23 Aug 2020 Murli class by BK Manju Didi

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  • Опубліковано 6 вер 2024
  • बेफिकर बादशाह बनने की युक्ति
    आज बापदादा बेफिकर बादशाहों की सभा देख रहे हैं। यह राज्य सभा सारे कल्प में विचित्र सभा है। बादशाह तो बहुत हुए हैं लेकिन बेफिकर बादशाह यह विचित्र सभा इस संगमयुग पर ही होती है। यह बेफिकर बादशाहों की सभा सतयुग की राज्य सभा से भी श्रेष्ठ है क्योंकि वहाँ तो फिकर और फखुर दोनों के अन्तर का ज्ञान इमर्ज नहीं रहता है। फिकर शब्द का मालूम नहीं होता। लेकिन अभी जबकि सारी दुनिया कोई न कोई फिकर में है - सवेरे से उठते अपना, परिवार का, कार्यव्यवहार का, मित्र सम्बन्धियों का कोई न कोई फिकर होगा लेकिन आप सभी अमृतवेले से बेफिकर बादशाह बन दिन आरम्भ करते और बेफिकर बादशाह बन हर कार्य करते। बेफिकर बादशाह बन आराम की नींद करते। सुख की नींद, शान्ति की नींद करते हो। ऐसे बेफिकर बादशाह बन गये। ऐसे बने हो या कोई फिकर है? बाप के ऊपर जिम्मेवारी दे दी तो बेफिकर हो गये। अपने ऊपर जिम्मेवारी समझने से फिकर होता है। जिम्मेवारी बाप की है और मैं निमित्त सेवाधारी हूँ। मैं निमित्त कर्मयोगी हूँ। करावनहार बाप है, निमित्त करनहार मैं हूँ। अगर यह स्मृति हर समय स्वत: ही रहती है तो सदा ही बेफिकर बादशाह हैं। अगर गलती से भी किसी भी व्यर्थ भाव का अपने ऊपर बोझ उठा लेते हो तो ताज के बजाए फिकर के अनेक टोकरे सिर पर आ जाते हैं। नहीं तो सदा लाइट के ताजधारी बेफिकर बादशाह हो। बस बाप और मैं तीसरा न कोई। यह अनुभूति सहज बेफिकर बादशाह बना देती है। तो ताजधारी हो या टोकरेधारी हो? टोकरा उठाना और ताज पहनना कितना फर्क हो गया। एक ताजधारी सामने खड़ा करो और एक बोझ वाला, टोकरे वाला खड़ा करो तो क्या पसन्द आयेगा! ताज या टोकरा? अनेक जन्मों के अनेक बोझ के टोकरे तो बाप आकर उतार कर हल्का बना देता। तो बेफिकर बादशाह अर्थात् सदा डबल लाइट रहने वाले। जब तक बादशाह नहीं बने हैं तब तक यह कर्मेन्द्रियाँ भी अपने वश में नहीं रह सकती हैं। राजा बनते हो तब ही मायाजीत, कर्मेन्द्रिय-जीत, प्रकृति जीत बनते हो। तो राज्य सभा में बैठे हो ना! अच्छा-
    वरदान:- सच्चे साथी का साथ लेने वाले सर्व से न्यारे, प्यारे निर्मोही भव
    रोज़ अमृतवेले सर्व सम्बन्धों का सुख बापदादा से लेकर औरों को दान करो। सर्व सुखों के अधिकारी बन औरों को भी बनाओ। कोई भी काम है उसमें साकार साथी याद न आये, पहले बाप की याद आये क्योंकि सच्चा मित्र बाप है। सच्चे साथी का साथ लेंगे तो सहज ही सर्व से न्यारे और प्यारे बन जायेंगे। जो सर्व सम्बन्धों से हर कार्य में एक बाप को याद करते हैं वह सहज ही निर्मोही बन जाते हैं। उनका किसी भी तरफ लगाव अर्थात् झुकाव नहीं रहता इसलिए माया से हार भी नहीं हो सकती है।
    स्लोगन:- माया को देखने वा जानने के लिए त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनो तब विजयी बनेंगे।

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