🔴LIVE | SB 1.5.6 | Hg Chaitanya Sangi Das Prabhuji | 18.09.2024 | ISKCON Rukmani Vihar | Vrindavan

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  • Опубліковано 5 жов 2024
  • ŚB 1.5.6
    स वै भवान् वेद समस्तगुह्य-
    मुपासितो यत्पुरुष: पुराण: ।
    परावरेशो मनसैव विश्वं
    सृजत्यवत्यत्ति गुणैरसङ्ग: ॥ ६ ॥
    sa vai bhavān veda samasta-guhyam
    upāsito yat puruṣaḥ purāṇaḥ
    parāvareśo manasaiva viśvaṁ
    sṛjaty avaty atti guṇair asaṅgaḥ
    Synonyms
    saḥ - thus; vai - certainly; bhavān - yourself; veda - know; samasta - all-inclusive; guhyam - confidential; upāsitaḥ - devotee of; yat - because; puruṣaḥ - the Personality of Godhead; purāṇaḥ - the oldest; para-avara-īśaḥ - the controller of the material and spiritual worlds; manasā - mind; eva - only; viśvam - the universe; sṛjati - creates; avati atti - annihilates; guṇaiḥ - by the qualitative matter; asaṅgaḥ - unattached.
    Translation
    My lord! Everything that is mysterious is known to you because you worship the creator and destroyer of the material world and the maintainer of the spiritual world, the original Personality of Godhead, who is transcendental to the three modes of material nature.
    Purport
    A person who is cent-percent engaged in the service of the Lord is the emblem of all knowledge. Such a devotee of the Lord in full perfection of devotional service is also perfect by the qualification of the Personality of Godhead. As such, the eightfold perfections of mystic power (aṣṭa-siddhi) constitute very little of his godly opulence. A devotee like Nārada can act wonderfully by his spiritual perfection, which every individual is trying to attain. Śrīla Nārada is a cent-percent perfect living being, although not equal to the Personality of Godhead.
    " हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे "
    #iskcon iskconvrindavan #iskcon #vrindavan #srilaprabhupada #srisriradhagovinda #gaura #nitai

КОМЕНТАРІ • 7

  • @snehalpradhan1248
    @snehalpradhan1248 18 днів тому +1

    Hare Krishna.dandavat pranam prabhuji.very nice preaching.🙏🏻🙏🏻

  • @DharmendraKumar-ih4sl
    @DharmendraKumar-ih4sl 18 днів тому +2

    Always remember Krishna never forget Sri radhe Krishna g 🙏

  • @desigeetmala1306
    @desigeetmala1306 18 днів тому

    Hare krisna prabhuji

  • @SushilKumar-m7z8i
    @SushilKumar-m7z8i 18 днів тому

    Ati sundar prabhu ji ❤🙏

  • @upadh0149
    @upadh0149 18 днів тому

    Jay ho

  • @harivani6412
    @harivani6412 18 днів тому

    Jai Shree Krishna Ji Maharaj Shree Ji.❤❤

  • @DharmendraKumar-ih4sl
    @DharmendraKumar-ih4sl 18 днів тому

    पितृपक्ष आज से शुरू हो रहे है. भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन(क्वार) माह कृष्णपक्ष की अमावस्या 16 दिवस को पितृपक्ष कहते है इसे 16 श्राद्ध भी कहते है. पितरों का पृथ्वी पर आगमन कर जल आहार ग्रहण करना व परिवार को आशिर्वाद देना पितृपक्ष है. यहां पितृ से आशय जैसे मनुष्य योनि, देव योनि ठीक वैसे ही पितृ योनि से है. इसका कथित 'पितृसत्तात्मकता' से कोई लेना देना नही है.
    आपके मन मे यह प्रश्न कभी ना कभी उठता होगा कि अश्विन माह में ही पितृपक्ष क्यों मनाया जाता है. चूंकि सनातन में सबकुछ तर्क और लॉजिकल है. यहां आंख मूंदकर अंधविश्वास जैसा कुछ नही है. यहां सभी परम्पराओ के पीछे कुछ ना कुछ आधार है. शास्त्रोनुसार पितृलोक को चंद्रमा के दक्षिण में 22° पर कहीं माना जाता है. विज्ञान अनुसार अश्विन माह के कृष्णपक्ष में चन्द्रमा की दूरी पृथ्वी के सबसे निकट होती है. अतः पितरों का चंद्रमा से पृथ्वीलोक हेतु आगमन का यही सबसे उपयुक्त समय होता है. वेदों में पितरों के निवास की दिशा दक्षिण मानी गई है जिसमें महाश्वान व हीनश्वान का जिक्र है. अब जरा गूगल कीजिए केनिस माइनर व केनिस मेजर पढ़िए. वेदों के श्लोक व विज्ञान के केनिस माइनर मेजर तारे पढ़कर आपका मन अपने पूर्वजों के प्रति गर्व से भर उठेगा कि उन्हें खगोल व अंतरिक्ष विषय का कितना गहरा ज्ञान था. ना केवल ज्ञान था अपितु उसे व्यवहारिक रुप में परम्पराओ में ढालकर अपनाया भी जाता था.
    पुनः पितृपक्ष विषय पर लौटते है. आपके मन में उठ रहे एक और प्रश्न का उत्तर लीजिए कि श्राद्धपक्ष तिथिअनुसार ही क्यों मनाए जाते है. जब आप इसका उत्तर पाएंगें तो आपका मन ऋषिमुनियों का ज्ञान जानकर रोमांचित हो उठेगा. पितृलोक व पृथ्वी की समय गणना अलग अलग होती है.
    पितृलोक का 1 दिन= पृथ्वी का 1 वर्ष लगभग.
    पितृलोक का 1 घण्टा= पृथ्वी के 15/16 दिन.
    पितृलोक का 4 मिनट= पृथ्वी का 1 दिन.
    पितृलोक का "दरवाजा" अश्विन माह के कृष्णपक्ष में केवल 1 घण्टे के लिए खुलता है जो कि पृथ्वी पर 15/16 दिन के बराबर है. किसी परिवार के पितृ को पृथ्वी पर रुकने के लिए केवल 4 मिनट का समय ही मिलता है जो कि पृथ्वी पर 1 दिन के बराबर है. यह 4 मिनट का समय तिथिअनुसार तय होता है इसलिए व्यक्ति की म्रत्यु पश्चात कुछ वर्ष उपरांत उसके तिथि मिलान की पूजा की जाती है. आज की भाषा में यह तिथि मिलान पूजा-पाठ पितृलोक का वह "वीजा" है जो आपके पूर्वजो की आत्मा को वर्ष में एकबार 4 मिनट हेतु आपके घर आकर जल आहार ग्रहण करने की अनुमति प्रदान करता है.
    पितृलोक का 1 दिन पृथ्वी पर 1 वर्ष बराबर होता है अतः पितृ श्राद्धपक्ष में जलपान ग्रहण कर वर्षभर के लिए तृप्त रहते है और आपको आशीर्वाद प्रदान करते है. यह जलपान उन्हें विधिपूर्वक श्राद्ध करने व मनुष्यों ब्राह्मणों पक्षी पशुओं को भोजन कराने से मिलता है. वे बड़ी आशा से पितृपक्ष में अपने परिवार के घर जाते है किंतु यदि श्राद्धपक्ष ना किया जाए तो उन्हे आहार नही मिलता जिससे वे दुखी होकर भूखे प्यासे श्राप भी दे सकते है. सोचिए जब किसी अनजान भूखे प्यासे मनुष्य की बद्दुआ इतनी कठोर लगती है तो आपके अपने पूर्वजों की आत्मा जो आपके कारण पूरे वर्ष भूख प्यास से तड़पनी है उसका श्राप कितना कठोर लगेगा. इसे पितृदोष भी कहा जाता है. पितृदोष के अनेक कारणों में से एक यह भी है.
    पितृ के नाराज होने से आपका अच्छा समय खराब हो जाता है. आपको कारण ही समझ नही आता. दशा महादशा सब अच्छी होकर भी गृह क्लेश ऐनवक्त पर काम बिगड़ना शादी ब्याह में देरी शुभ कार्यो में बाधा नौकरी व्यवसाय करियर में परेशानी बनी रहती है. अतः जैसा भी बने विधिपूर्वक श्राद्धपक्ष में पितरों को याद करें कुछ ना बने तो कुछ मीठा बनाकर दीपक जलाकर नैवेद्य बनाए व गाय कुत्ता कौंवा या जो मिले उसे खिलाए. वह भी ना बने तो कुछ फल मंदिर मे चढ़ा आये और पितरों का आह्वान कर जलपान ग्रहण करने का निवेदन करे व आशीर्वाद मांगे.
    अतः किसी की बातों में ना आकर इस तर्कपूर्ण वैज्ञानिकतापूर्ण और आपके पूर्वजो से जुड़ी परम्परा को अंधविश्वास मानने की भूल ना करें अपितु उन्हें पूर्ण तर्को से उत्तर देंवे. हीनभावना में आपको नही बल्कि उन लोगों को आना चाहिए जिन्हें ना शास्त्रो का ज्ञान है और ना ही विज्ञान का.
    पितरों को नमन कीजिए वे आपके साक्षात देवता है. शास्त्रों में पूर्वजो को देवतुल्य माना गया है. यह ऐसे देवता है जिनसे आपका बल्ड रिलेशन गौत्र रिलेशन है. सबसे पहले वे ही आपकी सुनते है. कहते है जिनके पुरखे प्रसन्न रहते है उस घर में सदैव खुशहाली रहती है.
    पितृदेव प्रसन्न रहे.
    Dharmendra Kumar