krishna chetavani | कृष्ण की चेतावनी | Rashmirathi | Rashmirathi by Ashutosh Rana
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- Опубліковано 1 жов 2024
- krishna chetavani
कृष्ण की चेतावनी | Rashmirathi |
Rashmirathi by Ashutosh Rana
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रश्मिरथी 1
हो गया पूर्ण अज्ञात वास,
पाडंव लौटे वन से सहास,
पावक में कनक-सदृश तप कर,
वीरत्व लिए कुछ और प्रखर,
नस-नस में तेज-प्रवाह लिये,
कुछ और नया उत्साह लिये.
टिक सके वीर नर के मग में
खम ठोंक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़.
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है.
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो.
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है.
पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड,
झरती रस की धारा अखण्ड,
मेंहदी जब सहती है प्रहार,
बनती ललनाओं का सिंगार.
जब फूल पिरोये जाते हैं,
हम उनको गले लगाते हैं.
वसुधा का नेता कौन हुआ?
भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
विघ्नों में रहकर नाम किया.
जब विघ्न सामने आते हैं,
सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
तन को झँझोरते हैं पल-पल.
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
जाते हैं हमें जगाकर ही.
वाटिका और वन एक नहीं,
आराम और रण एक नहीं.
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,
पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड.
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
बागों में शाल न मिलते हैं.
कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,
छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,
लोरी आँधियाँ सुनाती हैं.
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
वे ही शूरमा निकलते हैं.
बढ़कर विपत्तियों पर छा जा,
मेरे किशोर! मेरे ताजा!
जीवन का रस छन जाने दे,
तन को पत्थर बन जाने दे.
तू स्वयं तेज भयकारी है,
क्या कर सकती चिनगारी है?
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर.
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है.
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये.