श्री कृष्ण भाग 97 - सत्यभामा ने किया श्री कृष्ण का दान । रामानंद सागर कृत

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  • Опубліковано 7 лют 2025
  • Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 97 - Satyabhama donated to Shri Krishna
    द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण की रानी सत्यभामा ने पारिजात वृक्ष के नीचे पुण्यक व्रत रखने का संकल्प लिया हुआ है। देवराज इन्द्र श्रीकृष्ण को देवलोक की निधि पारिजात को देने से मना कर देता है। तब श्रीकृष्ण इन्द्र से युद्ध करते हैं। श्रीकृष्ण का सुदर्शन इन्द्र का शीश काटने को बढ़ता है तभी देवमाता अदिति बीच में आती हैं और श्रीकृष्ण से युद्ध विराम का निवेदन करती हैं और उन्हें इस शर्त के साथ पारिजात दे देती हैं कि सत्यभामा का पुण्यक व्रत पूरा होने पर यह वापस देवलोक में आ जायेगा। यह दृश्य देखकर नारद मुनि मन की गति से भगवान श्रीकृष्ण से पहले द्वारिकापुरी पहुँच जाते हैं और सत्यभामा को बताते हैं कि जिस पारिजात को भगवान शंकर भी अपनी पत्नी पार्वती जी के लिये प्राप्त नहीं कर सके थे, उसे श्रीकृष्ण जी ने आपके लिये प्राप्त कर लिया है। इससे सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण आपसे कितना अधिक प्रेम करते हैं। अन्यथा वे यह काम देवी रुक्मिणी के कहने पर भी नहीं करते। नारद जी की बातों से सत्यभामा अहंकार और बढ़ता है। नारद जी वापस जाने को होते हैं तभी सत्यभामा उनसे व्रत का अनुष्ठान सम्पन्न कराने का आग्रह करती हैं। नियत शुभ मुहूर्त पर देवर्षि नारद सत्यभामा के पुण्यक व्रत का आयोजन कराते हैं। वह सत्यभामा से कहते हैं कि व्रत के विधान स्वरूप व्रत का प्रारम्भ करने से पूर्व यजमान को अपनी सबसे प्रिय वस्तु दान में देनी होती है। सत्यभामा कुछ सोच विचार में पड़ती हैं और फिर कहती हैं कि संसार में तो मुझे सबसे प्रिय मेरे पति द्वारिकाधीश ही हैं। बस नारद मुनि यहीं बात पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि देवी, अब तो आपको मुझे द्वारिकाधीश ही दान में देने पड़ेंगे। सत्यभामा पीछे हटती हैं और कहती हैं कि मैं अपने पति का अनन्त प्रेम पाने के लिये ही यह व्रत कर रही हूँ। यदि मैं उनका ही दान कर दूँगी तो उनका प्रेम कैसे पाऊँगी। तब नारद जी कहते हैं कि दान की हुई चीज यदि वापस लेनी हो तो ब्राह्मण को उसका मुहमाँगा मोल देकर दान दी हुई चीज वापस खरीदी जा सकती है। सत्यभामा को यह उपाय बहुत पसन्द आता है। इसके बाद वह हाथ में जल लेकर संकल्प लेती हैं कि अपने सार्थक व्रत के संकल्प के लिये मैं कृष्णपत्नी सत्यभामा अपने पुरोहित ब्रह्मापुत्र नारद को अपने पति का दान करती हूँ। सत्यभामा के इस संकल्प को सुनकर श्रीकृष्ण, रुक्मिणी और जामवन्ती तीनों हतप्रभ होते हैं। अब नारद जी श्रीकृष्ण के स्वामी होने का दिखावा करते हैं। वे श्रीकृष्ण से कहते हैं कि मुझे भूख लगी है। अब आप अपने हाथों से मेरे लिये भोजन बना कर लायें। श्रीकृष्ण किसी दास की भाँति अपना अंगवस्त्र कमर पर बाँध लेते हैं और रसोई की ओर बढ़ते हैं। यह देखकर सत्यभामा विचलित होती हैं। वह नारद जी से कहती हैं कि आपने द्वारिकाधीश का दान किया है इसका अर्थ यह नहीं कि आप उन्हें दास बना लें। तब नारद जी मजा लेते हुए श्रीकृष्ण से कहते हैं कि अब आप ही देवी सत्यभामा को दान का अर्थ समझाईये। श्रीकृष्ण सत्यभामा से कहते हैं कि तुम मुझे देवर्षि नारद जी को दान में दे चुकी हो। अब ये मेरे स्वामी हैं और मैं इनका दास। अब मुझे इनकी सेवा करनी होगी। यह सुनकर सत्यभामा रुऑंसी होती हैं और नारदजी के चरणों पर गिरकर कहती हैं कि मुझसे भूल हो गयी, मुझे क्षमा कर दीजिये, मुझे मेरा पति लौटा दीजिये। नारद जी श्रीकृष्ण से संकेतों में पूछते हैं कि अब क्या आज्ञा है प्रभु। अब तो इनका अहंकार टूट गया है। क्या छोड़ दूँ। श्रीकृष्ण भी संकेत से मना करते हैं और मानस संवाद के माध्यम से नारद जी से कहते हैं कि अभी अहंकार नहीं टूटा है। केवल ईर्ष्या की दीवार टूटी है। ये भावुकता के आँसू हैं जो केवल मन के ऊपरी मैल को धो रहे है। किन्तु अभी अन्तर्मन में अहंकार की जड़े समायी हुई हैं जिन्हें उखाड़ा जाना अभी शेष है। नारद जी भी मानस में कहते हैं कि जैसी आपकी आज्ञा प्रभु। उधर रुक्मिणी जी तो देवी लक्ष्मी का अवतार हैं। वह नारद जी और श्रीकृष्ण जी के बीच चल रहे मानस संवाद को सुन लेती हैं और समझ जाती हैं कि यहाँ दोनों मिलकर एक नाटक कर रहे हैं। नारदजी श्रीकृष्ण को लौटाने से साफ मना करते हैं और उनसे अपना भोजन बनवाने के लिये उन्हें रसोई घर में खींच ले जाते हैं। सत्यभामा रोते हुए रुक्मिणी के पास आती हैं और उनसे भी क्षमा माँगते हुए कहती हैं कि दीदी, मुझे ईष्या ने अंधा कर दिया था, अब आप ही परिस्थिति को सम्भालिये। रुक्मिणी कुछ न कुछ करने का आश्वासन देती हैं।
    Produced - Ramanand Sagar / Subhash Sagar / Pren Sagar
    निर्माता - रामानन्द सागर / सुभाष सागर / प्रेम सागर
    Directed - Ramanand Sagar / Aanand Sagar / Moti Sagar
    निर्देशक - रामानन्द सागर / आनंद सागर / मोती सागर
    Chief Asst. Director - Yogee Yogindar
    मुख्य सहायक निर्देशक - योगी योगिंदर
    Asst. Directors - Rajendra Shukla / Sridhar Jetty / Jyoti Sagar
    सहायक निर्देशक - राजेंद्र शुक्ला / सरिधर जेटी / ज्योति सागर
    Screenplay & Dialogues - Ramanand Sagar
    पटकथा और संवाद - संगीत - रामानन्द सागर
    Camera - Avinash Satoskar
    कैमरा - अविनाश सतोसकर
    Music - Ravindra Jain
    संगीत - रविंद्र जैन
    Lyrics - Ravindra Jain
    गीत - रविंद्र जैन
    Playback Singers - Suresh Wadkar / Hemlata / Ravindra Jain / Arvinder Singh / Sushil
    पार्श्व गायक - सुरेश वाडकर / हेमलता / रविंद्र जैन / अरविन्दर सिंह / सुशील
    Editor - Girish Daada / Moreshwar / R. Mishra / Sahdev
    संपादक - गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर॰ मिश्रा / सहदेव
    Cast / पात्र
    Sarvadaman D. Banerjee
    सर्वदमन डी. बनर्जी
    Swapnil Joshi
    स्वप्निल जोशी
    Ashok Kumar
    अशोक कुमार बालकृष्णन
    Deepak Deulkar
    दीपक डेओलकर
    Sanjeev Sharma
    संजीव शर्मा
    Pinky Parikh
    पिंकी पारिख
    Reshma Modi
    रेशमा मोदी
    Shweta Rastogi
    In association with Divo - our UA-cam Partner
    #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna

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