सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Sab paglaye hue hai vidyarthi se Jada PK ke uper bhadke hai pata hai inke haat se mudda nikal Gaya ... Bhashan ki jagh court me Pairvi par jor den Jai Bihar 🙏
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
अजीब व्यक्ति हैं आप महाराज...! आपकी आधे घंटे से ज्यादा की PC में कुछ कभी भी..कहीं भी..तारतम्यता नहीं है....। आप सोच कुछ रहें हैं...कह कुछ रहें है... करने वाले कुछ और हैं... पता नहीं आप खुद कंफ्यूज हैं या फिर विद्यार्थियों को कर रहें हैं.... मतलब लुकिंग लन्दन और टॉकिंग टोक्यो...हद्द है.
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता। अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है। अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है। तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
हम सब स्टूडेंट को आपसे भी उतनी ही उम्मीद है जितना पीके सर से था...सर ये मीडिया बिक गई है अब हम लोग भी समझ गए हैं
इस बार जन सुराज पक्ष में और आप विपक्ष में तब बिहार का विकास होगा.
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Sab paglaye hue hai vidyarthi se Jada PK ke uper bhadke hai pata hai inke haat se mudda nikal Gaya ... Bhashan ki jagh court me Pairvi par jor den
Jai Bihar 🙏
Bpsc re exam 2025 pappu Yadav jindabad
चक्का जाम , ट्रेन रोकना , ये मर्दानगी नहीं पब्लिक को परेशान करने से क्या होगा, करना है तो , सचिवालय गेट को रोको
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Sabhi ko aise hi bacchon k sath aana hi chaiye...
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Aap log ko clear ho Gaya ki rajniti kon kar Raha hai
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
जब बोलने का ढंग नहीं है तो भाई प्रेस कांफ्रेंस क्यों रख लेते हो भाई?
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
अजीब व्यक्ति हैं आप महाराज...!
आपकी आधे घंटे से ज्यादा की PC में कुछ कभी भी..कहीं भी..तारतम्यता नहीं है....। आप सोच कुछ रहें हैं...कह कुछ रहें है... करने वाले कुछ और हैं... पता नहीं आप खुद कंफ्यूज हैं या फिर विद्यार्थियों को कर रहें हैं.... मतलब लुकिंग लन्दन और टॉकिंग टोक्यो...हद्द है.
😂
Hm students sabhi party ya neta ko invite kiye the
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
चक्काजाम, बिहार बंद करना वगैरह गलत है। सत्याग्रह करिए स्वास्थ्य लाभ पाईए हुजूर। बंद का आम शिक्षित जनता कभी सपोर्ट कोई नहीं करेगा गलत कदम का।
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
बिहार के राजनीति का जग हंसाई ऐसा नेता हु करवा रहे ।
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Please help kare, isme politics nahi kare
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Good sir
Sabhi party milkar sahyog kare, dusre ka tang nahi khiche
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
😂😂😂 Ones a Ledgend say:
"Humare dour bhag me koi kami ho toh bataoo😂😂"
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Pk❤
Re exam for all
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Chakka jam se bihar ko loss honga 😢 or phir jaam krne par lathi chalega koi Mt jana
Bihar me koi yesa neta nhi h jo apne vidhansabha me achha school, college khol ke de jo jitna v garib logo ke bache padhe😮😮
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
चक्काजाम और बंद का समय लद गया।
आखिर कहना क्या चाहते है भाई। कुछ पता नहीं चला
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Lag rha hai halat kharab hai aapka pappu baba
Yhi karan se tejasvi isko alag rakha h kyuki ye tejasvi ke sath hota to apne ko cm chehra bolta
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Esbae पूरे बिहार इसमें हिस्सा ले
Bpsc k bare me bolo rajniti bad me kr lena
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
❤ Re exam
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
अरे कहना क्या चाहते हो 😂😂😂
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
re exam only
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
BPSC re एग्जाम
Full with comedy pc 😂😂😂
Enko koi kam to hai nhi.
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Teri sabse bari galti hai rjd ke साठे jana
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Tre02 के बारे में भी कुछ बोलो।
ye adav ji ko bolye sirf bpsc ke bare me bole
kaun sahi hai kaun galat hai janta per chhor de
Gobaar😂
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
भर दिया तो क्या हुआ
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
Kaun sunta hai ese😊
सुनो भाई, राजनीति भी दो किस्म की होती है-एक वो जो "कर भला तो हो भला" पर चलती है, और दूसरी जो बस "ऊंची दुकान फीका पकवान" वाली निकली। अब देखो प्रशांत किशोर को। बंदा पढ़ा-लिखा, लेकिन ज़मीन से जुड़ा हुआ है। दिखावा-शिखावा नहीं। जब बीपीएससी परीक्षा में गड़बड़झाला हुआ, तो जहां बाकी नेता माइक पकड़कर भाषणबाज़ी कर रहे थे, ये सीधे अनशन पर बैठ गया। मतलब, "जहां काम आए सुई, वहां कहा करे तलवार" वाली बात हो गई। छात्रों के साथ खड़ा हुआ, और उनका भरोसा जीता।
अब जनसुराज अभियान को देखो। प्रशांत किशोर "नदी-नदी घट-घट का पानी" वाला काम कर रहा है। गांव-गांव जाकर लोगों से उनकी बातें सुन रहा है, उनकी तकलीफ समझ रहा है, और हल ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ये है सच्ची राजनीति-जो जनता के लिए हो, जनता के बीच हो। "हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और" वाले नेताओं से तो ये बिल्कुल अलग है।
अब दूसरी तरफ कुछ नेता हैं, जिनका नाम लेने का मतलब है वक्त खराब करना। उनका काम बस दूसरों पर कीचड़ उछालना है। खुद तो "खोदा पहाड़, निकली चुहिया" वाली स्थिति में रहते हैं, लेकिन दूसरों के काम में अड़ंगा लगाने से नहीं चूकते। यही है नकारात्मक राजनीति। इसमें न कोई सोच है, न कोई दिशा, बस "नाच न आवे आंगन टेढ़ा" वाली बात है।
तो कुल मिलाकर, राजनीति करनी है तो "करें तो राम, नहीं तो गमन" की तरह करो। मतलब, ऐसा काम करो कि जनता तुम्हें याद रखे। वरना जो सिर्फ बातें बनाते हैं, उनकी सच्चाई आखिर में "दिन में तारे दिखाना" वाली हो जाती है। काम करने वाला नेता बनो, बातें करने वाला नहीं!
ye motka ka to iski party congress bhaw nahi deti. chala hai neta banane