ज्ञानगंज सिद्धाश्रम का वर्णन और सूर्य विज्ञान,विशुद्धानंद परमहंस ,गंध बाबा, ज्ञानगंज के संत,
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- Опубліковано 7 лют 2025
- सूर्य विज्ञान प्रणेता स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस (काली कमली वाले बाबा)
ऐसे महापुरुष की जीवनी प्रस्तुत करना सहज नहीं है जिनकी ख्याति पूरे भारत में सूर्य विज्ञान के प्रणेता के रूप् में फेली हुई है। योग और विज्ञान दोनों ही विषयों के पारंगत इन विलक्ष्ण महापुरुष के लिए कुछ भी असम्भव नहीं था। प्रकृति, काल और स्ािान सब उनकी इच्छा शक्ति के अनुचर थे। विज्ञान के क्षेत्र में इनकी उपलब्धि इतनी असाधारण थी कि सूर्य की किरणें को एक Convex Lens के द्वारा रूमाल, रूई आदि पर संकेन्द्रित कर वे मनोवांछित धातुओं, मणियों तथा अन्य पदार्थों का सृजन करने में समर्थ थे। एक वस्तु को दूसरी वस्तु में परिवर्तित करना उनके बाएॅं हाथ का खेल था। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब इन्होंने हिमालय के एक दिव्य आश्रम ज्ञानगंज में 12 वर्षों के अध्ययन के उपरान्त सीखा। उस समय इनके दीक्षा गुरु स्वामी भृगुराम देव की आयु 500 वर्ष से अधिक व दादा गुरु महातपा जी महाराज की आयु 1300 वर्षों के आसपास मानी जाती थी।
इस आश्रम में हजारों तपस्वी सृष्टि के गूढ़ रहस्यों पर शोधरत हैं तथा यहाॅं विभिन्न प्रकार के ज्ञान-विज्ञान इतने उच्च स्तर पर आविष्कृत हैं जिनकी हम कल्पना नहीं कर सकते। यहाॅं के महान वैज्ञानिकों का मानना है कि योग बल से कोई भी निर्जीव वस्तु या संजीव प्राणी प्राप्त या प्रकट किया जा सकता है। स्वामी जी के अनुसार ज्ञानगंज में अपने नाम के अनुरूप सूर्य विज्ञान, चन्द्र विज्ञान, वायु विज्ञान, स्वर विज्ञान, शब्द ज्ञान व क्षण विज्ञान जैसी अनेकों धाराओं पर गहन शोध कार्य चल रहा है। इस आश्रम की एक और विलक्ष्णता भी है कि यह एक विशेष आयाम पर तिब्बत के आस-पास इस प्रकार गुप्त रूप् से स्ािापित व संचालित है कि कोई भी अपनी ईच्छा से यहाॅं नहीं जा सकता। जिसका चयन होता है वही यहाॅं तक महागुरुओं की इच्छा से इस सिद्ध स्ािली के दर्शन कर सकता है।
अपनी योग विभूतियों ;सिद्धियोंद्ध के सम्बन्ध में बाबा ने एक दिन अपने शिष्यों से कहा था, ”बचपन में मैं विभूतियों की बात पर विश्वास नहीं करता था। इस विषय में शास्त्रों में जो लिखा है उसे काल्पनिक कहानी समझता था। किन्तु ज्ञानगंज में जाने पर देखा कि वहाॅं सब कुछ विचित्र ही है। वह जैसे कोई मायापुरी हो। वहाॅं क्या होता है और क्या नहीं, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वह सब शक्ति का चमत्कार देखकर उसे प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प मन में पैदा हो गया। जब वे सब शक्तियाॅं मुझे कठिन तप के उपरान्त प्राप्त हो गई तब उन्हें लोगों को दिखाने का चाव लगा। बहुत कुछ मैंने दिखाया भी, इसलिए कि उन्हें देखकर लोगों में यह विश्वास जगे कि हमारे शास्त्र सत्य हैं।“
ये सभी बातें हम जैसे मनुष्योंके मन में यही शक प्रस्तुत करती हें कि क्या यह सब कुछ भी सम्भव है? परन्तु जो लोग स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस जी के सम्पर्क में आए उनके चमत्कारों व शक्तियों को देख मन में श्रद्धा विश्वास लेकर लौटे। सचमुच मानव जीवन में उळॅंचाईयों को प्राप्त करने के अगणित आयासम उपस्थित हैं फिर भी हम अपनी मूर्खताओं से अपने लिए विभिन्न समस्याओं, कष्टों, रोगों को आमन्त्रण देते रहते हैं। स्वामी जी को भारत की जनता अनेक नामों जैसे
‘काली कमली वाले बाबा’, ‘गंध बाबा’ आदि के नाम से जानती है। स्वामी जी ने अंग्रेजों से प्रताडि़त निराश भारत के मन में आशा व उत्साह का एक नया दीप जलाया जिससे भारत पुनः अपने ज्ञान, विज्ञान, योग एवं तप साधनाओं के द्वारा पूरे विश्व में जगद्गुरु के रूप् में अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त कर सके।
इसी प्रेरणा से लाखों लोग यो व तप के महान पथ पर चलने के लिए संकल्पित हुए। योग व तन्त्र के परम विद्वान प्.गोपीनाथ जी कविराज बाबा के प्रधान शिष्यों में से एक ये जिन्होंने पूरी दुनियाॅं के सामने इन ज्ञान-विज्ञान का प्रचार प्रसार किया। एक बार बाबा जी के गुरु श्री भृगुराम परमहंस जी ने उनको ज्ञानगंज से प्त्र लिखकर सूचित किया था - ” विशुद्धानन्द! तुमने जो वर्तमान समय में शिष्य किए हैं, उन सबका निरीक्षण मैं प्रतिदिन ही करता हूॅं, सम्यक दृष्टि से हर एक के घर जाता हूॅं। मैं सबको देखता हूॅं, तुम्हें इन लोगों की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। तुम्हारें 697 शिष्यों में से 432 श्रेष्ठ हैं। उनको 4 वर्षों में सब कुछ प्रत्यक्ष होगा और सिद्धि लाभ होगा।“ सुनते हैं कि जब भी बाबा जी किसी को शिष्य बनाते थे पहले ज्ञानगंज से उसकी स्वीकृति आती थी।
एक बार देश, धर्म और समाज की दुर्दशा देखकर शिष्यों ने अपनी निराशा बाबा के सम्मुख रखी। इस पर उन्होंने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया, ” चिन्ता का कोई कारण नहीं है। हम लोग धीरे-धीरे मंगल की ओर ही बढ़ रहे हैं। हिन्दू धर्म का लोप होने को नहीं है। जो लोग इसके विनाश का प्रयास करेंगे उनका ही सर्वनाश हो जाएगा। ”द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में उन्होंने पाॅंच वर्ष पूर्व ही बता दिया था यह घटना उस समय की है जब इटली ने अबीसीनिया पर हमला किया था। समाचार प्त्र प्ढ़ कर बाबा के एक शिष्य श्री अमूल्य कुमार दत्त गुप्त ने बाबा से इस विषय में चर्चा की तो बाबा बोले, ”यह तो कुछ भी नहीं है। एक बड़ा युद्ध आ रहा है, जिसमें अंग्रेज भी शामिल हो जाएॅंगे। उस समय अंग्रेज झूठी बातों से हमें ठगने की कोशिश करेंगे।“ यह सर्वविदित है कि कांग्रेस की सहानुभूति और सहायता पाने के लिए क्रिप्स साहब बहुत से अच्छे प्रस्ताव लेकर भारत आए थे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि इन योगियों की दृष्टि देश, समाज और पूरे विश्व की हलचलों पर लगी रहती थी और असंतुलन व विनाश को रोकने के लिए मैं अपने तपोबल का प्रयोग करते थे।“
हम भारतीय अपने प्रेमाश्रुओं से ऐसे महान पुरुषों को सदा याद करते रहेंगे व उनसे यह विनीत प्रार्थना करते रहेंगे कि हमारे जीवन में भी उनकी महान अनुकम्पा में ज्ञान विज्ञान व साधना का अवतरण हो जिससे हम अपने मानव जीवन के सफल बना सकें।
Gurudev ke charanon men Naman
Om kriya baba ji Namha Aum
Maha Avtar Baba Ji Namha Aum
Jai guru dev ji 🙏🙏🙏