हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि किसी भी स्थिति में हमें समाधान स्वीकार होता है, मूल्य (वस्तु मूल्य सहित समस्त मूल्य) स्वीकार होते हैं और सत्य या भ्रम में सत्य का चयन स्वीकार ही होता है, इस प्रकार भ्रमित अवस्था में भी मानव न्याय धर्म और सत्य का आकांक्षी होता ही है। उसके पास बस न्याय धर्म और सत्य रूपी वस्तु का ही अभाव रहता है।
चित्त के पहले शब्द। चित्त के बाद अर्थ। क्या बात है बाबा जी 🎉
bahut jyda deep baat bole hee baba Ji 🙏🙏
जय हो परम पूज्य गुरुजी महाराज की
हरि हर श्रृद्धेय वावा जी।
Very good.❤😮❤..jgd
Ise slow speed Kar ke Kai bar sunne se self-realization ki sambhavna he.
Bar bar sunna pdega jab tak shabdo k arth clear na ho
Baba ji bole ki itna sa baat he jisko til ka tad na banaya jaye wo ekdam sahi he agar jigyasa se ek hi vedio ke shabdo k arth ko pakad paye
🙏🏻🕉️🌹🚩
🙏🙏🙏
भ्रमित अवस्था में भी न्याय धर्म सत्य की अपेक्षा बनी हुई है। कोई उदाहरण दीजिए तो कृपा होगी आपकी।
हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि किसी भी स्थिति में हमें समाधान स्वीकार होता है, मूल्य (वस्तु मूल्य सहित समस्त मूल्य) स्वीकार होते हैं और सत्य या भ्रम में सत्य का चयन स्वीकार ही होता है, इस प्रकार भ्रमित अवस्था में भी मानव न्याय धर्म और सत्य का आकांक्षी होता ही है। उसके पास बस न्याय धर्म और सत्य रूपी वस्तु का ही अभाव रहता है।
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