#मृत्यु

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  • Опубліковано 8 вер 2024
  • संजय
    मानव अबोहर से आए हैं पूछते हैं आदरणीय स्वामी जी
    प्रणाम जब कर्म मायने रखता है तो शारीरिक मृत्यु के बाद किए जाने वाले विधि विधान
    का क्या औचित्य है हर परंपरा में अपने तरीके से मृत्यु के
    बाद कुछ विधि विधान किया जाता है जब हमारी मृत्यु होती
    है अगर आपने ध्यान नहीं किया है समाधि नहीं की
    है अगर आप जागरण की कला नहीं
    जानते अगर आपने जिंदगी भर होश नहीं साधा है बेहोश बेहोश हमने जिंदगी जी है
    तो मृत्यु के समय प्रकृति एक व्यवस्था करती है कि हमको बेहोश कर देती
    है जब आप किसी चिकित्सक के पास डॉक्टर के पास कोई ऑपरेशन कराने जाते हैं आप दांत का
    भी कुछ कराते हैं तो डॉक्टर क्या करता है दांत में एक इंजेक्शन लगाता है
    एनेस्थीसिया और उस पूरे हिस्से को शून्य कर देता दो
    तीन घंटे केलिए जिससे कि दांत में कुछ भी होता रहे अब आपको दर्द
    महसूस कहीं पेट में रसौली है कहीं कुछ दिक्कत है तो क्या
    करते कभी-कभी तो पूरा ही बेहोश कर देते हैं एनेस्थीसिया मृत्यु क्या है दुनिया की सबसे बड़ी
    सर्जरी इससे बड़ी कोई सर्जरी धरती पर अभी तक नहीं
    है सर्जरी में तो किसी एक अंग विशेष काऑपरेशन किया जा रहा है उस एक अंग विशेष
    में कोई क्रिया की जा रही और मृत्यु में आपकी पूरी चेतना आपका पूरा सूक्ष्म शरीर
    आपकी पूरी आत्मा पैरों से सिकुड़ करके सिर से सिकुड़ करके एक बिंदु पर आ रही है और
    वहां से बाहर निकल रही है कितनी पीड़ा होती
    होगी कितना दर्द होता होगा और दर्द में जागने की तो आदत नहीं है
    हमको थोड़ा सा भी दर्द होता तो हम करने
    लगते हम थोड़ा सा रोने लगते हैं चीखने लगते हैं चिलाने लगते हैं दर्द को हम कभी
    भी सिमरन नहीं बनाते दर्द को हम कभी भी ध्यान नहीं बनाते दर्द के कभी हम दस्ता
    नहीं होते कभी ऐसा नहीं करते कि हम अलग खड़े होकर के देखते हो कि जैसे यह शरीर
    किसी और का है और किसी और को दर्द हो रहा है और आप अलग खड़े होकर के देख रहे हैं
    इसको कहते हैं दृष्टा द ऑब्जेक्टिव अवेयरनेस
    दृष्टा हो गए दर्द के अब जागे हैं दर्द में भी
    जागे जब आप दर्द में ही नहीं जागे जब आप गम में ही नहीं जागे तो खुशी में जाग
    जाएंगे क्या सुख में जाग जाएंगे क्या सुखतो और बेहोशी लाता है खुशी तो और बेहोशी
    लाती खुशी में तो आप बिल्कुल नशे में आ जाते हैं फूल कर के कुपा हो जाते
    हैं जागने की आदत नहीं है तो प्रकृति क्या करती मृत्यु की घड़ी में बेहोश कर देते
    जिससे के जब चेतना सिकुड़ी जब आत्मा सड़ेगी तो आपको पता ही ना लगे फिर अचानक
    अब आपकी आत्मा आपकी चेतना आपकी एस्टल बॉडी आपका सूक्ष्म शरीर शरीर के बाहर चला जाता
    है लेकिन पता ही नहीं लगता कि अब आपकी मृत्यु हो
    गई क्योंकि आप तो वैसे के वैसे है आप में तो कोई फर्क नहीं पड़ा बस आप शरीर से बाहर
    निकल गए तो बहुत कोशिश करते शरीर में वापस घुसने
    की लेकिन घुस नहीं पाते हिंदुओं ने बड़ा शोध किया इसके
    पर और बहुत गहरे शोध के बाद हिंदुओं ने एक व्यवस्था शुरू की वह थी शरीर को जला देने
    की व्यवस्था य बड़े शोध के बाद उन्होने य प्रयोग
    किया बहुत गहरी रिसर्च के बाद क्योंकि शरीर से बाहर निकलने के बाद शरीर
    के प्रति एक गहन आसक्ति है एक गहरा पकड़ है शरीर को व्यक्ति छोड़ना नहीं चाहता
    बड़ी रसा कसी होती किसी भी तरीके से वापस शरीर में आना
    चाहता है तो जो शरीर से आइडेंटिटी है शरीर से जो तादात है शरीर से जो लगाव है वह
    आपका टूट जाए उसके लिए अब शरीर को जल्दी से जल्दी जला दे शरीर गया तो अब जो सज्जन
    शरीर से बाहर निकले हैं अब उनका शरीर के प्रति अटैचमेंट खत्म
    हो अब उनको जाना पड़ेगा स् पिट वर्ड में आत्मा के
    लो लेकिन घर के लोग रो रहे हैं तड़प रहे हैं जब आप रोते हैं तड़पते हैं तो जो
    दिवंगत आत्मा है जो आत्मा अभी शरीर से ली है वो आपकी ओर खिंच जाती
    है और वह आत्माओं के लोक में नहीं जा पाती उसका घर के लोगों के प्रति बहुत लगाव
    है बड़ी पकड़ है और ऐसा सालों तक वो रह सकती है आत्मा
    आपके साथ आपके घर में और जो अनंत की यात्रा है जो महा जीवन
    की यात्रा है अगले जन्म की यात्रा है अब उसके ऊपर आत्मा निकलेगी नहीं इतना समय ऐसे
    बर्बाद चला जाएगा इसलिए एक शोध और किया
    गया कि जो अब दिवंगत आत्मा है उसको भरोसा दिलाया
    जाए कि अब तुम अनंत की यात्रा पर निकलो हम तुमको प्रेम करते
    हैं हम तुम्हारा धन्यवाद करते हैं कि तुमने इतना समय हमको दिया लालन पालन किया
    कितना ख्याल रखा लेकिन अब तुम यहां से बंधे हुए मत
    रहो इस बंधन को तोड़ने के लिए कुछ क्रियाएं की जाती है कुछ प्रार्थनाएं की
    जाती है देखा है हिंदुओं में विशेष रूप
    से जब चिता जलाई जाती है तो जो सज्जन मुखाग्नि देते हैं वो क्या
    करते हैं आखिर में क्या करते बांस को कहां मारते बांस को कहां मारते खोपड़ी
    में दो कारणों से पहला
    कारण जो लोग जिंदा है जो लोग वहां शमशान घाट पर खड़े
    हैं उनको याद आ जाए कि जीते जी तुम्हारी खोपड़ी फूट जानी चाहिए यानी जो ब्रह्म
    रंद्र है जहां छोटा सा बच्चा ऐसे आपने देखा होगा उसके सिर में ऐसे लुप लुप लुप
    लुप होता होता है वहां परमात्मा से मिलन होता ब्रह्म से
    मिलन होता वोह द्वार जब खुल जाता इसलिए उसको ब्रह्म रंद्र कहते ब्रह्म द्वार कहते
    परमात्मा से कभी-कभी किसी का घूमता है ऐसे लोगों को हम ब्रह्म ज्ञानी कहते
    हैं याद दिलाते हैं जीते हुए अब मरे हुए व्यक्ति का तो फोड़ो तो क्या मतलब हुआ
    लेकिन मरे हुए व्यक्ति को भी बांस मारा जा रहा है याद दिलाने लिए क्या देखो तुम्हारा
    बेटा ही अब तुमको बांस मार रहा है छोड़ो अब संसार से पकड़ अरे कुछ नहीं
    है बेटे ने क्या किया बेटे ने क्या कर दिया खोपड़ी फोड़ दी तुम्हारी जाओ अब यहां
    से अनंत की यात्रा पर निकलो क्या करोगे यहां उलझ करके अभी भी
    संसार में चिपके रहोगे करोगे क्या कुछ क्रियाएं जानबूझ कर के की
    गई विशेष रूप से प्रार्थना अरदास यह जो सज्जन चले गए हैं इनके साथ
    में एक सूक्ष्म मन जिसको अरदास यह जो सज्जन चले गए हैं इनके साथ
    में एक सूक्ष्म मन अवचेतन मन अचेतन मन कहते हैं वो आत्मा के साथ जुड़ा हुआ
    है kripya poora vdo dekhe

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