True Story About Sita Swayamvar
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- Опубліковано 25 тра 2024
- जय श्रीराम मित्रों
विदेहराज जनक की राजधानी आज नववधू की तरह सजी थी । और क्यों न हो ? वैदेही , जानकी ,
सिता का स्वयंवर जो होने जा रहा था । सभी देशोंके राजकुमारों को ससम्मान निमंत्रित किया गया
था । पण था जो वीर शिवधनुष्य उठाकर उसे प्रत्यंचा चढा देगा , सिताजी उसे वरमाला पहनाएगी ।
विराट शिवधनुष्य राज सभा मे रखा था । उसके दर्शन से ही बहुतसे राजकुमारों का धैर्य जवाब दे
गया । कुछ राजकुमारोंने हिंमत कर उसे उठाने का प्रयास किया पर धनुष टस से मस न हुवा ।
प्रत्यंचा चढाना तो दूर , वे उसे हिला भी नही पाये । तभी ब्रम्हर्षी विश्वामित्र का आशिर्वाद लेकर
श्रीराम आगे आये । सिताजी ने मानो उन्हे देखतेंही वर लिया था । पर उन्हे आशंका होने लगी ।
इतने महाबली राजाओंसे धनुष न हिला तो यह मोहक कुमार कैसे इसे उठा पायेगा । धनुष के समीप
आकर रामजी ने उसे प्रणाम किया । फिर जैसे कोई फुलोंकी माला उठाए ऐसी सहजता से धनुष
उठा लिया । सभा साधू साधू के स्वर से गुँज उठी । प्रत्यंचा चढाने के लिए श्रीराम ने धनुष को थोडा
मोडने की कोशिश की , भयंकर ध्वनी के साथ धनुष दो टुकडोंमे टूटकर जमीन पर गिरा । तालियों
से सभा मे हर्षोल्हास की लहर छा गयी । शरमाते हुए , मंद कदमोंसे सिता जी श्रीराम के समीप आयी
उन्हे वरमाला पहनाकर वर लिया ।
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