स्वयं अनुभव करके देखें Part 2

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  • Опубліковано 15 жов 2024
  • स्वयं अनुभव करके देखें
    साँसों के भेद को आसानी से समझा जा सकता है। उसका अनुभव कर उसे जीवन में उतारना बहुत सरल क्रिया है, जिसे कोई भी आसानी से सीख सकता है। साँस लेते और छोड़ते समय हमारी साँसों में एक-एक करके पाँच तत्त्व-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश प्रवाहित होते रहते हैं। कब, कौन सा तत्त्व प्रवाहित हो रहा है, इसकी अगर जानकारी रहे तो किसी भी कार्य को अनुकूल बनाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, प्रतिकूल और नुकसानदायक परिस्थितियों से बचा जा सकता है। यही नहीं, बल्कि कार्य के अनुसार तत्त्व के प्रवाह को बदला भी जा सकता है। ऐसा भी नहीं कि इसको करने के लिए आपको अलग से समय निकालने की जरूरत है। एक बार बुनियादी बातें समझने के लिए निश्चित ही थोड़ा समय और अभ्यास चाहिए, लेकिन उसके बाद आप अपनी दिनचर्या के सभी कार्य और यह अभ्यास ठीक उसी तरह एक साथ कर सकते हैं, जैसे अभी कोई काम करते हैं और साँस भी लेते हैं। बस फर्क यह होगा कि अभी आप जो काम साँस की गति, उसके तत्त्व को जाने बगैर करते हैं, फिर उसको जानकर करने लगेंगे।
    अकसर हम पूरी मेहनत से कोई कर्म करके भी उसके फल से संतुष्ट नहीं होते और किस्मत को दोष देने लगते हैं। जबकि कर्म और उसके फल के बौच उस वक्त साँस में चल रहे तत्त्व की हमें कोई जानकारी ही नहीं होती। तत्त्व ही वह शक्ति है, जिससे संपूर्ण सृष्टि का निर्माण हुआ है, जिससे उसका संचालन हो रहा है। तो भला हम तत्त्व और उसके प्रभाव से कैसे अछूते रह सकते हैं?
    उदाहरण के लिए, यदि आपकी साँस में अग्नि तत्त्व चल रहा है और उस वक्त आपको किसी बात पर क्रोध आ जाए तो आप अपना आपा खो देंगे और ऐसा कुछ कर बैठेंगे, जिस पर बाद में आपको ही पछतावा होगा कि उस बात पर उतना क्रोध जरूरी नहीं था। बिल्कुल यही बात यदि तब होती है, जब आपकी साँस में जल तत्त्व चल रहा हो तो आप क्रोध आने पर भी उसे नियंत्रित कर ले जाएँगे।
    अगर आपकी साँस में वायु तत्त्व चल रहा है तो लाख कोशिश करके भी आपका मन उस विषय पर नहीं टिक सकता, जहाँ आप उसे टिकाना चाहते हैं। आपकी हालत बेबस जैसी होती है। पुस्तक के एक ही पैरे को बार-बार पढ़कर भी वह आपके पल्ले नहीं पड़ता। ऐसे में आप बोलते हैं कि मन नहीं लग रहा। इसी तरह हमारे सभी कार्यों में हमारी साँस और उसमें चल रहे तत्त्व अपना प्रभाव दिखाते हैं।
    साँसों में तत्त्व के साथ ही साँस की गति भी जुड़ी होती है। उदाहरण के लिए, क्रोध और सेक्स के समय साँस की गति का तेज होना जरूरी है। साँस तेज हुए बगैर यह क्रियाएँ संभव ही नहीं। इसी तरह मन शांत होने के लिए साँस का अत्यंत मध्यम और धीमे चलना निश्चित है। जब भी आपका मन शांत हो तो गौर करें आपकी साँस बहुत धीमी गति से चल रही होगी। मन की हर अवस्था का साँस की गति से सीधा संबंध होता है। जरा सोचिए, अगर मन शांत होने पर साँस का धीमा हो जाना तय है तो क्या साँस को धीमा करके मन को शांत नहीं किया जा सकता ?

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