ram seeta bibha club (karroh) nonal

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  • Опубліковано 11 гру 2024
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    सीता - राम विवाह
    ऋषि विश्वा मित्र संग जब मिथिला पहुंचे राम।
    तब जनक निज आसन तज,
    स्वागत को आगे आए ,
    देख ऋषि संग राम।।
    स्वागत सत्कार की वेला में,
    सीता स्वयंवर था उनको रचना,
    इस पावन बेला मै।
    झूम रहा था जग सारा,तीनो लोको में थी धूम।
    राम - सीता विवाह देख रहे थे,
    तारे भी दिन में घूम - घूम।।
    करता जो भी शिव धनुष भंग।
    होती सीता उसके अंग।।
    पर, राम - सीता स्वयंवर नियति थी।
    राम पालक ,सीता जगत जयति थी।।
    देख रहे थे सभी सभासद,
    देख रहे थे सभी राजा।
    है कौन ये युवक,लगता है जो
    राजाओं का भी राजा।।
    अदभुत आभा है चेहरे की, अदभुत है तेज।
    सावली सूरत, मोहिनी मूरत ,
    बैठे हो जैसे शेषनाग की सेज।।
    इसी बीच घड़ी स्वंयवर की आई।
    सखियों सहित सीता भी आई।।
    राम - सीता का ये मिलन।
    देख रहे थे तीनो भुवन।।
    जब घड़ी धनुष भंग की थी आई।
    सभी राजाओं ने कि कोशिश, किस्मत आजमाई।।
    पर, कोई पार न पा सका।
    धनुष को डिगा न सका।।
    तब, निराश होकर बोले जनक।
    क्या ये भूमि विरक्त हो चुकी,
    वीरो से, लेकर जमी से फलक।।
    तब, लक्ष्मण से न सहा गया,ये प्रतिवाद।
    कहे श्री राम तो दिखा दू अभी, है मुझ पर आशीर्वाद।।
    ऋषि विश्वा मित्र ने शांत कर लखन को कहा,
    बैठो ,अभी बड़े राम है, होगा वहीं जिनके भाग बड़े है।।
    फिर ऋषि, और भगवान को वंदन कर।
    राम बढ़े आगे ,धनुष उठाने,
    मन ही मन,शिव को वंदन कर।।
    एक ही झटके से फिर धनुष को था उठाया।
    रघुवंशी मर्यादा,और स्वयंवर का मान था बढ़ाया।।
    हुए हर्षित सभी,जो हुआ था अभी।
    तोड़ धनुष प्रण पूरा था किया।
    सीता को पत्नी रूप में अंगीकार था किया।।
    राम की शक्ति और शील गुण देख।
    चकित थे सभी,ऐसे थे विधाता के लेख।।
    राम - सीता विवाह की ये कैसी पावन बेला थी।
    पुलकित था कण - कण ,
    रची, विधाता की लीला थी।।

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