BPSC अभ्यर्थियों के लिए Bihar Bandh का ऐलान, Pappu Yadav ने खोला मोर्चा !

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  • Опубліковано 24 січ 2025

КОМЕНТАРІ • 69

  • @St-vy9wn
    @St-vy9wn 14 днів тому +1

    हम सब स्टूडेंट को आपसे भी उतनी ही उम्मीद है जितना पीके सर से था...सर ये मीडिया बिक गई है अब हम लोग भी समझ गए हैं

  • @Psingh89365
    @Psingh89365 14 днів тому +2

    इस बार जन सुराज पक्ष में और आप विपक्ष में तब बिहार का विकास होगा.

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @sangeetsingh2161
    @sangeetsingh2161 14 днів тому +3

    Sab paglaye hue hai vidyarthi se Jada PK ke uper bhadke hai pata hai inke haat se mudda nikal Gaya ... Bhashan ki jagh court me Pairvi par jor den
    Jai Bihar 🙏

  • @NitishKumar-rs6ct
    @NitishKumar-rs6ct 14 днів тому +2

    Bpsc re exam 2025 pappu Yadav jindabad

  • @chaubeyaman999-
    @chaubeyaman999- 14 днів тому +1

    चक्का जाम , ट्रेन रोकना , ये मर्दानगी नहीं पब्लिक को परेशान करने से क्या होगा, करना है तो , सचिवालय गेट को रोको

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому +2

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @veergatisingh
    @veergatisingh 14 днів тому

    Sabhi ko aise hi bacchon k sath aana hi chaiye...

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @JitendraKumarRoy-mx3fj
    @JitendraKumarRoy-mx3fj 14 днів тому +3

    Aap log ko clear ho Gaya ki rajniti kon kar Raha hai

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @Sidhibaat5487
    @Sidhibaat5487 14 днів тому +3

    जब बोलने का ढंग नहीं है तो भाई प्रेस कांफ्रेंस क्यों रख लेते हो भाई?

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @gyanvardhan3392
    @gyanvardhan3392 14 днів тому +5

    अजीब व्यक्ति हैं आप महाराज...!
    आपकी आधे घंटे से ज्यादा की PC में कुछ कभी भी..कहीं भी..तारतम्यता नहीं है....। आप सोच कुछ रहें हैं...कह कुछ रहें है... करने वाले कुछ और हैं... पता नहीं आप खुद कंफ्यूज हैं या फिर विद्यार्थियों को कर रहें हैं.... मतलब लुकिंग लन्दन और टॉकिंग टोक्यो...हद्द है.

  • @abhimanyumannu3869
    @abhimanyumannu3869 14 днів тому +2

    Hm students sabhi party ya neta ko invite kiye the

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @ManojKumar-gy1lt
    @ManojKumar-gy1lt 14 днів тому +3

    चक्काजाम, बिहार बंद करना वगैरह गलत है। सत्याग्रह करिए स्वास्थ्य लाभ पाईए हुजूर। बंद का आम शिक्षित जनता कभी सपोर्ट कोई नहीं करेगा गलत कदम का।

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @aazadpankshi
    @aazadpankshi 14 днів тому +1

    बिहार के राजनीति का जग हंसाई ऐसा नेता हु करवा रहे ।

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @abhimanyumannu3869
    @abhimanyumannu3869 14 днів тому +3

    Please help kare, isme politics nahi kare

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @LivelyDream-j5j
    @LivelyDream-j5j 14 днів тому

    Good sir

  • @abhimanyumannu3869
    @abhimanyumannu3869 14 днів тому +2

    Sabhi party milkar sahyog kare, dusre ka tang nahi khiche

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @onlineaakashvani6145
    @onlineaakashvani6145 14 днів тому +1

    😂😂😂 Ones a Ledgend say:
    "Humare dour bhag me koi kami ho toh bataoo😂😂"

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @VeenaDevi-r4z
    @VeenaDevi-r4z 14 днів тому +2

    Pk❤

  • @NitishDiwakar
    @NitishDiwakar 14 днів тому +1

    Re exam for all

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @ravitejaJansuraaj
    @ravitejaJansuraaj 14 днів тому +3

    Chakka jam se bihar ko loss honga 😢 or phir jaam krne par lathi chalega koi Mt jana

  • @Pkbihahari
    @Pkbihahari 14 днів тому

    Bihar me koi yesa neta nhi h jo apne vidhansabha me achha school, college khol ke de jo jitna v garib logo ke bache padhe😮😮

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @ManojKumar-gy1lt
    @ManojKumar-gy1lt 14 днів тому +1

    चक्काजाम और बंद का समय लद गया।

  • @aazadpankshi
    @aazadpankshi 14 днів тому +2

    आखिर कहना क्या चाहते है भाई। कुछ पता नहीं चला

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @nikkusinghgolu
    @nikkusinghgolu 14 днів тому +2

    Lag rha hai halat kharab hai aapka pappu baba

  • @Pkbihahari
    @Pkbihahari 14 днів тому +1

    Yhi karan se tejasvi isko alag rakha h kyuki ye tejasvi ke sath hota to apne ko cm chehra bolta

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @ArjunSingh-j5c8h
    @ArjunSingh-j5c8h 14 днів тому

    Esbae पूरे बिहार इसमें हिस्सा ले

  • @ananddubey7263
    @ananddubey7263 14 днів тому +1

    Bpsc k bare me bolo rajniti bad me kr lena

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @RAKESHKUMAR-uv8ru
    @RAKESHKUMAR-uv8ru 14 днів тому +1

    ❤ Re exam

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @rehannabi2920
    @rehannabi2920 14 днів тому +1

    अरे कहना क्या चाहते हो 😂😂😂

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @MUKESHKUMAR-rh7cg
    @MUKESHKUMAR-rh7cg 14 днів тому +1

    re exam only

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @SanjeetKumar-on7lx
    @SanjeetKumar-on7lx 14 днів тому +1

    BPSC re एग्जाम

  • @wildxcat4319
    @wildxcat4319 9 днів тому

    Full with comedy pc 😂😂😂

  • @VigyanPathshala-rp9zn
    @VigyanPathshala-rp9zn 14 днів тому +2

    Enko koi kam to hai nhi.

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @rupeshkumarsingh5159
    @rupeshkumarsingh5159 14 днів тому +2

    Teri sabse bari galti hai rjd ke साठे jana

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @rupeshkumarsingh5159
    @rupeshkumarsingh5159 14 днів тому

    Tre02 के बारे में भी कुछ बोलो।

  • @luvkumar9078
    @luvkumar9078 14 днів тому

    ye adav ji ko bolye sirf bpsc ke bare me bole
    kaun sahi hai kaun galat hai janta per chhor de

  • @singh__shubham
    @singh__shubham 14 днів тому +2

    Gobaar😂

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @rupeshkumarsingh5159
    @rupeshkumarsingh5159 14 днів тому

    भर दिया तो क्या हुआ

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @Rm-t9o
    @Rm-t9o 14 днів тому +3

    Kaun sunta hai ese😊

    • @Om_niscient
      @Om_niscient 14 днів тому

      सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
      अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
      अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
      तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!

  • @AbhishekRaj-vd7mt
    @AbhishekRaj-vd7mt 14 днів тому +1

    ye motka ka to iski party congress bhaw nahi deti. chala hai neta banane