वाह मन्नू जी आप तो अच्छा ढोल बजा लेते हो l आप अपनी संस्कृति को बचाने की खातिर एक बहुत ही अच्छी मुहिम चला रहे हो l बहुत ही अच्छी वीडियो और जानकारी l 👍👌👌🙏,
Vastav mein ye blog mujhe kafi pasand aaya garhwal ki lupt hoti sanskriti ko bachane aur use wpis lane ka aapne sarahniya prayas kiya hai. Thank u manu.
Dhol bazana achha prayas vedio is good sanskriti ko bachane ka or logo ko vedio ke madhayam se janata ke samne lane ke liye atti uttam prastuti he. I congratulate you.
जी बहुत धन्यवाद। अब तो गिने-चुने ही बचे हैं। दरअसल इनके साथ न्याय नहीं हो पाया। उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया गया, इसीलिए यह कला अब संकट में घिरी हुई है। समाज के तौर पर हम बड़े लेवल पर कोशिश करेंगे तो कुछ लोगों को उनकी कला के साथ बचा सकते हैं।
Hamare forefathers or old citizen se bahut badi galati hui jo inki value nahi ki Jaat paat ki wajah se inko ignore Kiya. Hum sabko apni galti maanni chahiye agar abhi yeah log Hain toh unka sarakhchan karna chahiye
परमार जी साधू वाद। आप गढ़वाल की ही नहीं उत्तराखंड की बात कर रहे हैं। मंडाण कुमायुं खण्ड में जागर है। झूशिया दमाई प्रसिद्ध ढोल वादकों में से रहे हैं। आप उत्तराखंड की आवाज हैं। जागर में भी महाभारत की कहानियां होती हैं। पूरा पर्व 22 दिन का आयोजन होता है। जिसे बैसी भी कहते हैं।
श्रीमान जी हमारे इलाके के प्रख्यात ढोल सागर के जानकर श्री जम्मा दास जी भी ढोल विधा में काफी प्रगाढ़ जानकारी रखते थे उनका गांव पट्टी कंडवालस्यु ग्राम कुंडी था उन्हें ढोल सागर की विद्या ज्योतिष शास्त्र एवं ढोल सागर के प्रकांड विद्वान पंडित श्री भास्कर जोशी जी ने दी थी जो गंगा तट स्थित देवप्रयाग में रहते हैं और नक्षत्र वेधशाला का संचालन करते हैं यदि आप जम्मा दास जी के बारे में कोई जानकारी मिले दे सकें तो आपकी अति कृपा होगी जय भारत जय उत्तराखंड 🚩🚩
संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी किसी एक तबके की नहीं होती. पूरे समाज की होती है. हमारे इन लोककलाकारों के इस हुनर को अगर रोज़गार से जोड़ा जाता तो आज ऐसी नौबत नहीं आती. उनको भी अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का अच्छा-भला सोचने का हक है
भाई, ये किसने कह दिया कि शास्त्रार्थ सिर्फ वेद-पुराणों में होता है? शास्त्रार्थ का मतलब वाद-विवाद, जिरह, प्रश्न-प्रतिप्रश्न, सवाल-जवाब होता है. जो हमारी ढोली करते रहे हैं, वो भी किसी शास्त्रार्थ से कम नहीं है. अनपढ़ होने का मतलब अज्ञानी नहीं होता शास्त्रार्थ किसी की बपौती नहीं है.
@@ManuPanwar sastrath ladai jhagde koo murkh log maharbharat kahte ha baat bibad sastrath nhi hoo sakta sastro ke sahi arth niklate ha jab bidwan jaisa addi jagat guru sankracharaya galat arth matt khiye doli koi sastrath nhi karta sirf sabar tantra ka thoda prtog kharte ha Joo ki local wali attmao ke ahawan ke liye hota devtao ka ahawan sirf mantro ka purusaran karna padta ha Joo kii meet daru pine walay nhi kar sakte hawan sa vi hota ha per sastro ke anusar na ki tashila me hawan
Uttrakhand himachal devta nhi hote ye pisach attma hote ha joo body me khelte ha woo jinke atma ball kamjor hota ha or puja karne ke liye bolte ha bakra bhiasha kat te ha inko pujna khatra hota ha chote mote kam kar dete ye atma
अच्छा प्रस्तुतीकरण।पहले ढोल जीवन के कई कार्यों खेती , मंगलमय और अशुभ कार्यों में प्रयुक्त होता था।
आपके इस प्रयास को साधुवाद और और ढोल बजाने की कला जो अब तक छिपी हुई थी उसके लिए आपको बहुत बहुत बधाइयां बधाइयां👏🙏🚩
धन्यवाद. ☺
बहुत गज़ब संगत पंवार जी 👌🏻👍🏻
भौत धन्यवाद ☺
वाह मन्नू जी आप तो अच्छा ढोल बजा लेते हो l आप अपनी संस्कृति को बचाने की खातिर एक बहुत ही अच्छी मुहिम चला रहे हो l
बहुत ही अच्छी वीडियो और जानकारी l
👍👌👌🙏,
बहुत धन्यवाद आपका
Very nice live gagwarsayan patti my village tamlag
Hum gumain se😂
Excellent efforts deserve all praise.
thankyou
Vastav mein ye blog mujhe kafi pasand aaya garhwal ki lupt hoti sanskriti ko bachane aur use wpis lane ka aapne sarahniya prayas kiya hai. Thank u manu.
बहुत धन्यवाद आपका
Dhol bazana achha prayas
vedio is good
sanskriti ko bachane ka or
logo ko vedio ke madhayam se
janata ke samne lane ke liye
atti uttam prastuti he.
I congratulate you.
बहुत खूब! मनु पंवार जी!🙏🙏🙏
धन्यवाद आपका
Wah kitna achha dhol bajate hain aap manu ji. Ye dhol bajana aap bahut achha seekha hai aapne.
जी धन्यवाद. ढोल बजाना विधिवत नहीं सीखा. बचपन से अपने इन लोक कलाकारों को देख सुनकर आ गया
ढोल का "पुड़ा" यदि synthetic का चढ़ाया गया हो तो पाण्डव वार्ता(मंडाण) में कई देवता नहीं नाचते, क्योंकि चमड़े के "पुड़े" की अनुगूंज ही अनोखी होती है,
ये चमड़े वाले ही हैं
ख्याढियूसैण के दास भी बहुत अच्छे थे🎉🎉
जय उत्तराखण्ड 🙏🙏🙏
मनू पंवार जी सराहनीय प्रयास आपका।👌
जी बहुत धन्यवाद आपका 🙏
Manu jee exploring these folk musicians is appreciable something should be done for their Upliftiment Auji are real
Carrier of language and culture
जी बहुत धन्यवाद। अब तो गिने-चुने ही बचे हैं। दरअसल इनके साथ न्याय नहीं हो पाया। उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया गया, इसीलिए यह कला अब संकट में घिरी हुई है। समाज के तौर पर हम बड़े लेवल पर कोशिश करेंगे तो कुछ लोगों को उनकी कला के साथ बचा सकते हैं।
Great to know 🎉
Hamare forefathers or old citizen se bahut badi galati hui jo inki value nahi ki
Jaat paat ki wajah se inko ignore Kiya. Hum sabko apni galti maanni chahiye agar abhi yeah log Hain toh unka sarakhchan karna chahiye
बिल्कुल. इसीलिए ये कला लुप्त होने की कगार पर है
परमार जी साधू वाद। आप गढ़वाल की ही नहीं उत्तराखंड की बात कर रहे हैं। मंडाण कुमायुं खण्ड में जागर है। झूशिया दमाई प्रसिद्ध ढोल वादकों में से रहे हैं। आप उत्तराखंड की आवाज हैं। जागर में भी महाभारत की कहानियां होती हैं। पूरा पर्व 22 दिन का आयोजन होता है। जिसे बैसी भी कहते हैं।
श्रीमान जी हमारे इलाके के प्रख्यात ढोल सागर के जानकर श्री जम्मा दास जी भी ढोल विधा में काफी प्रगाढ़ जानकारी रखते थे उनका गांव पट्टी कंडवालस्यु ग्राम कुंडी था
उन्हें ढोल सागर की विद्या ज्योतिष शास्त्र एवं ढोल सागर के प्रकांड विद्वान पंडित श्री भास्कर जोशी जी ने दी थी जो गंगा तट स्थित देवप्रयाग में रहते हैं और नक्षत्र वेधशाला का संचालन करते हैं
यदि आप जम्मा दास जी के बारे में कोई जानकारी मिले दे सकें तो आपकी अति कृपा होगी
जय भारत जय उत्तराखंड 🚩🚩
जोशी जी से बहुत पुरानी मुलाकात है. कभी जाना होगा तो ज़रूर पता लगाऊंगा. आपका धन्यवाद
वाह
Aap Kyark ke hainnkya
मनु जी गढ़वाल के मोदी जी है,🎉🎉
हा हा हा😆भाई 🙏
Bhanwar ji jod bajata tha jod
Ha sawal jabab puchey jate they
Mujhe aapse question karna hai agar aapko yah lagta hai ki UN Logon ne apni Sanskriti ko kyon chhod diya hai
संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी किसी एक तबके की नहीं होती. पूरे समाज की होती है. हमारे इन लोककलाकारों के इस हुनर को अगर रोज़गार से जोड़ा जाता तो आज ऐसी नौबत नहीं आती. उनको भी अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का अच्छा-भला सोचने का हक है
आपने बहुत बड़ी बेकूफी की। हमारे क्षेत्र में उन्हें तब व अब भी सम्मान देते हैं। मैं उत्तरकाशी गाजणा से
Sastrasat sirf ved puran padha hoo na ki anpad admi pandav moksh hoo gya woo atma nhi ha ab
भाई, ये किसने कह दिया कि शास्त्रार्थ सिर्फ वेद-पुराणों में होता है?
शास्त्रार्थ का मतलब वाद-विवाद, जिरह, प्रश्न-प्रतिप्रश्न, सवाल-जवाब होता है.
जो हमारी ढोली करते रहे हैं, वो भी किसी शास्त्रार्थ से कम नहीं है.
अनपढ़ होने का मतलब अज्ञानी नहीं होता
शास्त्रार्थ किसी की बपौती नहीं है.
@@ManuPanwar sastrath ladai jhagde koo murkh log maharbharat kahte ha baat bibad sastrath nhi hoo sakta sastro ke sahi arth niklate ha jab bidwan jaisa addi jagat guru sankracharaya galat arth matt khiye doli koi sastrath nhi karta sirf sabar tantra ka thoda prtog kharte ha Joo ki local wali attmao ke ahawan ke liye hota devtao ka ahawan sirf mantro ka purusaran karna padta ha Joo kii meet daru pine walay nhi kar sakte hawan sa vi hota ha per sastro ke anusar na ki tashila me hawan
Uttrakhand himachal devta nhi hote ye pisach attma hote ha joo body me khelte ha woo jinke atma ball kamjor hota ha or puja karne ke liye bolte ha bakra bhiasha kat te ha inko pujna khatra hota ha chote mote kam kar dete ye atma
Pnvar g please phad nhi only garhwali bola kro
एक ही बात है वैसे भाई
@@ManuPanwar sr phadi mtlb Naga kuki Himachal Pradesh or Nepal k log garhwali mtlb pure log
@@Prooju वैसे दिल्ली और इर्दगिर्द के इलाकों में हमारी पहचान सिर्फ पहाड़ी के रूप में ही है. फिर चाहे हम गढ़वाली हों या कुमाऊंनी
ढोली का फोन no. मिलेगा क्या