BHAKTAMBAR STOTRA आर्यिका रत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा प्रस्तुती भक्तामर स्तोत्र

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  • Опубліковано 12 вер 2020
  • भक्ति में अनन्त शक्ति और बल होता है।जो शुद्ध हृदय से समर्पित भावना पूर्वक परमात्मा की भक्ति करता है, उसे स्वयमेव वैभव सन्मान समृद्धि अरोग्य और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।इतना ही नहीं वरन् मंत्र परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति के हेतु होते हैं।
    जब भक्ति स्तोत्र के द्वारा साधक का मन निर्मल एकाग्र हो जाता है तब उसके समस्त विकल्प समाप्त होकर परमात्मा में एकाकार होकर तन्मयता का अदभुत आनन्द लेता है जो कि अनिर्वचनीय व अनुभव गम्य है!!
    भक्तामर स्तोत्र का हर काव्य अनन्त गुणवत्ता को लिये है।स्तोत्र के प्रत्येक काव्य से इसकी गुणवत्ता प्रवाहित होती है।यदि यह कहा जाये कि 'भक्तामर स्तोत्र ' भौतिक एंव अध्यात्मिक उपलब्धियो को प्राप्त करने के लिये चिन्तामणि रत्न या कामधेनु के समान अचन्त्यि फल देता है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
    इसमें मानतुंगाचार्य ने मात्र ४८ श्लोकों में भगवान आदिनाथ की स्तुति
    प्रस्तुति आर्यिकारत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी
    भक्तामर सुप्रसिद्ध स्तोत्र भक्त शिरोमणि आचार्य मानतुंग द्वारा रचित ४८ काव्यों की कृति है।यह स्तोत्र अपनी प्राचीनता के साथ महत्व एवं उपयोगिता की दृष्टि से सदैव- सदैव श्रद्धा से पूज्यता प्राप्त करता चला आ रहा है। इसकी महिमा अचिन्त्य एवं अकथनीय है। इसकी साधना में निष्कपट निष्काम और भाव पूर्ण समर्पण एवं सवार्पण भक्ति कार्यकारी होती है।

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