ईश्वर को चाहने वाले, शुभ कर्म नित्य करते/रचनाकार हितेंद्र आर्य जी/ Prabhu Stuti-Kirti Khurana/ 276

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  • Опубліковано 29 лис 2023
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    जगदीश हर दिशा से हर किसी को देख रहा है..
    (तर्ज: मेरा आपकी कृपा से ....)
    ईश्वर को चाहने वाले, शुभकर्म नित्य करते;
    सर्वत्र नेत्र प्रभु के, सोच पाप से वो डरते।
    सारी दिशा में व्यापक, इक छत्र प्रभु का शासन।
    जहाँ जहाँ भी जाता यह मन, पहले से उसका आसन।
    कण कण में नजर आता , जो ध्यान उसका धरते।
    सर्वत्र नेत्र प्रभु के....
    सर्वज्ञ वह मदारी , ब्रह्माण्ड को नचाता।
    उसके अधीन जीवन, दुष्टों को नित रुलाता।
    आनंद सैर करते, जो वैदिक नियम पर चलते।
    सर्वत्र नेत्र प्रभु के....
    छुप छुप जो पाप करते, क्योंकर समझ न आता।
    किससे छुपाते हो तुम, प्रभु सबके मन का ज्ञाता।
    पढ़ लेता भाव सारे, जो जो है मन में बसते।
    सर्वत्र नेत्र प्रभु के....
    सब पाप पुण्य का फल, ठीक ठीक तोलता है।
    हृदय में सही गलत को, बिना मुँह के बोलता है।
    फिर भी जो 'हित' न सुनते, अन्धकार में भटकते।
    सर्वत्र नेत्र प्रभु के....
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