Where the Ganges Bowed: The Miraculous Life of Guru Ravidas
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- Опубліковано 8 лют 2025
- "Where the Ganges Bowed: The Miraculous Life of Guru Ravidas"
Guru Ravidas Ji, a 15th-century saint, social reformer, and spiritual teacher, devoted his life to spreading the messages of equality, compassion, and devotion. Born into a humble family of cobblers in Kashi (Varanasi), his teachings emphasized that true spirituality lies in selfless service, kindness, and inner purity rather than rituals and social hierarchies. He envisioned an ideal society where everyone, regardless of caste or creed, lived in harmony and dignity. His famous quote, "Man Changa to Kathoti Mein Ganga," highlights the power of inner purity over external practices. Through his simple life and profound wisdom, Guru Ravidas Ji inspired millions, leaving a legacy of love, unity, and equality that continues to resonate today.
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❤❤❤❤ ਧੰਨ ਧੰਨ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਵਿਦਾਸ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ 🙏🙏🌹
Jai guru ravidas ji ❤❤❤
सत साहेब जी
Sant Shiromani Guru Ravidas Maharaj ki Jay 108 sant Roshani Das Maharaj ki Jay
Ja guru ravidas
ja guru ravidas
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कई दृष्टांत आते हैं कि जब राजा जनक जी जो की ज्ञानी पुरुष थे और अपने ज्ञान को और बढ़ाने के लिए पूरे राज्य से सारे तथाकथित ब्रह्म ज्ञानी साधु संतों कोधर्म सभा में शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रण किया तो बहुत सारे लोग दरबार में उपस्थित हुए। उनमें से एक अष्टावक्र संत थे जो की आठ अंगों से टेढ़े-मेढ़े थे उस शास्त्रार्थ में भाग लेने के लिए पधारे तो दरबार में जितने भी संत थे अष्टावक्र को उनकी शारीरिक स्थिति को देखकर खिल्ली उड़ाने लगे तब अष्टावक्र जी ने राजा जनक जी से यही कहा कि महानुभव आप इन चमारों को अपनी सभा में क्यों बुला लिए ।इस पर वहां पर सारे साधु संत अष्टावक्र के विरोध में इकट्ठे हो गए और पूछे कि तुमने हम लोगों को चमार क्यों कहा तो अष्टावक्र का यही शब्द था कि आप लोगों को चमार इसलिए कहा गया कि आप लोग केवल चमड़े मांस और रज से ही बने हुए हैं और इसके अलावा आप लोग कुछ भी नहीं जानते हैं और आप लोगों को ब्रह्म ज्ञान का बिल्कुल भी पता नहीं है और अपने आप को आप लोग ज्ञानी कहलाने में गर्व और बड़प्पन समझते हैं जो की बिल्कुल ही निराधार है।
तब अष्टावक्र जी ने इन अज्ञानी लोगों को समझाते हुए बोला की
बड़े गए बड़प्पन में रोम रोम अहंकार,।
सतगुरु को पहचाने बिना चारो वर्ण चमार।।
आप लोग अपने बड़प्पन और अहंकार के कारण चमार बने हुए हैं और सतगुरु की पहचान नहीं है।
इस पर सभा के सारे ब्राह्मण उनके आगे नतमस्तक होकर उनसे ज्ञान प्राप्त करने लगे और राजा जनक जी ने उनको बहुत बड़ी इज्जत प्रदान की और उनको धर्म गुरु की संज्ञा दी। और इसी तत्वज्ञान को आगे बढ़ते हुए विश्व शिरोमणि संत रविदास जी कुछ वाणी के माध्यम से लोगों को समझाया
स्वांसा से सोहंग भयो, सोहंग से ओंकार।
ओंकार से पार ब्रह्म, संतो करो विचार।।
ब्रह्म ज्ञान( बोधिसत्व )उपजा नहीं।
कर्म डियो लटकाए।
रविदास ऐसी आत्मा, ।
सहज नरक को जाए।।
बड़े गए बड़प्पन में ,रोम रोम अहंकार।
सतगुरु को पहचाने बिना,चारों वर्ण चमार।।
मोको कहां ढूंढो रे बंदे
मैं तो तेरे पास ( स्वांस)में,।।
यह बात हर एक ब्रह्म ज्ञानी साधु संत मानव को बताता रहता है । लेकिन मानव बाहरी शक्तियों और पदार्थ में कुछ आध्यात्मिक व्यवसायई गुरुओं के कारण भटक जाता है।
संत शिरोमणि गुरु रविदास जी स्वांसा की तीनों नाड़ियों को जो की इंगला, पिंगला, सुषुम्ना ,के रूप में जानी जाती है इसी तीनों नाड़ियों को जनेऊ बताया , जिसको कुछ अज्ञानी ब्राह्मण ने नासमझी के कारण तीन धागे को जनेऊ बताकर शरीर के बाहर लटका दिया और लोग भ्रमित हो गए।
इंगला, पिंगला नाड़ी शोधन को जिसको लोग आज योग शास्त्र में अनुलोम विलोम समझते हैं उसी को संत शिरोमणि गुरु रविदास जी अपने ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभव के आधार पर समुद्र मंथन बताया जिसके द्वारा मानव जीवन को ब्रह्म ज्ञानी रत्न (बोधिसत्व) का अनुभव होता है।
जब तीनों नाड़ियों (इंगला पिंगला सुसुमना)का एकाकार होता है तो आज्ञा चक्र पर जो दीप जलता और दीप चक्र बनता है उसी को ब्रह्म ज्ञानी और पूजनीय संत कृष्ण जी सुदर्शन चक्र बताया ( जो चक्र देखने में सुंदर लगे वही सुदर्शन चक्र होता है) है उसी को संत शिरोमणि गुरु रविदास जी अपने ज्ञान के आधार पर मानव के माथे का टीका या तिलक चक्र बताया जिसको मानव भ्रम वादी लोगों ने माथे पर टीका लगाकर लोगों को भ्रमित किया और अपनी रोजी-रोटी बना लिए।
संत श्री कृष्ण जी पांचो ज्ञानेंद्रिय (आंख, कान, नाक , जिह्वा ,और त्वचा) का उपयोग करके (जिसको पांडव नाम दिया गया) हजारों दुर्गुण जिनको कौरव कहा गया का नष्ट किया गया और किया जा सकता है , जिसको लोग महाभारत के रूप में जानते हैं लेकिन भ्रम ज्ञानियों ने साहित्य पात्र लिखकर शायद आध्यात्मिक तथ्य को छिपा दिया।
इसीलिए भारतवर्ष के ब्रह्म ज्ञानी साधु संत लोग गुरु रविदास जी को संत शिरोमणि की उपाधि प्रदान की है। लेकिन जब से कुछ अज्ञानी लोग गुरु रविदास और उनके समाज को अपमानित करना शुरू किया तब से भारत वर्ष में अज्ञानता छाया हुआ है। इसलिए अब लोग पुनः सनातन बचाने का आंदोलन कर रहे है।
मेरा मकसद किसी समाज या जाति को अपमानित या सम्मानित करना नहीं है।
अगर होती है तो क्षमा प्रार्थी।
फिर भी बूझेगा कोई संत सुजान।।
L K ❤❤❤
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Ravidas ji naastik the vah Budh ke Marg per chalte the manu vadiyon ne unko Bhagwan se jodkar unki kahani Ko Brahmani Karan kiya taki unke samuday ke log pidhi dar pidhi mansik gulam Bane rahe Jay Bheem
Jay bhim
🙏🙏🙏👏🙏👏🙏👏🙏👏🙏👏🫶🫶🫶
ja guru ravidas
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