महेरा चालीसा. Mehera Chalisa. Meher Baba
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- Опубліковано 25 гру 2024
- Mehera Chalisa
राम, कृष्ण और बुद्ध, मोहम्मद,
ईसा और जरथस्तु ।
ईश प्रेम की राह दिखाने,
बीच हमारे आये ॥1॥
वही पिता परमेश्वर प्रियतम,
मेहेर बन फिर आया |
मेहरा रूप में करुणा प्रेम को,
साथ सँजो वह लाया ॥2॥॥।
युग युग में तुम बनी निरन्तर,
स्रोत प्रेम की अविरल धारा |
प्रभु प्रियतम सारी सृष्टि का,
फिर-फिर प्रेमी बना तुम्हारा ॥॥3॥।
पाठ प्रेम का हमें सिखाने,
जब जब प्रभु धरती पर आते |
साथ तुम्हें एक बना उदाहरण,
प्रेम प्रतीक सतत् संग लाते ॥॥4॥।
जैसो प्रेम प्रभु चाहें हमसे,
तुम प्रति सो अनुराग दिखावें ।
प्रेम को पूर्ण बनाने खातिर,
राह मेहेर यूँ सुलभ करावें ॥5॥।
सीता बिन कोई राम ना जाने,
बिन राधा नहीं कृष्ण लखानी |
राधा-कृष्ण के प्रेम अभाव में,
बनतीं ना प्रीरा प्रेम दीवानी ॥6।|
नाम तुम्हें जो मीरा मिला था,
उसमें छुपी थी जग की भलाई |
प्रभु की खातिर तजा सुखों को,
प्रेमी जनों को राह दिखाई ॥7॥।
ईसा खूप में प्रभु ने बताया,
'पिता' और 'वे' एक हैं ।
मेहरा-मेहेर दो नाम भले हों,
प्रेम प्रतीक वे एक हैं ॥8 ॥
राह देखती सृष्टि सारी,
कलियुग के अवतारी की |
चढ़ सफेद घोड़े पर मेहेर,
लाये मुक्ति हमारी ही ॥9॥|
प्रभु अवतारी आज हमारे,
मन मंदिर में राजे हैं ।
मेहरा ने चाहा था जिनको,
वे अश्व सफेद बिराजे हैं ॥10॥|
बाबाजान ने बीज जो रोपा,
उपासनी वह बाग लगाया ।
जहाँ खिली वह कली सृष्टि की,
अनुपम पुष्प मेहेर मन भाया ॥11॥|
उपासनी प्रहाराज के आँगन,
प्रभु को देखा पहली बार |
महाराज के प्रमुख शिष्य थे,
नाम था उनका मेरवान ॥12॥|
प्रथम दरस की छाप अमिट,
मेहरा पर पड़ी थी गहरी ।
उस क्षण वे ना समझ पाई,
यह दरस बने अंतिम देहरी ॥13॥|
आश्रम की यादों में रमकर,
मेहरा हमें सुनातीं हैं ।
मेरवानजी ने लिखी आरती,
कन्यायें मिल गातीं हैं ॥14॥।
सुन्दर स्वच्छ लिपे आँगन थे,
सजे थे पूजा थाल |
कुमकुम, तिलक, अगरबत्ती,
लख मेहेरा भई निहाल ॥15॥
उपासनी महाराज ने उनको,
भ्रेंट में दी एक स्वर्ण अंगूठी |
प्रभु ने भेंट को दोहरा करके,
निज मोहर लगाई अनूठी ॥16॥
उनका घर परिवार बसाने,
चिंतित थीं जब दौलतमाई |
मेहरा ने तब अनजाने ही,
प्रभु से अपनी लगन लगाई ॥17॥|
भान के मेहेरा का मन प्रभु ने,
समझाया तब दौलतमाई |
''भूल जाओ संसार की बातें,
सबसे ऊंची प्रेम सगाई'' ॥18॥|
युग अवतारी की पसंद को,
मान के सदूगुरु सीस नवाया |
मेहरा को अर्पित कर प्रभु को,
प्रेम का मार्ग प्रशस्त बनाया ॥19॥|
प्रभु के प्रेम में लुटतीं मेहिरा,
दिन दिन भई सयानी |
भक्ती -सेवा पूरी करके,
बनी हृदय -प्रभु रानी ॥20॥
प्रभु के रंग में रंगकर मेहरा,
करतीं प्रभु की याद निरन्तर ।
स्वत: प्रतीक बनी प्रियतम की,
मिटा दुई का अन्तर ॥21॥|
मेहराजाद में प्रियतम खातिर,
तुमने था जो बाग लगाया |
आज उसी की शाखों से बढ़कर,
मेहराबाद तरु देते छाया ॥22|
मर्यादा में रखकर तुमको,
प्रभु ने कोमलता में ढाला ।
जग से विदा लेने के पहले,
निज सम रूप तुम्हें दे डाला ॥23॥
खुद के लिये कहते थे प्रभु जी -
'' मैं तो जिऊंगा नब्बे साल" |
और दिलासा उनको देते,
वे ना जियेगी प्रभु के बाद ॥24॥
खुद्द तो पहले परदा करके,
छोड़ा उन्हें अकेला |
जग की नजर में झूठा बनकर,
इस कलंक को झेला ॥25॥
पल-पल, छिन-छिन, याद मेहेर की,
करी तुम्हें जब व्याकुल |
हटा पेड़ की छाल भये प्रभु,
प्रगट विरह से आकुल ॥26॥|
जग वाले चाहे न समझें,
किन्तु मेहेरा जान गई |
बाबा के परदा करते ही,
मेहरा उनमें विलीन हुईं ॥27॥।
नाता प्रिय और प्रियतम का,
कुछ ऐसा अनूठा होता है ।
प्रिय के विदा हो जाने पर,
प्रियतम ही प्रिय को जीता है ॥॥28॥।
मेहरा रूप में प्रियतम बाबा,
अब भी हमारे बीच रहें ।
प्रेमी जनों खुद-भाग सराहो,
नजर प्रभु की हम पर है ॥॥29॥
देख रहे प्रभु सारे जगत को,
आज तुम्हारी नजर से |
छुपा न पाये कोई तुमसे,
मन मंदिर प्रभु जिसके ॥30 ॥
समा गये प्रभु तुमरे नयन में,
जब किया जगत से परदा |
अनजानों से भले दूर हों,
अपनों से बे-परदा ॥31॥
प्रेम के पथ पर चलने वाले,
प्रेमी को प्रभु जो राह दिखावें ।
निज दो रूप धरें वे अपने,
'खुद से खुद' वह प्रेम रचावें ॥॥32॥।
समझ ना पाये दुनियाँ सारी,
कौन है जो प्रियतम बन जाता |
धरकर नाम कभी 'सीता' का,
कभी 'मेहेरा' कभी 'राधा' कहाता ॥33।
प्रभु के प्रेम में पागल प्रेमी,
स्वयं उन्हें प्रेमी पाता है ।
युग अवतारी प्रभु निरन्तर,
प्रियतम मेहेरा संग आता है ॥34॥।
प्रेम-प्रीति की रीति अनोखी,
जाने नहीं जग माहीं कोई ।
राधा-कृष्ण और मेहेरा-मेहेर के,
प्रेम से आलौकित जग होई ॥35॥।
दुनियावी प्रियतम को प्रेमी,
छुपा के रखता जग की नजर से |
दैवी-प्रियतम को प्रभु अपनी,
करें उजागर सारे जग में ॥36॥।
अपने, अपने प्रिय में प्राणी,
दैवी-प्रियतम का ले दर्शन |
प्रभु को समर्पित होगा इक दिन,
जैसे प्रभु की प्रियतम ॥37॥।
सीख यही जग को सिखलाने,
और हदयों में प्यार जगाने |
ले आते हैं स्वयं प्रभु जी,
प्रियतम अपनी हमें दिखाने ॥38 ||
तुम्हरी राह पर चलकर प्राणी,
सफल करे निज जीवन |
प्रिय के प्रियतम बन पाने की,
आस जगे जब वाके मन ॥॥39॥
तुम प्रियतम हो मेहेर-प्रभु की,
प्रेम तुम्हारा है सम्पूर्ण ।
ऐसे ही हों वे प्रियतम हमरे,
प्रेम हमारा जब हो पूर्ण ॥॥40 ॥
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