✴️Mahabharat Part-1🚩|| Krishna And Karna Conversation ⚡ ||
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- Опубліковано 5 лют 2025
- Mahabharat Part-1⚡|| Krishna And Karna Conversation ||
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Part 2
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jay sree ram Bhai
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Jail Shri Krishna
जय श्री कृष्ण ❤
Jai shree krishna radhe radhe radhekrishna ❤❤❤❤❤❤❤🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏...............infinite times
Best warrior of Mahabharat ⚔⚔Mahaveer Karn❤
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Best warrior of Mahabharat pitama bhishm
In ur dreams and Sony tv 😂😂
Karna Life is so emotional 🥺, jai Shree Karna ji. Jai Shree Krishna🙏🕉
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Yes 🥺
Bhai pandavo ne to Puri zindagi raaj Mahal me maze liye hain na arre murkh kabhi asli Mahabharat padh sut putra hota kon hai yeh bhi samjh
@@justfordemo3044but his life was inspiring and i really love that kind of friends
@@adityakumar6479 haan jo friend gandharva yudh me chhor kar bhaag Jaye aur Virat yudh me bhi saath chhor de kabhi Mahabharat padhi bhi hai guru ji ya bas yuhi gyan de rhe ho 🙄
जय श्री कृष्णा 💙
क्षत्रिय होने पर गर्व है
Proud To Be Kshtriya 🚩🚩🚩
Kitne yudh lade 🤡🤡
@@KunalSharma.7Sharma ji hamare yaha bhikh mangane aate hai
Karna is supreme for child but Krishna is supreme for legend 🙏🙏
Radhe Radhe
Biggest fan of karna ❤
Me too❤
Mannu u forgot me .🗿
@@Mannu___5012 though being a muslim,I am in attraction to the name karna.
Bohat sundar video hai
Dil ko chuliya ❤️❤️❤️
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
❤️❤️कर्ण❤❤
Shree Krishna ❤🚩🙏 1:46 Karan 🙏
"आसान नही है खुद को एकलव्य और कर्ण बनाना,
दुश्मन बन जाता है सारा जमाना....!"😔💪😎
@@kailashmahato4861kya kare Mahabharat reels se jo dekhte he
सभी अर्जुन नही बन पाते 😎
@@Chdv1227 bon bal cheraca o
❤❤
Sb karn hi bn rahe aaj ke samay mai 🙂🙂
Challenging to arjun banana h✌️✌️✌️
Radhe Radhe 🙏🙏🙏❤️❤️❤️❤️❤️👑👑👑👑💪💪💪💪💪Karn king 👑😈💪❤❤❤❤❤❤❤❤❤
My favourite character of Mahabharata Suryaputra Karan 🙏🙏❤️🙏🙏
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Bo adharmi tha
Hoga hi kiyuki tumbhi gali dena , nari ko cherna , adharma karna sahi mate ho
Pandav ❎ Karn 🗿✅🚩 Jai Shree Krishn🚩🚩
Jai Shree Ram🕉️🙏Om Namah Shivay🕉️🙏Jai Mata Dee🕉️🙏Jai Manshadevi Ji Ki🕉️🙏Jai Ashoksundhri Ji Ki🕉️🙏Jai Naagpanchami Ji Ki🕉️🙏RadheRadhe🕉️🙏Jai Mai Ki🕉️🙏Jai Shree Ganesh Ji Ki🕉️🙏
Joy Shri Krishna ❤️🕉️🙏 Har Har Mahadev ❤️🕉️🙏 Joy Shri Ram ❤️🕉️🙏Joy Ma Durga ❤️🕉️🙏🇧🇩❤️🚩
ALL WORLD ALL UNIVERS
= LORD KRISHAN
Yess...
🙏🙏SRI RAM 🙏🙏 = unimaginable universe
I ❤ karna
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
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उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Karna is always supreme ❤
Karn is asur plz read nar narayan katha
কলের কাজ কোরি খেটে খাই অশিকখিতো আবার কি
lord krishana is always supreme
हरे कृष्ण🕉😍🙏🏻राधे राधे🙏🏻😍🕉
He is my real Hero of Mahabharat 🙏🙏🙏
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
AAP adharm ko support kar rhe ho fir
He is real villain of Mahabharat kabhi padhi bhi mahabhart ya sirf serials hi dekhi he
JAISHRIRAMSIYA❤
হরে কৃষ্ণ ❤️🙏❤️
Karna ❤
Har har Mahadev
𝑹𝒆𝒂𝒍𝒍𝒚 𝒉𝒆𝒓𝒐 𝒌𝒂𝒓𝒏𝒂 ❤❤❤
Jai shree radhe Krishna ji ki Jai ho 💖😊🙏😘Jai Shree Karan dev ji ki Jai ho😘🙏😊💖💓👍❤️💛👌🧡💗🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ओम नमः शिवाय ❤❤ ओम माता पर्वतीय नमः ❤❤
जय श्री राम ❤❤
जय श्री कृष्ण ❤❤
जय परशुराम ❤❤
जय हनुमान ❤❤
ओम नंदी नमः ❤❤
राधे कर्ण 🙏🙏❤️❤️👌👌
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Radha Krishna Karna
JaiShriKrishnRadheRadhe
Jai Sanatan hindu🇮🇳💓
2:40 is best line 😊😊
Radhekarn❤️
Jay shree krishna radhe radhe radhe 💗💗💗🙏💗💗
Jay Shree Krishna ❤❤
Jai Shree Krishna ki Jai ❤❤❤❤❤
Jai Shree Karan ki Jai ❤❤❤❤❤
I am biggest fan of karn
😊😊karn ❤1000nmn😊😊🦁🚩Jay Bhagwan parshuram 🙏
Jay shree Krishna ❤
Eklavay radheykarn ❤ RADHE Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe
Karan ❤
💗💗💗🙏🙏🙏
Dost ho to Karn jaisa Jo dost ke liya bhagwan se bhi Yudh karee❤
Sahi baat bola
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Jai sri radhe krishna ji 🚩🙏🌏😊
Karn is a good and emotional person ❤❤❤🥺🥺🥺🥺🥺🥺
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Karn is the best hero of mahabharth ..and duryodhan is tho best friend for karn❤
Nice video 😊😊😊😊
Jay Shree Krishna 🙏🏾🙏🏾🙏🏾
🦚🌼🌺 Radhe Radhe 🌺🌼🦚
Whole Mahabharat = one leader Karna 🙏🏻
জয় শ্রী কৃষ্ণা 🙏🙏🙏🙏🙏🙏❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Radha Krishna karan
Prem se bolo Radhe Radhe ji 🙏
Jay Shri Kirshn 🙏🚩🕉
Jay shree Ganesh ji jay shree krishna Jay shree ram Jay shree Hanuman ji jay shree shyam Jay shree mahakal Jay maa Durga ❤❤
Jai shree krishna ❤❤
I love Karn ❤❤❤❤❤❤❤
Jay shree Radhe krishna 💕😇😍❤🙏☺
राधे राधे ❤
Jay Shri Kirshn
Karna ki jay ho❤❤❤❤❤jay shree Krishna ❤❤❤❤🙏🙏🙏🙏
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
JAI SHREE VISNHU JAI SHREE VISHNU JAI SHREE VISNHU JAI SHREE VISHNU ..........................♾️
5 pandav+1000 korav =karn 👑👑👑👑👑
🎉
Sony putra karn 😂😂
1000 pandav equal to 1 karn 😎 karn bhakt 🙏
Day dreaming
Kuru tatha Purushrestha Dhananjay Arjun
@@Prabhatgupta-z9f 1crore karn = 1 arjuna
Aise veer ko kotti kotti name ❤❤
Karn is not a warear he is a lagend❤❤
*warrior
Agr naa diya hota o bachan maine kunti mata ko...to pandavo ke khun se main dhota apne hato ko......this line❤️
Respect To Karn 🚩🙌
Superb
Jay shree krishna 🙏🚩🚩🚩🕉️🕉️🕉️🔱🔱🔱
जय shree krishna
Karna was greatest but he did some bad karma for duryodhan. 😢
Sorry to say but Jo dosti apne dosto ko bwinash ki taraf le Jaye wo dosti kese achi dosti ho sakti hai mujhe Nehi pata ,dosti honi chaiye krisna and Arjun ki tarah jab jab Arjun galti karte the krisna use dat te the fir Arjun gussa na karke bat ko samjhkar uski agya ka palan korte the naki karne ki tarah Mitra ta ki nam de kar adharm karta first apnehi dosto ko adharma karne ke liye utsahit karta nahi karne deta , karn was literally a very very very bad person who is the sign of jealous,wrong friends,chatur dushman,who take desitions in anger ness or without thinking about another one
Bhai swyam ram ne kha tha
Agar mitra kisi vipatti me ho ya esa samay ho ki yudh hi ant he to bhi mitra ka sath dena dharm he
@@armylover3489 pehli bat to karn ki wajah se yudh Tak bat gayi hai , eisa mitro to mujhe Nehi chaiye Jo har bar mereko lalchaye yudh ke liye aur last Tak yudh Tak le Jaye , gandharba ke sath yudh main to yo bhag Gaya tha jab ki Duryadhan bandi ho gaya tha churane ke liye pandaba ko bheja gaya tha
Dusri bat ram ek aur yuge ka tha har yug main kahani alada hota hai jaise ki Satya yug main raksas aur Devo 2 alag lok main rahte the , wahi Treta yug main alag deso main and Dwapar Yug main ekhi Ghar main
Isliye ye krisna aur ram ka character main bohot farak hai ram ko mar kar Krishna ho kar alag se janama Lena para nehi to wo khudi immortal reh sakte the
@@souparnasaha1495 You are right 👍🏼
@@armylover3489 pehli baat toh ye hai ki Shree Ram ji ne vo baat kahi jo khud hmesha dharm ke marg pe chale hai or dusro ko bhi dharm ke marg pe chalne ko kaha h or unke mitr bhi dharm ke hi raste chale or uss jgah par agr unko unke mitr ke liye koi adharm karna pda jisse kisi dharm ki hi sthapana ho rhi ho toh vo adharm dharm hi keh layega..
Shree Ram ne ye nahi kaha ki tumhara mitra adharmi ho or tum usse apna mitra bana lo or fir uski madad karo toh vo dharm keh layega 🥲
Jay Shree ram 🙏🙏
5 pandav=1 karn❤
Mazak
Mohabarat=karn🖤🔥🏹
Akdom
serial dekh dekh Kar kabhi mahabharat padha to nhi hoga😂😂
@@gopalmajumder3654sirf, Krisha or bad de kor😊
Jay she̊e̊r̊ h̊ån̊ům̊ån̊❤️🔥🔥🔥❤️
Unlimited karn =1 krishna ❤
Unlimited krishna= 1 mahadev❤
@@shivpratap2606galat bola
@@shivpratap2606tere ko koi gyaan nehi
@@shivpratap2606 krishna = mahadev 😂😂😂 yehi andhbhkti thik nhi ek hi bhagwan hai ...
Abe gadhe tujhe pata to hai na srikrishna swaya bhagan hai .unke samne mahadev ke alava koi bhi tik nahi sakta . Karn ko nicha dikhane kiliye bhagwan se compare kar raha hai . Bhai vo bhagwan hai unke samane karn ho ya arjun koi tik nahi sakta . Itna to pata hena arjunbhakta 😂😂😂
Radhe radhe 💝
In the past we have thousands of legends which have superpower,my question is where is that all powers go now ? Did something happened in that past is that why no one remembers how to use those super powers😮❤
Bro are you talking about the knowledge of Astra then the last guy who have the knowledge of Astra were lord Krishna and Arjun after lord Krishna death the knowledge remained with Arjun but Arjun didn't share the knowledge because he knew that the coming people didn't know what to use in battlefield by this I mean if two people clashed and use their Astra for a non sense fight then the Astra will end the world because when two powerful Astra clashed then their energy will destroy the whole world that is why he didn't share it and if you are talking about strength then it depends on which yuga the people exist Mahabharat took place in dwaparyug and people of dwaparyug strength was counted by 1 elephant strength and the yug we exist is kal yug and in these yug people are the weakest in strength their strength is counted by a horse power
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
@@ramcharan615 bro are you not a Hindu
Nahee bo shaketiye vigeyan geyan me shakuch hai par bo shaletiye khandit hogai the or jaha bhagesur balebaba ke pash pun shidhi hai jishe alag nahee bahut lagate
Kabhi kabhi krishan bhi halat ke hatho majbur ho jate hai aur jo sarvgyata hai parambhamah hai vo bhi kuch prshno ko sun chup rah jate hai.
Jay shree krishan
❤❤❤
5 pandav + 100 korav = karn❤💙
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
You are wrong
Nice joke 😂
@@Subhajit15-x3u bakwas joke tha ye, sathiya gaya Sonyputra fan 😅
Not only suryaputra Karn, aj ke zadatar TV serials mein Karn ka alag image dikhaya jata hai jab ki asal mein wo aisa hai nahi. Karn ka jo character serials mein dekhte hai wo pura frictional hai. Aur yehi dekhke sab kehte hai Karna is great.
Jiban me tum kabil ho or hum ko wo moka or samman na mile issa bari dukh / kast or keya hoga!!💙 Karn♥️
No one is Brahman , katriya ,bais, sutrya by birth but Work
- Gautam Buddha
Par me to janame she shakuch sant bhata gun the
Ye kya shree Krishna nhi kahte
Gautam Buddha brahman the na hi bhagwan.bhagwam vo hot hai Jo pure earth 🌎 ki raksha kare jise Krishna
@@ShraddhaVishwakarma-x8e bhagevan kon hai t nahee jante ho tumare shabado me hee bataka duga kiyuki pun shateye nahee jante ho rama parushuram yek shamaye janamit yug me hai atema alag hai alag beramad she bo yek keval gun me ho par batane she kematelav pahuch hee nahee icha thee to bata diya
Abe sale bhagwat Geeta ka slok chori kar liya ..tere budda ne sab chori kar lode
Beutiful
Most powerful angraj Karan ❤❤❤💪💪💪💪💪
Pure Mahabharat me kisi ke bhi sachhai achhai suna de mujhe fir bhi. Karan ke jaisa koi nhi laga l love karan aapko sat sat naman 🙏🙏🙏🙏🙏🚩🚩
Radhe Karan ❤ always my favourite 😊 ❤️
Aap ke bate ne mere Dil ko chhuli❤❤❤❤
জয় মহাভারত
Jai shree ram ji jai hanuman ji jai shree ram ji jai hanuman ji jai shree krishna ji
King of kings suryaputra karn❤❤
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Jai shree Krishna hare Krishna radhe radhe bhai 🙏❤️🌸🍀🌼🌸🌼❤️🍀🌸🍀🌼🌸
Radhe karn❤
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Jay Shree Krishna 🌺🌼🦚🙏
Karna sabse bada yodha tha mahabharat ka
Karna is great❤❤❤
Krishn ji yahan Karn ko neech kehte hai ↓ tareef kahin nahi kiye Karn ki kabhi.. Mahabharat ke Karn Parv ke shlok hai ye, jaake check krle ↓
• तमब्रवीद् वासुदेवो रथस्थो राधेय दिष्ट्या स्मरसीह धर्मम् । प्रायेण नीचा व्यसनेषु मग्ना निन्दन्ति दैवं कुकृतं न तु स्वम् ।। १ ।।
उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान् श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा-‘राधानन्दन! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्मकी याद आ रही है! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निन्दा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं ।। १ ।।
• यद् द्रौपदीमेकवस्त्रां सभाया- मानाययेस्त्वं च सुयोधनश्च । दुःशासनः शकुनिः सौबलश्च न ते कर्ण प्रत्यभात्तत्र धर्मः ।। २ ।।
‘कर्ण! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबलपुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करनेवाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था? ।। २ ।।
• यदा सभायां राजानमनक्षज्ञं युधिष्ठिरम् । अजैषीच्छकुनिर्ज्ञानात् क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ३ ।।
‘जब कौरव सभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले नमन योग्य सर्वश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ३ ।।
• यद् भीमसेनं सर्पैश्च विषयुक्तैश्च भोजनैः । आचरत् त्वन्मते राजा क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ५ ।।
‘जब दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।।
• यद् वारणावते पार्थान् सुप्ताञ्जतुगृहे तदा । आदीपयस्त्वं राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ६ ।।
‘राधानन्दन! उन दिनों वारणावत नगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ६ ।।
• यदा रजस्वलां कृष्णां दुःशासनवशे स्थिताम् । सभायां प्राहसः कर्ण क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ७ ।।
‘कर्ण! भरी सभा में दुःशासन के वश में पड़ी हुई रजस्वला द्रौपदी को लक्ष्य करके जब तुमने उपहास किया था, तब तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ७ ।।
• यदनार्यैः पुरा कृष्णां क्लिश्यमानामनागसम् । उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ८ ।।
‘राधानन्दन! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पाती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? ।। ८ ।।
• विनष्टाः पाण्डवाः कृष्णे शाश्वतं नरकं गताः । पतिमन्यं वृणीष्वेति वदंस्त्वं गजगामिनीम् ।। ९ ।। उपप्रेक्षसि राधेय क्व ते धर्मस्तदा गतः ।
‘(याद है न, तुमने द्रौपदीसे कहा था) ‘कृष्णे! पाण्डव नष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये। अब तू किसी और पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदीको निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ९ ।।
• राज्यलुब्धः पुनः कर्ण समाव्यथसि पाण्डवान् । यदा शकुनिमाश्रित्य क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। १० ।।
‘कर्ण! फिर राज्य के लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाह के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।।
• यदाभिमन्युं बहवो युद्धे जघ्नुर्महारथाः । परिवार्य रणे बालं क्व ते धर्मस्तदा गतः ।। ११ ।।
‘जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? ।। ११ ।।
• यद्येष धर्मस्तत्र न विद्यते हि किं सर्वथा तालुविशोषणेन । अद्येह धर्म्याणि विधत्स्व सूत तथापि जीवन्न विमोक्ष्यसे हि ।। १२ ।।
‘यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता ।। १२ ।।
Infinite Pandav + Infinite Karn = Krishna ❤
Mahabharat ka sabse bada yodhha Karna❤
Nice joke
@@knowledgeconsumer1289 αrjun nє kαrn kσ mαrα nícє jσkє
@@shivamdas552 haa 13 baar haraya hai last fight me mara bhi hai serial dekhoge kaise pata chalega
@@knowledgeconsumer1289 tum ѕєríαl dєkhtє hσ íѕílíчє αrjun kσ ѕrєѕt mαntє hσ lєkín ѕαchα чσdhα tσ kαrn hí hє kαrnα ❤️ ѕurчα putrα 🌞, ααngrαj 👑 ,dígвíjαчí 🚩, mαhαrαthí ⚔️,αdírαth putrα 💙, rαdhєч putrα ❤️ , pαndєv jєѕth 🙏🏻 , kumtí putrα 💙,ααdítчα nαndαn 🌞, αrkαputrα 🔥, rαвíѕunu 🌞 , ѕαвítrα 💙 , ѕαmpαdhítα 🌸, ѕαmpαnα ❤️, rєѕhα 💙, вєktínα ❤️, вαѕuѕєnα 💪🏻, ααdí rαthí 🔥 , ѕutαѕutα 💙, ѕαudí ❤️, rαхmírαthí 🔥, ѕutѕun 💙, ѕutαѕutα ❤️, ѕutαtαnαчα ,💙, rαdhα ѕut ❤️, kuruvєєr 💪🏻, kuruчσdh 🔥, kσlαчα 💙, gσputrα 🚩🚩, ѕαвítrα ❤️, ѕαmpαdhítα 🌸 , ѕαmpαnα 💙 , rєѕhα ❤️ , víjαчdhαrí 🔥, dαnvєєr 🔥, kαвαj dhαrí 🌞 ѕutputrα ⚡ pαrѕhurαm 🚩ѕíѕhчα 🚩, míttunjαч 🙏🏻 , 👉 ( rαdhє ❤️ kαrn 😌❤️)🔥
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करण कभी अर्जुन से हरा ही नहीं था उसे सिर्फ धोखे से हराया गया था
Bahut hi Rochak hai 🎉🎉
Krishna jis pakhya khade uski jit sunishit hai chahe maharathi karna kyu na ho # bolo radhe Krishna