न जाने कौन सी शह में ,तेरा दीदार हो जायें | Hazrat Haji Waris Ali Shah (R.A.) | देवा शरीफ़ |

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  • Опубліковано 6 жов 2019
  • Channel- Sunil Batta Films
    Documentary- "Ya Waris Haq Waris Hazrat Haji Waris Ali Shah (R.A.)"
    Dewa Sharif Dargah
    देवा शरीफ़ दरगाह
    हाजी वारिस अली शाह (रहमतुल्लाह अलैह)
    Produced & Directed by Sunil Batta, Music- Anjani Tiwari & Krishan Swaroop, Voice- S H Mehndi, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Singer- Anjani Tiwari, Research & Script- Jiaullah Siddiqui, Production- Dhruv Prakesh, Edit- Venkatesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla,
    Synopsis -
    फना इतना तो हो जाऊं
    मैं तेरी ज़ाते आला में
    जो मुझको देख ले, उसको
    तेरा दीदार हो जाये
    इसी के वास्ते हर शह के
    मैं नज़दीक जाता हूँ
    न जाने कौन सी शह में
    तेरा दीदार हो जायें
    हुज़ुर वारिस पाक ने अपने वालिद-ए-बुर्जुग़वार हज़रत सैय्यदना कुर्बान अली शाह रहमतउल्लाह के उर्स की तारीख, अपने मुरीदों व अकीदतमंदों की गुज़ारिश व सिफारिश पर हिन्दी महीना कार्तिक के हिसाब से, जो हिन्दुओं का मशहूर-ओ-मारूफ त्यौहार करवाचौथ है, की तारीख़ तय फरमायी, जो अरबी महीने के हिसाब से चांद की सत्रह तारीख़ होती है। लिहाज़ा, पहला उर्स शरीफ तय तारीख़ के दो रोज़ यानी अरबी तारीख़ 15 जिल़हिज्जा 1253 हिजरी से शुरू हुआ और 17 ज़िलहिज्जा को सैय्यदना, कु़र्बान अली शाह रहमतउल्लाह का कुल शरीफ होकर ख़त्म हुआ। यह उर्स शऱीफ अमूमन मशहूर त्यौहार दीपावली के तक़रीबन 12 दिन पहले होता है। इस उर्स के मेले में दुनिया के तमाम मुल्कों, शहरों, गांवों से हर मज़हब, हर कौम के लाखों ज़ायरीन शिरकत करने आते हैं और आस्ताना-ए-वारसिया पर हाज़िरी देकर अपनी अक़ीदत व मोहब्बत का नज़राना पेश करते हैं, और वारसी फैज़ से मालामाल होते हैं।
    सरकार वारिस-ए-आलम नवाज़ ने, अपनी ज़्यादातर जिन्दगी सफर व सैय्याहत में गुज़ारी। बिला तफरीक मज़हब व मिल्लत के तमाम आलम-ए-दुनिया को मोहब्बत व इन्सानियत और एक खुदापरस्ती का पैग़ाम पहुंचाया।
    सरकार वारिस-ए-आलम नवाज़ 86 साल की बज़ाहिर उम्र शरीफ में इस आलम-ए-दुनिया को अपने मैख़ाना-ए-मोहब्बत से वह जाम-ए-मोहब्बत अता फरमाई जिसकी मिसाल दुनिया पेश नहीं कर सकती। बिलआखि़र सरकार वारिस पाक यकुम सफर 1223 हिजरी, 1905 ईस्वी, मुताबिक बातारीख़ 7 अप्रैल दिन जुमा, बवक़्त अल-सुबह 4 बजकर 13 मिनट पर इस दुनिया-ए-फानी से कूच फरमाकर विसाल-ए-हक़ हुए।
    ‘‘इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राज़िऊन, सल्लल्लाहु अला मोहम्मदिन व आलिहि वसल्लम"।
    ‘‘कयामत था ये कह कर,
    उनका पहलू से निकल जाना,
    ख़ुदा हाफिज़ है अब,
    मेरे तसुव्वुर से बहल जाना’’
    वारिस पाक के सफर का सालाना उर्स शरीफ अरबी महीने के हिसाब से यानी चांद की 27 मोहर्रम से शुरू होता है, और सफर महीने की यकुम तारीख़ को अल सुबह 4 बजकर 13 मिनट पर सरकार वारिस पाक का कुल शरीफ होकर उर्स खत्म हो जाता हैं। इसलिए कि सफर की युकुम तारीख, 1323 हिजरी, 1905 ईसवी, मुताबित 7 अप्रैल को अल सुबह 4 बजकर 13 मिनट पर विसाल-ए-ह़क हुआ था हालांकि उर्स मुबारक के दौरान आस्तान-ए-बारसिया कमेटी की जानिब से दीगर महफिलें भी होती हैं जिसमें जिक्र, मिलाद-ए-शरीफ, महफिल-ए-समा व ज़िक्र-ए-शोहदा-ए-कर्बला भी होती है, जिसमें बेशुमार गुलामान-ए-वारिस व फिदायान-ए-वारिस और दीग़र अक़ीदतमंद महफिल में शरीफ होकर रूहानी फैज़ व दीन व दुनिया की दौलत हासिल करते हैं।
    ‘‘इस तरह भेस में, आशिक के छुपा है माशूक़
    जिस तरह आँख की पुतली में नजर होती है"।
    सरकार वारिस पाक के एहरामपोश फ़कीरों की जानिब से चैत का सलाना उर्स शरीफ़ होता है। यह उर्स शरीफ हिन्दी महीना चैत के हिसाब से होता है, जो करीब चैत महीने की 13 या 14 तारीख़ होती है यानी अरबी महीना चांद के मुताबिक 27 तारीख से शुरू होता है और नया चांद निकलने पर युकुम तारीख को यह ख़त्म होता है।
    इस सलाना उर्स शरीफ में भी बेशुमार एहरामपोश हज़रात व दीग़र गुलामान-ए-वारिस और अक़ीदतमंद हज़रात दरबार -ए-वारसिया में हाज़िर होकर अपनी अक़ीदत व मोहब्बत का नज़रना पेश करते हैं और आस्तान-ए-वारसिया पर सभी रूहानी महफिलों में शरीक होकर सरकार वारिस पाक की गुलामी व मोहब्बत का सुबुत देते है, और दरबार-ए-वारसिया से पंजतनी फैज़ हासिल करते हैं ।
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