शिव पार्वती विवाह सम्पूर्ण कथा राजस्थानी देशी भजन तोगाराम आर्य
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- Опубліковано 12 вер 2024
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-विवाह आनंदोत्सव है। इसलिए, वह सारी रस्में शंकर जी के विवाह में हुईं जो आज होती हैं।
-विवाह के वक्त बुरा नहीं मानना चाहिए। हंसी ठिठोली को उसी रूप में लेना चाहिए। शंकर जी के विवाह में भी यही हुआ।
-संसार का दूल्हा खूब श्रृगांर करता है, लेकिन जगत का दूल्हा ( शंकर) भस्म लगाए जाता है। यही शाश्वत है। सत्य है।
-घर और परिवार की जिम्मेदारी स्त्री की होती है। इसलिए मेना उनको समझाती है कि घर कैसे चलाना है।
-यदि मां अपनी कन्या को शिक्षा दे तो इससे दोनों कुलों के मान सम्मान की रक्षा होती है। पार्वती जी को मेना ने यही सीख दी।
-विवाह के पीछे कल्याण का भाव हो। आनंद का भाव हो। कुलों की रक्षा का भाव होना चाहिए।
-पति-पत्नी दोनों को ही अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए, तभी फेरों के वक्त वचन कराए जाते हैं।
-शंकर जी और पार्वती जी ने भी इन वचनों को भरा क्यों कि यह वैदिक परंपरा है।
प्रस्तुत है सुर सम्राट #श्री_तोगाराम_आर्य की मधुर वाणी में देवी सती मां पार्वती जी और #भोले_शंभु_त्रिलोकी_नाथ के विवाह की सम्पूर्ण कथा।
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