रेलवे से लेकर भारत के कप्तान बनने तक का सफर, जानिए महेंद्र सिंह धोनी की कहानी |

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  • Опубліковано 20 вер 2024
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    रेलवे से लेकर भारत के कप्तान बनने तक का सफर, जानिए महेंद्र सिंह धोनी की कहानी
    संघर्ष के दिनों में ट्रेन की टॉयलेट के पास सो जाते थे धोनी, फिर ऐसे मिली रेलवे में नौकरीफुटबॉल छोड़ क्रिकेट का थामा दामन, रेलवे में की टीटी की नौकरी, छोटे शहर से निकलकर धोनी ऐसे बने देश की शानआसान नहीं होता, एक तरफ पढ़ाई के लिए रात भर जागना और दूसरी तरफ Sports के लिए दिन भर भागना। अगर इतना आसान होता, तो india में आज हर दूसरा लड़का cricketer होता।
    7 जुलाई 1981 को रांची में जन्मे एमएस धोनी आज भले ही करोड़ो की संपत्ति के मालिक हों लेकिन बचपन में ऐसा नहीं था। वे एक मध्यम वर्गीय परिवार के रहने वाले थे। धोनी की सफलता की कहानी काफी प्रेरणादायक है।मिडिल क्लास परिवार से आने वाले इस खिलाड़ी ने सपने में भी नहीं सोचा था की एक दिन वो भारत का सफलतम कप्तान बन जाएगा। धोनी ने यहां तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है। एक मामूली से पम्प ऑपरेटर के बेटे ने कड़ी मेहनत कर अपने सपनों को सच कर दिखाया। जब धोनी जूनियर क्रिकेट खेलते थे तब उनके पास ज्यादा पैसे नहीं होते थे। ऐसे में जब एक शहर से दूसरे शहर टूर्नामेंट खेलने के लिए जाना होता था तो धोनी बिना टिकट के ही चल देते थे। ऐसे में कई बार उन्हें कई बार टॉयलेट के आसपास वाली जगहों में सोना पड़ता था।
    महेंद्र सिंह धोनी का जन्म रांची झारखंड में हुआ था। धोनी के पिता का नाम पान सिंह और मां का नाम देवकी है। धोनी के पिता ने उत्तराखंड से रांची आकर प्राइवेट कंपनी में काम करना शुरू किया। माही की एक बड़ी बहन भी हैं जिनका नाम जयंती है और एक बड़ा भाई है जिनका नाम नरेंद्र है।बचपन से ही खेलों में अव्वल रहे धोनी श्यामली (रांची) के एक डीएवी स्कूल में पढ़ते थे। धोनी ने स्कूल में पढ़ाई के साथ बैडमिंटन और फुटबॉल में अपना हुनर आजमाया। वास्तव में वह स्कूल में अपनी फुटबॉल टीम के गोलकीपर थे। एक बार उन्हें उनके फुटबॉल कोच ने स्थानीय क्रिकेट क्लब में क्रिकेट खेलने के लिए भेजा था। इस मैच में ऐसा हुआ कि उन्होंने अपने विकेट-कीपिंग से हर किसी को प्रभावित किया। बेहतर प्रदर्शन के कारण धोनी को 1997-98 सीजन के वीनू मांकड ट्रॉफी अंडर-16 चैंपियनशिप में चुना गया दसवीं क्लास के बाद धोनी ने अपना ध्यान क्रिकेट में लगाना शुरू कर दिया।महेंद्र सिंह धोनी क्रिकेट में अपना सुनहरा करियर बनाने की ओर आगे बढ़ ही रहे थे अचानक अंडर-19 ट्रायल में उनकी टीम को बुरी तरह से हार मिली। जिसके चलते धोनी का भी चयन नहीं हुआ। इसके बाद वे काफी हताश हो गए। इसी बीच उन्हें रेलवे में टीटी की नौकरी मिलीधोनी 2016-17 रणजी सीजन में ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। अब वे फर्स्ट क्लास डब्बे में सफर कर रहे हैं फैंस से बचने के लिए सिक्योरिटी भी है लेकिन एक समय था जब धोनी बिना रिजर्वेशन वाले डिब्बों में सफर करते थे और टॉयलेट के पास सो जाते थे। धोनी ने बतौर टिकट कलेक्टर भी काम किया है। अपने संघर्ष के दिनों में उन्हें स्पोर्ट्स कोटा से दक्षिण-पूर्व रेलवे में नौकरी मिली थी। वे खड़गपुर स्टेशन पर टिकट चेक करते थे। उस दौरान उनका वेतन मात्र 3000 रुपये था। जिसे उन्होंने पिता की खुशी के लिए स्वीकार किया। धोनी ने 2001 से 2003 तक दक्षिण रेलवे के खड़कपुर स्टेशन पर टीटीई की नौकरी की।टीटीई की नौकरी के दौरान भी धोनी रेलवे के लिए क्रिकेट खेलते थे लेकिन उन्हें कुछ बड़ा करना था। ऐसे में उन्होंने एक बड़ा कदम उठाते हुए अचानक टीटीई की नौकरी छोड़ दी और बाद में इंडिया ए के ट्रायल में भाग लिया। इसमें धोनी ने खूब छक्के जड़े और अपनी जगह पक्की कर ली।एमएस धोनी ने 2004 में कैन्या के (नैरोबी) में इंडिया-ए टीम से खेलते हुए 50 ओवर के टूर्नामेंट में 2 शतक लगाए थे। इसके बाद उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ भारत की मुख्य टीम में जगह मिली। बल्लेबाजी के लिहाज से धोनी के करियर की शुरूआत कुछ खास नहीं रही थी। अपने शुरूआती चार वनडे मैचों में माही बल्ले से कोई कमाल नहीं दिखा सके थे। इनमें से 3 बांग्लादेश और 1 मैच पाकिस्तान के खिलाफ हुआ था। 2004 में करियर के पहले वनडे मैच में तो वो शून्य पर रन आउट हो गए थे। हालांकि बाद में चौथे मैच में उन्होंने शतक जड़ा और उसके बाद वे नहीं रुके।
    लंबे बालों वाले निडर धोनी ने जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रख लिया और अपनी शुरुआत के एक साल के भीतर ही वनडे मैचों में 148 और 183 की धाकड़ पारियां खेलते ही लोगों के दिलों में जगह बना लीरांची जैसे छोटे शहर से निकलकर महानगरों में सिमटे क्रिकेट की चकाचौंध भरी दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाने वाले धोनीo ने युवाओं को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला दिया। सफलता के शिखर पर पहुंचने के बाद एक दिन अचानक टेस्ट क्रिकेट को उन्होंने यूं ही अलविदा कह दिया था जब वह टेस्ट मैचों का शतक बनाने से दस मैच दूर थे।
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