KUPIT YAGYASAINI | Vaishnavi Sharma | Satish Srijan- Poet | Part-1/5 | Bazm e Khas
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- Опубліковано 20 тра 2024
- "An extremely important episode from the Mahabharata that occurs after the game of dice, where Draupadi expresses her agony in the full court. This poem provides a glimpse into the insult and pain of the noblewoman Draupadi. This aggrieved Yajnaseni poem is written by Satish Srijan."
हे भीष्म पितामह, कुछ बोलो?
हे भीष्म पितामह कुछ बोलो
कुलवधू है तुम्हें पुकार रही
दुर्योधन जो व्यवहार किया ये
तुम सब को क्या लगा सही?
मेरा केश पकड़ कर लाया है,
करता दुशासन दुर्व्यवहार
आर्यों की सब माताओं ने
क्या नहीं दिया कोई संस्कार?
मैंने तो दांव नहीं खेला।
चौसर की शाही क्रीड़ा में
है दोष नहीं, जब कहीं मेरा
तो क्यों में ऐसी पीड़ा में?
संपत्ति ना मै किसी राजा की
जो हारे मुझको खेल जुआ
दादा तु तो निति प्रिय है
तब तू क्यों यू लाचार हुआ?
जब गंगा सुत कुछ कह ना सका
कृष्णे ने राजा से पूछा
दुर्योधन इतना दृष्ट है तो
सम्राट दंड है क्यों छू छा?
द्रोपदी ने बारी बारी से
प्रश्नों का ढेर लगा डाला
धृतराष्ट्र , विदुर और द्रोणा के
मानो मुह ऊपर हो ताला।
आखिर में बरसी पांडव पर
आखिर में बरसी पांडव पर
किस बूते पर हो मेरे पिया
कुछ कहो भतारों क्या सूझा
मुझको बाजी में लगा दिया!
मछली की आंख वेधना था
वो कर के ब्याह के लाये हो
अर्जुन गाण्डीव कहाँ गुम हैं
क्यों ऐसे शीश झुकाएं हो?
जब मीन चक्षु संधान किया
तब हृदय मेरा हर्षया था,
मन ही मन में आह्लादित थी
मनचाहा वर जो पाया था।
माँ कुंती ने मुझे बांट दिया
बन गए पति पांचों भाई
दुर्दशा देख ऐसी मेरी
तुम सब को लाज नहीं आयी।
मैं समझी थी बड़ भागन हूँ
रणवीरों की मैं सबला हूँ।
पर अब ऐसा लगता मुझको
डरपोकों की मैं अबला हूँ।
है गदा कहा? गांडीव कहा?
है गदा, कहा गांडीव कहाँ,
क्या जंग लगी तलवारों को?
सौ-सौ धिक्कार तुम्हें मेरा
धिक्कार तेरे हथियारों को।
अरे
घुंघरू बाँधो , चूड़ी पहनो,
गलियों में नाचो छम छम छम
नहीं बेचारी मुझ को समझो
नैहर से भाई बुलाये हम
हुआ पांचों का बल क्षीण तो क्या?
मेरे कृष्ण अकेले काफी हैं
उदंड नीच आताताई
को कभी न देते माफी है।
जो पता लगा मेरे वीरन को।
जो पता लगा मेरे वीरं को
क्षण भर ना देर लगाएंगे
नंगे पैरों हिरणागति से
मेरे वीर कन्हैया आएँगे !
नहीं भगिनी मैं लाचारो की
मधुसूदन मेरा भाई है
लगता दुशासन, दुर्योधन
तेरी मौत शीश पर आई है।
होती है भृकुटी वक्र जहाँ
, कोहराम वही मच जाता है,
केशव हथियार उठा ले तो
फिर काल भी ना बच पाता है।
जो आये भैया सभा मध्य।
यदि आये भैया सभा मध्य
तो कोई नहीं बच पाएगा
जब चक्रसुदर्शन घूमेगा,
सब मूली सा कट जाएगा।
न बने निपूती माँ तेरी..
ना बने निपूती माँ तेरी
कौरव सूत गण कुछ गौर करो
अतिशय अक्षम्य में अपराध किया
ना सर, मृत्यु का मौर धरो।
इतना सुन गरजा दुर्योधन।
इतना सूनते गरजा दुर्योधन,
दुशासन देर लगाओ न
निर्वस्त्र करो, पंचाली को
जंघा पर मेरी बिठाओ ना।
अग्रज की आज्ञा पाकर के
दुशासन पट को रहा खींच
द्रौपदी अधीर हुई मन में
साड़ी हाथों से रही भींच
कुछ ना सूझा तब टेर भरी
कुछ ना सूझा, तब टेर भरी
बोली, सुनिए मेरे गिरधारी,
अब कोई नहीं अतिरिक्त तेरे
प्रभु लाज रखो है लाचारी ।
कान्हा की शान निराली है।
कान्हा की शान निराली है
वो दौड़ें दौड़ें आते हैं
जब कोई आर्त पुकार करे
निर्मल का बल बन जाते हैं
था चक्रसुदर्शन चला दिया
जब गज टेर लगाई थी,
एक सेन नाई की खातिर बस
अपनी ठकुरी बिसराई थी
मुट्ठी भर तंदुल के बदले
दो लोग सुदामा पाया था,
एक बार पुरंदर के कारण
ऊँगली पर अचल उठाया था।
अब की द्रौपदी की बारी थी।
अबकी द्रौपदी की बारी थी,
रो रोकर कृष्ण पुकारी थी
हो गए रास्ते बंद सभी
अब अंतिम राह मुरारी थी।
हुए कृष्ण कृपालु कृष्णा पर।
हुए कृष्ण कृपालु कृष्णा पर
माधव जो करुण पुकार सुनी
जहाँ देखो, साड़ी ही साड़ी
धरती अम्बर तक चीर बुनी ।
अनवरत खींचता रहा चीर
पर छोड़ दूसरा पा न सका
हो गया चूर थककर लेकिन
साड़ी की थाह नहीं लगा सका।
था बहुत अचंभित दुःशासन
ये नारी है या साड़ी है?
द्रौपदी में हाड़ मांस भी है?
की सारी नारी साड़ी है।
मूर्छित होकर गिरा दुःशासन
मूर्छित होकर गिरा दुःशासन
निर्वस्त्र द्रौपदी कर न सका
दश साहस्त्र हस्त का बलशाली
शर्मिंदा था, बस मर न सका।
कभी याज्ञसैनी ने नटवर को
साड़ी का टुकड़ा बांधा था,
बदले में आज मुरारी ने
साड़ी में साड़ी नाधा था।
श्रीकृष्ण भाव के भूखे हैं।
श्री कृष्ण भाव के भूखे हैं,
भक्तों की श्रद्धा प्यारी है,
ऋण चुकता करते ब्याज सहित
माधव की लीला न्यारी है।
This baithak was held at the initiative of Ved Gupta founder of bazm e Khas foundation live concerts.
The idea behind this upload is to preserve this great treasure of live music produced by BeK for all the music lovers and students of Hindustani music.
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Hriday ko cheer denewali kavita hai.Hats off.Standing ovation for u.
Kya shuddh wani hai wah. 5000 wsrsh purv Ghatana ko samne dikha diya sirf apane shabd, awaz aur andaz se 🙏 Jai Shrikrishn.
Bahut sundar 👏👏👏👏👏👏👏❤️❤️
वाह अब बज़्म ऐ खास पर भी 🙏
क्या शब्द सौंदर्य हैं बहोत ही सुंदर
राधे राधे जी अप्रतिम वक्तृत्व
Amazing recitation. May God amply bless you my dear.
Wow your Voice is very impressive❤❤❤❤love you vaishnavi
Jai shree radhe krishana🙏🙏
Thankyou Maa Laxmi 🙏🙏🙏🙏
बहोत खुब ...
गज़ब मोहतरमा, वंदे मातरम ❤❤
Super video ❤❤🎉🎉🎉
आप हमेशा से ही अद्भुत रहे हो ❤❤❤🙏🙏
वाह बेटा ,बहोत ही सुंदर .
TUM BAHUT BADI KABITRI YE MERE TARAF SE BHGWAN SE DUWA HAI..........THANKS
जय हो
Last line ❤🔥🔥
बहुत सुंदर कविता कहने की शैलीभी अच्छी है।
It is better but first version is best....❤❤❤
𝐍𝐢𝐜𝐞😊
मुझे थोड़ा थोड़ा याद आ रहा है कि में सायद 9th में था जब एक दोहा सुना था और वो मुझे आज भी याद है । जो कुछ इस प्रकार है कि .....
साड़ी विच नारी है की नारी विच साड़ी है।
साड़ी की ही नारी है कि नारी की ही साड़ी है।।
और यह दोहा आज समझ आया की यह कहाँ से और कैसे आया, और इसका क्या मतलब है।
🙏 👌
Par iske liye blouse utarne ki kya zarurat thi?