ऐसी विडियो बनाने से दूसरे गांव के लोग भी प्रेरित होते हैं और वो अपने गांव को बेहतर बनाने में सहयोग करते हैं । लोगों को लाईब्रेरी के महत्व का पता चलता है ।
Real India lives in villages. Many many congratulations to all who are providing library, park, skill development centres in the village. I am very glad to see this video.
महकती गांव की मिट्टी की खुशबू याद आती है, हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है I हुआ पतझड़ लगा ऐसे की जैसे वस्त्र त्यागे हों कोपलें नित नई फिर से, सभी फिर वार लेते हों I बसंती आम की बगिया में बौरें खूब आती थी, कोयले आम की डाली में बैठी कुहकुहाती थी I महकती गांव की मिटटी की खुशबू याद आती है, हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है I कहीं गेहूं, कहीं गन्ना, कहीं पर खेत सरसों के इन्ही फसलों में होते थे सभी के ख्वाब वर्षों के I वो गेहूं की मड़ाई बैल से फिर याद आती है सभी चेहरे चमकते थे फसल जब घर में आती थी I महकती गांव की मिटटी की खुशबू याद आती है, हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है I बुवाई व कटाई में, गुजर जाता था सब बचपन, जवानी कैसे बीती कब हुई, बप्पाकी उमर पचपन हिलोरें मन में आती थी, फसल जब पाक जाती थी वो फैली खेत खलिहानो में, फसलें याद आती है I दोपहरी झेठ की तपती थी जैसे, आग जलती हो, बदन सारा नहा जाता, टपकता जब पसीना हो कदम दो चार चलने पर ही, नानी याद आती थी छांव तब नीम के बिरवा की हमको याद आती थी परेशां होके गरमी से, जब भैसे बिलबिलाती थी, नदी नाले जहाँ मिलते, वहां जमकर नहाती थी l न था साबुन का झंझट, न थी शैम्पू की कुछ ख्वाहिश, पेरुवा ताल की मिटटी ही, सब को खूब भाती थी I चराने गाय जब ददुवा के संग झबरा पे जाते थे, घड़े मिटटी में भर, पानी कुएं का साथ लाते थे I चना लैय्या के संग में वो मिठाई याद आती है फारिंदवा के तले, कटती दुपहरी याद आती हैं बुवाई धान की जब पौध की खेतों में करते थे चिरैय्या से बचाने के लिए, सब जतन करते थे I दुपहरी चिलचिलाती में, बचाने के लिए खुद को पतौरे से बनी अपनी मड़ैया याद आती है I नदी, तालों का पानी सूख कर गड्ढों में रह जाता घूंट दो घूंट पानी भी कहाँ ओंठों में रह जाता I नदी प्यासी, धरा प्यासी गगन से आश करती थी बुझा दो प्यास तुम मेरी, सदा फरियाद करती थी I गगन बोला धरा से, तुमसे भी फरियाद करता हूँ घने जंगल हुवा करते थे तब की याद करता हूँ I कहाँ खोते गए जो बन, कभी आँचल तुम्हारा थे उन्ही सब जंगलों से ही वहां वरसात आती थी I आषाढ़ी के महीने में, प्रथम बादल कड़कने पर घनन घनघोर अम्बर में घटाए काली छाती थी I प्रिये की याद में पल -पल हिये के यूँ तड़पने पर हवाएं सरसराती थी, सर से पल्लू उड़ाती थी I हजारों मिन्नतों के बाद, सावन के महीने में तरस कर बादलों ने, आस भर दी फिर से जीने में हुई वरसात फिर से खेत सब खलिहान मुस्काये मुदित होकर धरा फिर बादलों पर रीझ जाती है I महकती गांव की मिट्टी की खुशबू याद आती है, हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है
पुष्कर शिक्षा समिति व युवा संगठन की टीम और ग्राम पंचायत पोकरी खेड़ी को हार्दिक शुभकामनाएं गांव के विकास के लिए गांव की तरक्की यूं ही चलती रहे सभी को दिल की गहराई से धन्यवाद🙏🙏🙏👍👍👍👍
👍👍👍👍👍👍👍
shandaar
Fantastic view of this village 🧡🧡
Very nice coverage 👏 👍 👌
I love my village
Good job
Keep it up
My Village Ponkari Khedi _ The Video is Verry Beautiful
Verynicr
V. Nice
Very nice
Love you
😍😍
बहुत बढ़िया
Bahut acha Ganv Mera
हमारा गांव पोकरी खेड़ी बहुत ही प्यारा 👍👍👍👍
Es gav Mai sername kon se h
बहुत ही शानदार जगह और शानदार गांव है जी ।
ऐसी विडियो बनाने से दूसरे गांव के लोग भी प्रेरित होते हैं और वो अपने गांव को बेहतर बनाने में सहयोग करते हैं । लोगों को लाईब्रेरी के महत्व का पता चलता है ।
A village with healthy environment
Real India lives in villages. Many many congratulations to all who are providing library, park, skill development centres in the village. I am very glad to see this video.
महकती गांव की मिट्टी की खुशबू याद आती है,
हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है I
हुआ पतझड़ लगा ऐसे की जैसे वस्त्र त्यागे हों
कोपलें नित नई फिर से, सभी फिर वार लेते हों I
बसंती आम की बगिया में बौरें खूब आती थी,
कोयले आम की डाली में बैठी कुहकुहाती थी I
महकती गांव की मिटटी की खुशबू याद आती है,
हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है I
कहीं गेहूं, कहीं गन्ना, कहीं पर खेत सरसों के
इन्ही फसलों में होते थे सभी के ख्वाब वर्षों के I
वो गेहूं की मड़ाई बैल से फिर याद आती है
सभी चेहरे चमकते थे फसल जब घर में आती थी I
महकती गांव की मिटटी की खुशबू याद आती है,
हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है I
बुवाई व कटाई में, गुजर जाता था सब बचपन,
जवानी कैसे बीती कब हुई, बप्पाकी उमर पचपन
हिलोरें मन में आती थी, फसल जब पाक जाती थी
वो फैली खेत खलिहानो में, फसलें याद आती है I
दोपहरी झेठ की तपती थी जैसे, आग जलती हो,
बदन सारा नहा जाता, टपकता जब पसीना हो
कदम दो चार चलने पर ही, नानी याद आती थी
छांव तब नीम के बिरवा की हमको याद आती थी
परेशां होके गरमी से, जब भैसे बिलबिलाती थी,
नदी नाले जहाँ मिलते, वहां जमकर नहाती थी l
न था साबुन का झंझट, न थी शैम्पू की कुछ ख्वाहिश,
पेरुवा ताल की मिटटी ही, सब को खूब भाती थी I
चराने गाय जब ददुवा के संग झबरा पे जाते थे,
घड़े मिटटी में भर, पानी कुएं का साथ लाते थे I
चना लैय्या के संग में वो मिठाई याद आती है
फारिंदवा के तले, कटती दुपहरी याद आती हैं
बुवाई धान की जब पौध की खेतों में करते थे
चिरैय्या से बचाने के लिए, सब जतन करते थे I
दुपहरी चिलचिलाती में, बचाने के लिए खुद को
पतौरे से बनी अपनी मड़ैया याद आती है I
नदी, तालों का पानी सूख कर गड्ढों में रह जाता
घूंट दो घूंट पानी भी कहाँ ओंठों में रह जाता I
नदी प्यासी, धरा प्यासी गगन से आश करती थी
बुझा दो प्यास तुम मेरी, सदा फरियाद करती थी I
गगन बोला धरा से, तुमसे भी फरियाद करता हूँ
घने जंगल हुवा करते थे तब की याद करता हूँ I
कहाँ खोते गए जो बन, कभी आँचल तुम्हारा थे
उन्ही सब जंगलों से ही वहां वरसात आती थी I
आषाढ़ी के महीने में, प्रथम बादल कड़कने पर
घनन घनघोर अम्बर में घटाए काली छाती थी I
प्रिये की याद में पल -पल हिये के यूँ तड़पने पर
हवाएं सरसराती थी, सर से पल्लू उड़ाती थी I
हजारों मिन्नतों के बाद, सावन के महीने में
तरस कर बादलों ने, आस भर दी फिर से जीने में
हुई वरसात फिर से खेत सब खलिहान मुस्काये
मुदित होकर धरा फिर बादलों पर रीझ जाती है I
महकती गांव की मिट्टी की खुशबू याद आती है,
हवाएं पश्चिमी जब भी बदन को, छू के जाती है
वो दिन दूर नहीं ज़ब हमारा गाँव आसमान की बुलंदियों को छुएगा 👍👍
Beautiful video,love the life of villages
पुष्कर शिक्षा समिति व युवा संगठन की टीम और ग्राम पंचायत पोकरी खेड़ी को हार्दिक शुभकामनाएं गांव के विकास के लिए गांव की तरक्की यूं ही चलती रहे सभी को दिल की गहराई से धन्यवाद🙏🙏🙏👍👍👍👍
Shandaar vilage is real life ,love it ...thanks for making this beautiful video 📸
Very nice