श्री कृष्णयामल महातन्त्रम्
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- Опубліковано 15 бер 2024
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SRI KRISHNAYAMAL TANTRA (श्रीकृष्णयामलमहातन्त्र) संस्कृत मूल,भूमिका,हिंदी टीका एवं अकारादिश्लोकनुक्रमणिका सहित amzn.eu/d/gpARtzY
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back ground music in use imovie & Kindmaster ,intro by intomakar
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ॐ श्रीराधाकृष्णचन्द्राभ्यां नमः।
अति सुंदर
રાધે રાધે🙏
कुरुक्षेत्र की रणभूमि से आपको सादर प्रणाम।
अवंतिका नगरी से आपको सादर प्रणाम 🙏😊
Abohar punjab se apko parnam sir
विशाल जी आपको मेरा नमस्कार 🙏🙏🙏
Han up Purana bate bat aye guruji
Ye koun sa puran hai
आपकी videos अच्छी है एक request है अगर ठीक लगे तो please लाला किताब पर आपकी क्या राय है इस पर वो शेयर करे क्योंकि बोहोत से लोग कहते नही पढ़ना चाहिए कुछ लोग पढ़ते तो आप इस पर संभव हो तो वीडियो बना दीजिए जिसे confusion दूर होगा
Please video बने की ऐतरेय ब्राह्मण किस प्रकाशन का कपड़े
Krishnayamalmahatantram jaise granth jisme kathaye hai(puran) jaise aise aur grantho ke baare me bataye
Sir mahakal samhita ka bhi review kijiye ga please 🙏 radhe radhe
Kripya brihatnandikeshwar puran kaha uplabhd hoga batayiye
Sir apka koi no. Hai tho jarur share kare ya kis madyaam se apse baat ho sakti ha
જન્મ ક્ષાર અને મોબાઇલ નંબર જોવો છો
Sir, books छोड़िए, आपके right hand में को नागचूड़ा है,, इसका वर्णन या उल्लेख, क्रिश्चियन काली विद्या के अभिलेखो पुस्तकों में भी मिलता है,, भारतीय तन्त्र में इसका उल्लेख कहा कहा किस रूप में है?? इसके बारे में विस्तार से बताइए,, क्योंकि ये देखने में अघोरियो भैरवी यक्षणी पथ के सैद्धांतिक चित्र को प्रदर्शित करता है,, जिसमे देखने में लोग अपना अपना अलग अलग अर्थ निकलते हैं-
इसमें एक सर्प या नाग की आकृति होती है जो स्वयं को ही पूंछ की ओर से स्वयं को निगल रहा है।
जैसे मानो, कोई भैरवी यक्षणी अपने ही अधिकृत पुरुष शरीर या पति का भक्षण कर रही है,
जैसे अघोरी अपने ही मांस या रक्त या मल को निगल रहा हो।
कुलमिलाकर ये आगम, यानि भोग से योग सिद्धता की ओर जाने का भक्षी मार्ग जैसा प्रतीत होता है,, इसके बारे में सामान्य ज्ञान की केवल उपरी जानकारी दीजिए, ताकि इसके संबंध में सामान्य भ्रम दूर किए जा सकें।🙏
Aapke lekh se pata chal raha hai ki aapki vishay ke bare jankari hai.....he Mitra Prem bhakti ke vishay me prakash daale😊😊😊
@@adityashukla6535 श्रीमन्तजी, प्रेमा भक्ति, मिले तो ही प्रकाश कर डाला जा सकता है, वो भी प्रभू या गुरू आज्ञा से, वो भी ऊपरी आवरण, यानि महल के बाहरी दृश्य का वर्णन,,
किन्तु हमारी इतनी स्थिति कहा कि कलपना भी सही सही कर सकें,, आप तो भलीभाति जानते हैं, प्रेम को भी अनिर्वाचनीय क्यों कहा गया है?? उस पर भी गोपनियम की मर्यादा क्यों रखी गई है।
बल्कि जानने योग्य तो ये है, कि सदा निष्काम प्रेम पंथी समझे जानें वाले, श्री कृष्ण जी की उपासना में,, क्या कोई तन्त्र का ग्रन्थ भी सहायी हो सकता है, ये नई जिज्ञासा आपके इस vedio उत्पन्न हुई, जिसे आपको और स्पष्ट करना चाहिए, कृपया स्पष्ट करे।🙏🙏