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धवाला पुस्तक ७ स्पर्शन प्ररुपणा नाना जीव की अपेक्षा देवगति और इन्द्रिय मार्गणा पृष्ठ 389-400
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धवला ७ इन्द्रिय मार्गणा नानाजीव की अपेक्षा शेत्र
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धवला ७ पृष्ठ २२८-२३९ एक जिव की अपेक्षा अंतरानुगम और नाजीव की अपेक्षा भंगविचय प्रतम तिन मार्गणा
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लेश्या मार्गणा से आहार मार्गणा मे एक जीव की अपेक्षा अंतर और नाना जिव की अपेक्षा भंग विचय
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धवाला पुस्तक 7 तिर्यञ्च मनुष्य और देव गति मै एक जीव की अपेक्षा अन्तर
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बहुत अच्छा विषय है
1:36 8:36
Jai jinedra
वंदना भैय्याजी
Karna nahi aata🎉😮
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
गौतम बुद्ध सामने तो मंत्रशुद्ध अशुद्ध
जय जिनेन्द बहुत ही अच्छे से सरल करके समझाया
Jai jinendrangondal 🙏🙏🙏
बहुत सुन्दर गोष्ठी संपन्न हुई
Jai jinendra vashi
यहा पे कृष्ण लेश्या की कोई विशेषाता नहीं है, आप ओघ में भी देख लो, अन्य मार्गणाओं में भी देख लो, सब जगह आचार्य देव ने पांचों निद्राओं को निरंतर बंधी ही बताया है।
जय जिनेद्र पंडित जी।
नियम यह है कि:- 1) जिस मिथ्याद्रष्टी नारकी के तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता नहीं होगी वो जीव अपर्याप्त अवस्था में मनुष्य गति और तिर्यंच गति दोनों का बंध कर सकता है। 2) जिस मिथ्याद्रष्टी नारकी के तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता होगी वो जीव अपर्याप्त अवस्था में एक मात्र मनुष्य गति का ही बंध करेंगा।
वीरसेन आचार्य द्वारा लिखी गयी बात: तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता वाला मिथ्याद्रष्टी नारकी मनुष्य गति का ही बंध करता है। वीरसेन आचार्य ने तो सिर्फ इतना सा ही बोल था। जिस मिथ्याद्रष्टी नारकी के तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता नहीं होगी वो जीव अपर्याप्त अवस्था में तिर्यंच गति का ही बंध करता है, यह बात वीरसेन आचार्य ने नहीं बोली है, आप पूरी धवला पुस्तक नं 8 देख लो, कही पे भी आपको यह वाली line लिखी हुयी नहीं मिलेंगी, यह बात तो आपने अपनी ओर से जोडी हैं।
जय जिनेंद्र पंडित जी। 19:08 पे आप यह जो statement बोल रहे है कि जिस मिथ्याद्रष्टी नारकी के तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता ना हो वो जीव अपर्याप्त अवस्था में तिर्यंच गति का ही बंध करता है, मनुष्य गति का नहीं यह बात गलत है। महाबंध पुस्तक नं 7 के अनुसार चौथी, पांचवीं और छठवीं पृथिवी के नारकी भी अपर्याप्त अवस्था में मनुष्य गति और तिर्यंच गति दोनों का बंध कर सकते हैं। यहां पे ध्यान रखने योग्य बात है कि चौथी, पांचवीं और छठवीं पृथिवी में जन्म के समय मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है और ना ही उनके तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता होती है। कुल मिलाके तात्पर्य यह है जिस मिथ्याद्रष्टी नारकी के तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता ना हो वो जीव अपर्याप्त अवस्था में मनुष्य गति और तिर्यंच गति दोनों का बंध कर सकता हैं
mahabandh pustak no. 7 ke anusar 4th, 5th aur 6th prithvi ke narki aparyapt awastha me manushya gati aur tiryanch gati dono bandh sakte he. ye jinagam ki sarv prasidhh baat he ki 4th se lekar 6th prithvi ke sabhi jeevo ke niyam se teerthankar prakirti ki satta hoti hi nahi he. kul milakar tatparya ye he ki jis mithyadrishti narki ke teerthankar prakirti ki satta na ho vo jeev aparyapt awastha me manushya gati aur tiryanch gati dono bandh sakte he.
1:15:26 pandit ji apko galat yaad he. rule ye tha ki jis mithyadrashti narki ke teerthankar prakirti ki satta na ho vo jeev manushya gati aur tiryanch gati dono bandh sakta he. Jis mithyadrashti narki ke teerthankar prakirti ki satta na ho vo jeev ek matra manushya gati hi bandhta he tiryanch gati nahi.
jai jinendra pandit ji
सादर जय जिनेन्द्र
👏👏👏
Jai jinendra
चक्षु दर्शन और अचक्षु दर्शन की बहुत सुन्दर चर्चा।
चक्षु, अच्क्षु दर्शन की सुन्दर चर्चा।
गुना
बहुत सुंदर चर्चा
बहुत सुन्दर चर्चा
बहुत सुन्दर चर्चा भगवान् महावीर स्वामी जी के मोक्ष कल्याण की । जय जिनेन्द्र🙏💕
Guna
Guna
,🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏
Jai jinendra pandit ji
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏
मार्दवम् धर्म की बहुत सुन्दर चर्चा। जय जिनेन्द्र
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏
Yeh delete kar de aap
जय जिनेन्द्र
समयसार की बहुत सुन्दर चर्चा।
Bahut Sundar 🙏
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏
'promo sm' 😢
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏
Dhavlaji ke civay some ganral Sidhant
Jai jinendra Pune 🙏🙏🙏🙏🙏
No
Aavaj Aa rahi hai but Granth nahi dikhay deraha hai