने लगी जो हिंसा के लिए बदनाम हो चुका था।
अब ब्राह्मण पुरोहितवाद के ही इशारे पर, अशोक बौद्ध धर्म के शरण में आ गया। चुंकि बौद्ध धर्म तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए क्रूर राजा को इस धर्म में शरण पाते देख जनता का आक्रोश बहुत हद तक कम हो गया। और इस तरह "सहसा हृदय परिवर्तन" हो जाना घोषित करवा कर यह प्रचारित करवा दिया गया कि अशोक को बौद्ध धर्म से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो गया है और अब वह क्रूरता के मार्ग पर नहीं चलेगा, जो एक कूटनीतिक अनिवार्यता थी। और वैसे भी, लंबे इंतजार के बाद, बड़ी मुश्किल से बौद्ध धर्म ने राजा को अपने नियंत्रण में लिया था। इस कसाव और पकड़ को वह ढीला नहीं छोड़ना चाहता था। और इस तरह बौद्ध धर्म अशोक को राजनीतिक संकट से उबार कर राजधर्म पाने का इनाम पा गया। इसीलिए तो शक्ति ग्रहण करने के तत्पश्चात ही बौद्ध धर्म के ही इशारे पर कई ब्राह्मणों की हत्या की गई। जो कि खैर बहुत जरूरी भी थी। लेकिन आज स्थिति यह है कि इसी भूमि पर उपजे बौद्ध धर्म ब्राह्मण पुरोहितवाद से लंबी लड़ाई के बाद यहां से छिटक कर बाहर निकल गया और दूसरे देश का राष्ट्रीय धर्म बन गया। इसलिए जिन जिन देशों में बौद्ध धर्म है उन सभी देशों का भारत से झगड़ा है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक भी ब्राह्मण पुरोहितवाद की नजरों में दुश्मन बन गया था। सभी मुख्य कारणों में, पहला कारण यह था अशोक ने राजकोष की मुद्रा का दुरुपयोग बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किया। और दूसरा कारण यह था कि अशोक ने बौद्ध धर्म के इशारे पर ही साम्राज्य में ब्राह्मण कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी
आपने सम्राट अशोक के जीवन, राज व्यवस्था और बौद्ध धर्म में चक्रवर्ती सम्राट की रुचि से लेकर दुनिया में उसे फैलाने की सार्थक जानकारी आपके वीडियो से मिली आपका आभार, साधुवाद 🙏🙏 आप इसी तरह की और औथेन्टिक जानकारी सम्राट अशोक के जीवन चरित्र के वारे में देते रहेंगे ऐसी आशा करता हूँ
You are your own master, make your own future....Lord Buddha
सम्राट अशोक महान की कल्याणकारी नीतियों से विश्व में शांति और सौहार्द्र स्थापित किया जा सकता है 🙏🙏 जय अशोक जय भारत
Dhany h oo maati jisne aise veer ko janama.🙏🙏 Great samrat Ashok ji ki jai ho
बोहोत बडीया बताया है यार ...❤️😃
इसका Download लिंक active कीजिए, जिससे हम इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा बहुजनों को दिखा सके और बौद्ध धम्म और सम्राट अशोका की प्रतिभा को और फैला सके!
Bhai aap snaptube me 1 minute me download kar lijiye fir
whats app par share kijiye
Pehle play store se snaptube download karo fir usme type kar do is video ka naam
बहुत अच्छा वीडियो रहा।ऐसे वीडियो आने से अन्धविश्वास समाप्त होगा और हमारे भारत देश का विकास होंगा ।
Samrat Ashok ki Jay.
Namo Buddhay.
Ashok ek hindu raja tha usne buddhism apnaya nahi uska parchaar
सेल्यूट है आवाज इंडिया को ❤️
I respect samrat ashok and his social work
🙏🌹🌹नमो देवानप्रिय प्रियदर्सीअशोक🌹🌹🙏