साहिब बंदगी सतनाम जी सतगुरु नितिन दास साहेब जी के चरणों में दास का कोटि कोटि प्रणाम गुरुजी कि सदा ही जय हो सदा ही जय हो सदा ही जय हो साहिब बंदगी सतनाम जी
गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छड़े मूढ़ किसाना। गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी। कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार। सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझै ना दूजी बार।।
कबीर परमेश्वर जी कहते हैं:-👇 सतयुग में सत् सुकृत कह टेरा, त्रेतायुग में नाम मुनिन्दर मेरा। द्वापरयुग में कारूणमय कहलाया, कलयुग में कबीर नाम धाराया।। कबीर साहेब जी कहते हैं:-👇 🌹🌹जो मम संत सत् उपदेश दृढा़वै, वाके संग सब राड बढा़वै । या सन्त - महान्त की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
✍कबीर,सुख के माथे पत्थर पडो, जो नाम ह्रदय से जाय।। बलिहारी उस दुख के, जो पल पल नाम रटाय।।💞💞 ✍स्वामी रामानंद राम मै , मैं बामन नरसिंह । दास गरीब सर्व कला मैं ही व्यापक सरबंग ।।💞💞✍
गरीब, अंधे गूंगे गुरु घने, लंगड़े लोभी लाख साहिब हैं परचे नहीं, काव बनावें साख।। गरीब, ऐसा सतगुरू सेईये, शब्द समाना होय। भौ सागर में डूबतें, पार लंघावैं सोय।।
✍मैं अवगत गति से परै च्यारि बेद सें दूर । दास गरीब दशौं दिशा शक्ल सिंध भरपूर ।।💞💞 ✍दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल। नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बंका बाल।।💞💞
गरीब जल थल पृथ्वी गगन में बाहर भीतर एक। पूर्ण ब्रह्म कबीर है अविगत पुरुष आलेख।। कबीर, झूंठे सुख को सुख कहे, मान रहा मन मोद। सकल चबीना काल का कछु मुख मे कछु गोद।। कबीर ,प्रेम पांवरी पहिन के,धीरज काजल देय। शील सिंदूर भराय के,जगत पती का सुख लेय।।गरीब, सेवक होकर उतरे, इस पृथ्वी के माही । जीव उधारण जगत गुरु, बार बार बलि जाहि ।।
कृपा पाठक पढ़े निम्न अमृतवाणी परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा उच्चारित:- धर्मदास यह जग बौराना। कोई न जाने पद निरवाना।।1।। यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।। यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।2।। भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम का का भेद न जाना।।3।। राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोई बिरला जाने।।4।। ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।5।। अब मैं तुमसे कहूँ चिताई। त्रिदेवन की उत्पत्ति भाई।।6।। कुछ संक्षेप कहूँ गौहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।7।। माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।8।। पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।।9।। माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।10।। कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।11।। पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।12।। टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।13।। सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।14।। माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।15।। अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।16।। धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।17।। धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।18।। तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।19।। तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।20।। पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।21।। तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।22।। अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।23।। तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।24।। अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।25।। ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।26।। तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।27।। अकाल पुरुष काहू नहीं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।28।। ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्म को ना पहिचाने।।29।। तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।30।। तीनों गुण का यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।31।। गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।।32।। कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।33।।
गरीब, साहेब के दरबार में, ग्राहक कोटि अनन्त। चार चीज चाहे है, रिद्धि सिद्धि मान महंत।। गरीब, ब्रह्म रंध्र के घाट को, खोलत है कोई एक। द्वारे से फिर जाते है, ऐसे बहुत अनेक।। गरीब, बीजक की बाता कहें, बीजक नाहीं हाथ। पृथ्वी डोबन उतारै, कह - कह मीठी बात।। गरीब, बीजक की बाता कहें, बीजक नाहीं पास। औरों को प्रमोद्ही, अपना चलें निरास।। कबीर कंठी माला सुमरनी, पहरे से क्या होय। ऊपर डूंडा साध का, अंतर राख्या खोय।।
कबीर सत्यनाम सुमरले प्राण जाएंगे छुट । घरके प्यारे आदमी चल्ते लेंगे लुट ।। कबीर , जबही सत्यनाम हृदय पड्याे भयाे पाप का नाश । जैसे चिंगारी अग्नीकी पडी पुरानी घास ।। कबीर लुट सकाे ताे लुटलाे राम नाम की लुट । पिछे फिर पछताव गे प्राण जाएंगे छुट ।। कबीर कहता हु कहीं जात हु सुनता है सब काेए । सुमिरन से भला हाेए नातर भलाे ना हाेए ।। अरे मुर्ख नितीन जीस परमेश्वर ने अप्नी 120 साल कि लिलामय जीवन मे सिर्फ सच्चे परमात्मा का भक्ति और सुमिरन का पाठ पडाया उसी परमात्मा का नाम लेकर उल्टी शिक्षा दे रहा है । परमात्माम के मार्ग मे अंधे गधा बनकर मत खडा हाे नही ताे परमात्मा का सतज्ञान रुपी ट्रेन इतनी तेज आगे बडरही है कि टुक्डे टुक्डे कर डालेगी ...
🎯गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता किसी तत्वदर्शी संत की खोज करने को कहता है। आखिर कौन है वह तत्वदर्शी संत? जानने के लिए अवश्य पढ़ें अनमोल पुस्तक ज्ञान गंगा।
Raja Janak vidai the donon ne HAL kaise chalaya Sita kaise Mili unko jiske atma hoti hai vah to HAL nahin chala pata humko to sharir hi nahin tha FIR HAL kaise chalaya unhone kheton mein tab barish Hui
Ap gita ji k anusar shi bta rhe ho ji 🙏🙏🙏
साहेब बंदगी सतनाम गुरु जी
साहेब बंदगी सतनाम गुरु साहेब जी 🤲🤲🌹👏🏻👏🏻🌹🌹👏🏻👏🏻
साहेब बंदगी सतनाम गुरु जी 🙏🤲🌼🌺
Apne shi btaya ji ,ager kisi ki jeebh nhi h to vah bol kr bhgvan ka name kese lega
❤🎉jai satnam , saheb bandagi 🎉❤
साहिब बंदगी सतनाम 🙏🏻🌹गुरु जी
Sahib bandghi satnam ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤😂❤❤❤❤❤❤😂😂😂😂😂
Saheb bandagi
Sat naam Guru ji
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
साहिब बंदगी सतनाम जी सतगुरु नितिन दास साहेब जी के चरणों में दास का कोटि कोटि प्रणाम गुरुजी कि सदा ही जय हो सदा ही जय हो सदा ही जय हो साहिब बंदगी सतनाम जी
SAHEB BANDGI SATNAAM JI CHARAN VANDANA SAHEB JI
साहेब बदगी सतनाम जी 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
साहीबजी बंदगी सतनाम
Wah mere Saheb ji aapko satt satt Naman ❤❤
कबीर झूठे गुरु अजगर बने लख चौरासी माही।
सब शिष्य चींटी बने और तन नोच-नोच खाही।।
Satya, नूर, प्रेम वही है। Wo our मे 1 hi hai।
गुरू बिन काहू न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुष छड़े मूढ़ किसाना।
गुरू बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझै ना दूजी बार।।
Saheb ji ke charno me koti koti pranam aur dandwat 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🌹🌹 Sahib Bandagi Satnam 🌹🌹
Saheb bandagi satnam saheb ji 👣👣🙇🙇♀️🙇♂️🙇🙇♂️🙇♀️🙌🙌👏👏👏🌼🌼💮🌻💐🌸💗💕🤲🤲🤲🌹🌹🌹🌹🌹
साहिब बंदगी सतनाम
कबीर परमेश्वर जी कहते हैं:-🙏
कबीर, वेद पढ़ें पर भेद ना जानें, बांचे पुराण अठारा।
पत्थर की पुजा करें, भुले सिरजनहारा।।
❤❤❤❤❤❤❤😊😊😊😊😊😊
जो मिला हुआ है उसे क्या ढूंढ़ना यही मतलब समझ आता है आपकी बातों से
कबीर, पर्वत पर्वत मैं फिर्या, कारण अपने राम।
राम सरीखे संत मिले, जिन सारे सब काम।।
कबीर परमेश्वर जी कहते हैं:-👇
सतयुग में सत् सुकृत कह टेरा, त्रेतायुग में नाम मुनिन्दर मेरा।
द्वापरयुग में कारूणमय कहलाया, कलयुग में कबीर नाम धाराया।।
कबीर साहेब जी कहते हैं:-👇
🌹🌹जो मम संत सत् उपदेश दृढा़वै, वाके संग सब राड बढा़वै ।
या सन्त - महान्त की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर,सतगुरु के उपदेश का, सुनिया एक बिचार।
जो सतगुरु मिलता नहीं, जाता यम के द्वार।।
✍कबीर,सुख के माथे पत्थर पडो, जो नाम ह्रदय से जाय।।
बलिहारी उस दुख के, जो पल पल नाम रटाय।।💞💞
✍स्वामी रामानंद राम मै , मैं बामन नरसिंह ।
दास गरीब सर्व कला मैं ही व्यापक सरबंग ।।💞💞✍
Sahib bandi sat nam
गरीब, अंधे गूंगे गुरु घने, लंगड़े लोभी लाख साहिब हैं परचे नहीं, काव बनावें साख।।
गरीब, ऐसा सतगुरू सेईये, शब्द समाना होय।
भौ सागर में डूबतें, पार लंघावैं सोय।।
👏👏👏👏👏👏
✍मैं अवगत गति से परै च्यारि बेद सें दूर ।
दास गरीब दशौं दिशा शक्ल सिंध भरपूर ।।💞💞
✍दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल।
नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बंका बाल।।💞💞
, वाह वाह मेरे साहिब वह आपके श्री चरणो में कोटि कोटि दंडवत प्रणाम बंद
Saheb bandgi satnam guru ji 🌹🌹🙏🙏😍❤️🌹🙏🤾♂️🥀🤾♀️❤️🙏🌹
कबीर, एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाव।।
माली सिंचे मूल को, फलै फूलै अघाय।।
काल डरे करतार से , जय जय जय जगदीश।
जौरा जौरी झाड़ती , पग रज डारै शीश।
गरीब जल थल पृथ्वी गगन में बाहर भीतर एक।
पूर्ण ब्रह्म कबीर है अविगत पुरुष आलेख।।
कबीर, झूंठे सुख को सुख कहे, मान रहा मन मोद।
सकल चबीना काल का कछु मुख मे कछु गोद।।
कबीर ,प्रेम पांवरी पहिन के,धीरज काजल देय।
शील सिंदूर भराय के,जगत पती का सुख लेय।।गरीब, सेवक होकर उतरे, इस पृथ्वी के माही ।
जीव उधारण जगत गुरु, बार बार बलि जाहि ।।
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साहेब बंदगी सतनाम गुरु जी आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम 🌹🙏🌹
सतनाम साहिब बंदगी गुरुजी प्रणाम
कबीर सुमरन सार है और सकल जंजाल ।
जय सतनाम🌼🌼
कृपा पाठक पढ़े निम्न अमृतवाणी परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा उच्चारित:-
धर्मदास यह जग बौराना। कोई न जाने पद निरवाना।।1।।
यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवों का भरम नशाओ।।2।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि राम का का भेद न जाना।।3।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोई बिरला जाने।।4।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।5।।
अब मैं तुमसे कहूँ चिताई। त्रिदेवन की उत्पत्ति भाई।।6।।
कुछ संक्षेप कहूँ गौहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।7।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।8।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछे से माया उपजाई।।9।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।10।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।11।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।12।।
टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।13।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।14।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।15।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।16।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।17।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।18।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।19।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।20।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।21।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।22।।
अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।23।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।24।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।25।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।26।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।27।।
अकाल पुरुष काहू नहीं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।28।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्म को ना पहिचाने।।29।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।30।।
तीनों गुण का यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।31।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।।32।।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।33।।
ਆਤਮ ਪਰਮਾਤਮ ਏਕੌ ਕਰੇ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦ ਮ ਕਬਹੂ ਨਾ ਮਰੇ ❤
Satnam guru ji❤
Sahebbandgisatnam
हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतुब-गोस अरु पीर।
गरीब दास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।’’
गरीब, भेखो के लश्कर फिरै , बाणी चोर कठोर।
सतगुरु धाम ना पहुंचेंगे, चौरासी के ढोर।।
में सुख शांति समृद्धि 🙏 और
कबीर, ढोलक ताल मन्झीरे पीटे, ताना री री गांवे है |
ज्ञानी पूरूष निकट ना जाते, मूर्खो को रीझ रीझावें है ||
Shahab bad gi🎉🎉🎉❤❤😊😊🙇♂️🙇♂️
साहिब बंदगी
❤❤❤
गरीब, साहेब के दरबार में, ग्राहक कोटि अनन्त।
चार चीज चाहे है, रिद्धि सिद्धि मान महंत।।
गरीब, ब्रह्म रंध्र के घाट को, खोलत है कोई एक।
द्वारे से फिर जाते है, ऐसे बहुत अनेक।।
गरीब, बीजक की बाता कहें, बीजक नाहीं हाथ।
पृथ्वी डोबन उतारै, कह - कह मीठी बात।।
गरीब, बीजक की बाता कहें, बीजक नाहीं पास।
औरों को प्रमोद्ही, अपना चलें निरास।।
कबीर कंठी माला सुमरनी, पहरे से क्या होय।
ऊपर डूंडा साध का, अंतर राख्या खोय।।
❤😂🎉
कबीर सत्यनाम सुमरले प्राण जाएंगे छुट ।
घरके प्यारे आदमी चल्ते लेंगे लुट ।।
कबीर , जबही सत्यनाम हृदय पड्याे भयाे पाप का नाश ।
जैसे चिंगारी अग्नीकी पडी पुरानी घास ।।
कबीर लुट सकाे ताे लुटलाे राम नाम की लुट ।
पिछे फिर पछताव गे प्राण जाएंगे छुट ।।
कबीर कहता हु कहीं जात हु सुनता है सब काेए ।
सुमिरन से भला हाेए नातर भलाे ना हाेए ।।
अरे मुर्ख नितीन जीस परमेश्वर ने अप्नी 120 साल कि लिलामय जीवन मे सिर्फ सच्चे परमात्मा का भक्ति और सुमिरन का पाठ पडाया उसी परमात्मा का नाम लेकर उल्टी शिक्षा दे रहा है ।
परमात्माम के मार्ग मे अंधे गधा बनकर मत खडा हाे नही ताे परमात्मा का सतज्ञान रुपी ट्रेन इतनी तेज आगे बडरही है कि टुक्डे टुक्डे कर डालेगी ...
कौन ब्रह्मा का पिता है कौन विष्णु की माता।
शंकर का दादा कौन है, पंडित जी देवो हमको बता।।
🎯गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता किसी तत्वदर्शी संत की खोज करने को कहता है। आखिर कौन है वह तत्वदर्शी संत? जानने के लिए अवश्य पढ़ें अनमोल पुस्तक ज्ञान गंगा।
मूर्खतापूर्ण पुस्तक है ये
भेड़ पुछ को पंडित पकड़ें, भादों नदी विहागां।
गरीबदास वो भवजल डुबे, नहीं साध सत्संगा।
Es sanstha ka nombar chahiye
Geeta ji ka shi gyan hi kbir das ji btate the ,lekin iska mtlb kai guruo ne alag hi bna diya 😂
कबीर दास जी के गुरु का नाम क्या है
Bhai sahab,sare jante hai sant Kabir dass ne ram ram Kiya 😂😂😂😂
Raja Janak vidai the donon ne HAL kaise chalaya Sita kaise Mili unko jiske atma hoti hai vah to HAL nahin chala pata humko to sharir hi nahin tha FIR HAL kaise chalaya unhone kheton mein tab barish Hui
Yah Nitish das jhutha gyan faila raha hai ek bar janne ke liye sant Rampal Ji maharaj ki debate sune Nitish Das
Nitin dass ek bat bata , tujhe kya lalach hai ,jo itni magajmari krte ho, jub tujhe gyan ho gya ja mukat hoja jake 😂😂😂😂😂😂😂😂😂
Jai ho mere gurudev
Satname Saheb bandagi saheb ji 🎉
👏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏👏
भेड़ पुछ को पंडित पकड़ें, भादों नदी विहागां।
गरीबदास वो भवजल डुबे, नहीं साध सत्संगा।
Es sanstha ka nombar chahiye
❤ mere malik apki sada hi Jai ho
साहेब बंदगी सतनाम जी🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌷🌷🌷🌷
साहेब बंदगी सतनाम जी ❤❤
साहेब बंदगी सतनाम 🙏
भेड़ पुछ को पंडित पकड़ें, भादों नदी विहागां।
गरीबदास वो भवजल डुबे, नहीं साध सत्संगा।
भेड़ पुछ को पंडित पकड़ें, भादों नदी विहागां।
गरीबदास वो भवजल डुबे, नहीं साध सत्संगा।