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qalamkaar
Приєднався 16 чер 2021
Jawab-e-Shikwa With Hindi Meanings || Allama Iqbal ||जवाब ए शिकवा हिंदी अर्थ के साथ||अल्लामा इक़बाल
Meanings of Difficult Words Credit :
iqbalurdu.blogspot.com/2013/07/bang-e-dra-120-explanation-of-jawab-e.html?m=1
&
Rekhta Dictionary
Poetey Lines Credit :
www.rekhta.org/nazms/javaab-e-shikva-dil-se-jo-baat-nikaltii-hai-asar-rakhtii-hai-allama-iqbal-nazms?lang=hi
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है
ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है
इश्क़ था फ़ित्नागर ओ सरकश ओ चालाक मिरा
आसमाँ चीर गया नाला-ए-बेबाक मिरा
पीर-ए-गर्दूं ने कहा सुन के कहीं है कोई
बोले सय्यारे सर-ए-अर्श-ए-बरीं है कोई
चाँद कहता था नहीं अहल-ए-ज़मीं है कोई
कहकशाँ कहती थी पोशीदा यहीं है कोई
कुछ जो समझा मिरे शिकवे को तो रिज़वाँ समझा
मुझ को जन्नत से निकाला हुआ इंसाँ समझा
थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या
अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या
ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या
आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं
शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
इस क़दर शोख़ कि अल्लाह से भी बरहम है
था जो मस्जूद-ए-मलाइक ये वही आदम है
आलिम-ए-कैफ़ है दाना-ए-रुमूज़-ए-कम है
हाँ मगर इज्ज़ के असरार से ना-महरम है
नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों को
बात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को
आई आवाज़ ग़म-अंगेज़ है अफ़्साना तिरा
अश्क-ए-बेताब से लबरेज़ है पैमाना तिरा
आसमाँ-गीर हुआ नारा-ए-मस्ताना तिरा
किस क़दर शोख़-ज़बाँ है दिल-ए-दीवाना तिरा
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने
हम तो माइल-ब-करम हैं कोई साइल ही नहीं
राह दिखलाएँ किसे रह-रव-ए-मंज़िल ही नहीं
तर्बियत आम तो है जौहर-ए-क़ाबिल ही नहीं
जिस से तामीर हो आदम की ये वो गिल ही नहीं
कोई क़ाबिल हो तो हम शान-ए-कई देते हैं
ढूँडने वालों को दुनिया भी नई देते हैं
हाथ बे-ज़ोर हैं इल्हाद से दिल ख़ूगर हैं
उम्मती बाइस-ए-रुस्वाई-ए-पैग़म्बर हैं
बुत-शिकन उठ गए बाक़ी जो रहे बुत-गर हैं
था ब्राहीम पिदर और पिसर आज़र हैं
बादा-आशाम नए बादा नया ख़ुम भी नए
हरम-ए-काबा नया बुत भी नए तुम भी नए
वो भी दिन थे कि यही माया-ए-रानाई था
नाज़िश-ए-मौसम-ए-गुल लाला-ए-सहराई था
जो मुसलमान था अल्लाह का सौदाई था
कभी महबूब तुम्हारा यही हरजाई था
किसी यकजाई से अब अहद-ए-ग़ुलामी कर लो
मिल्लत-ए-अहमद-ए-मुर्सिल को मक़ामी कर लो
किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है
हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है
तब-ए-आज़ाद पे क़ैद-ए-रमज़ाँ भारी है
तुम्हीं कह दो यही आईन-ए-वफ़ादारी है
क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं
जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं
जिन को आता नहीं दुनिया में कोई फ़न तुम हो
नहीं जिस क़ौम को परवा-ए-नशेमन तुम हो
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
हो निको नाम जो क़ब्रों की तिजारत कर के
क्या न बेचोगे जो मिल जाएँ सनम पत्थर के
सफ़्हा-ए-दहर से बातिल को मिटाया किस ने
नौ-ए-इंसाँ को ग़ुलामी से छुड़ाया किस ने
मेरे काबे को जबीनों से बसाया किस ने
मेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया किस ने
थे तो आबा वो तुम्हारे ही मगर तुम क्या हो
हाथ पर हाथ धरे मुंतज़िर-ए-फ़र्दा हो
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर
अदल है फ़ातिर-ए-हस्ती का अज़ल से दस्तूर
मुस्लिम आईं हुआ काफ़िर तो मिले हूर ओ क़ुसूर
तुम में हूरों का कोई चाहने वाला ही नहीं
जल्वा-ए-तूर तो मौजूद है मूसा ही नहीं
मंफ़अत एक है इस क़ौम का नुक़सान भी एक
एक ही सब का नबी दीन भी ईमान भी एक
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
फ़िरक़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
कौन है तारिक-ए-आईन-ए-रसूल-ए-मुख़्तार
मस्लहत वक़्त की है किस के अमल का मेआर
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
नाम लेता है अगर कोई हमारा तो ग़रीब
पर्दा रखता है अगर कोई तुम्हारा तो ग़रीब
उमरा नश्शा-ए-दौलत में हैं ग़ाफ़िल हम से
ज़िंदा है मिल्लत-ए-बैज़ा ग़ुरबा के दम से
वाइज़-ए-क़ौम की वो पुख़्ता-ख़याली न रही
बर्क़-ए-तबई न रही शोला-मक़ाली न रही
रह गई रस्म-ए-अज़ाँ रूह-ए-बिलाली न रही
फ़ल्सफ़ा रह गया तल्क़ीन-ए-ग़ज़ाली न रही
मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहे
यानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे
शोर है हो गए दुनिया से मुसलमाँ नाबूद
हम ये कहते हैं कि थे भी कहीं मुस्लिम मौजूद
वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूद
ये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो
Background Music Credit :
Solemn Choral Piece No. 1 by Steven O'Brien | www.steven-obrien.net/
Music promoted by www.chosic.com/free-music/all/
Creative Commons CC BY-ND 4.0
creativecommons.org/licenses/by-nd/4.0/
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Poetey Lines Credit :
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दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है
ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है
इश्क़ था फ़ित्नागर ओ सरकश ओ चालाक मिरा
आसमाँ चीर गया नाला-ए-बेबाक मिरा
पीर-ए-गर्दूं ने कहा सुन के कहीं है कोई
बोले सय्यारे सर-ए-अर्श-ए-बरीं है कोई
चाँद कहता था नहीं अहल-ए-ज़मीं है कोई
कहकशाँ कहती थी पोशीदा यहीं है कोई
कुछ जो समझा मिरे शिकवे को तो रिज़वाँ समझा
मुझ को जन्नत से निकाला हुआ इंसाँ समझा
थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या
अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या
ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या
आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं
शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
इस क़दर शोख़ कि अल्लाह से भी बरहम है
था जो मस्जूद-ए-मलाइक ये वही आदम है
आलिम-ए-कैफ़ है दाना-ए-रुमूज़-ए-कम है
हाँ मगर इज्ज़ के असरार से ना-महरम है
नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों को
बात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को
आई आवाज़ ग़म-अंगेज़ है अफ़्साना तिरा
अश्क-ए-बेताब से लबरेज़ है पैमाना तिरा
आसमाँ-गीर हुआ नारा-ए-मस्ताना तिरा
किस क़दर शोख़-ज़बाँ है दिल-ए-दीवाना तिरा
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने
हम तो माइल-ब-करम हैं कोई साइल ही नहीं
राह दिखलाएँ किसे रह-रव-ए-मंज़िल ही नहीं
तर्बियत आम तो है जौहर-ए-क़ाबिल ही नहीं
जिस से तामीर हो आदम की ये वो गिल ही नहीं
कोई क़ाबिल हो तो हम शान-ए-कई देते हैं
ढूँडने वालों को दुनिया भी नई देते हैं
हाथ बे-ज़ोर हैं इल्हाद से दिल ख़ूगर हैं
उम्मती बाइस-ए-रुस्वाई-ए-पैग़म्बर हैं
बुत-शिकन उठ गए बाक़ी जो रहे बुत-गर हैं
था ब्राहीम पिदर और पिसर आज़र हैं
बादा-आशाम नए बादा नया ख़ुम भी नए
हरम-ए-काबा नया बुत भी नए तुम भी नए
वो भी दिन थे कि यही माया-ए-रानाई था
नाज़िश-ए-मौसम-ए-गुल लाला-ए-सहराई था
जो मुसलमान था अल्लाह का सौदाई था
कभी महबूब तुम्हारा यही हरजाई था
किसी यकजाई से अब अहद-ए-ग़ुलामी कर लो
मिल्लत-ए-अहमद-ए-मुर्सिल को मक़ामी कर लो
किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है
हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है
तब-ए-आज़ाद पे क़ैद-ए-रमज़ाँ भारी है
तुम्हीं कह दो यही आईन-ए-वफ़ादारी है
क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं
जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं
जिन को आता नहीं दुनिया में कोई फ़न तुम हो
नहीं जिस क़ौम को परवा-ए-नशेमन तुम हो
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
हो निको नाम जो क़ब्रों की तिजारत कर के
क्या न बेचोगे जो मिल जाएँ सनम पत्थर के
सफ़्हा-ए-दहर से बातिल को मिटाया किस ने
नौ-ए-इंसाँ को ग़ुलामी से छुड़ाया किस ने
मेरे काबे को जबीनों से बसाया किस ने
मेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया किस ने
थे तो आबा वो तुम्हारे ही मगर तुम क्या हो
हाथ पर हाथ धरे मुंतज़िर-ए-फ़र्दा हो
क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर
शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर
अदल है फ़ातिर-ए-हस्ती का अज़ल से दस्तूर
मुस्लिम आईं हुआ काफ़िर तो मिले हूर ओ क़ुसूर
तुम में हूरों का कोई चाहने वाला ही नहीं
जल्वा-ए-तूर तो मौजूद है मूसा ही नहीं
मंफ़अत एक है इस क़ौम का नुक़सान भी एक
एक ही सब का नबी दीन भी ईमान भी एक
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
फ़िरक़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं
क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं
कौन है तारिक-ए-आईन-ए-रसूल-ए-मुख़्तार
मस्लहत वक़्त की है किस के अमल का मेआर
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
नाम लेता है अगर कोई हमारा तो ग़रीब
पर्दा रखता है अगर कोई तुम्हारा तो ग़रीब
उमरा नश्शा-ए-दौलत में हैं ग़ाफ़िल हम से
ज़िंदा है मिल्लत-ए-बैज़ा ग़ुरबा के दम से
वाइज़-ए-क़ौम की वो पुख़्ता-ख़याली न रही
बर्क़-ए-तबई न रही शोला-मक़ाली न रही
रह गई रस्म-ए-अज़ाँ रूह-ए-बिलाली न रही
फ़ल्सफ़ा रह गया तल्क़ीन-ए-ग़ज़ाली न रही
मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहे
यानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे
शोर है हो गए दुनिया से मुसलमाँ नाबूद
हम ये कहते हैं कि थे भी कहीं मुस्लिम मौजूद
वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूद
ये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो
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Solemn Choral Piece No. 1 by Steven O'Brien | www.steven-obrien.net/
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Beshaq Beshaq Beshaq Subhan Allah Alhamdulillah Allahu Akbar 😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢
❤
इकबाल एक पढ़ा लिखा आतंकवादी था....देश के विभाजन में इसका बहुत योगदान रहा
amazing 😍 Ali
Thank you very much Mahzabeen 🙏🙏🙏🙏
Bahut badiya ❤❤
❤❤❤❤❤
Thanks bhii
❣️❣️❣️🔥🔥🔥
Thank you Bhai.. mai bhut din se is nazm ko samjhna chahta tha
Jawab-e-Shikwa ka lambe waqt se intezaar tha😍😍😍
What was the thought of Sir Ammama Iqbal Sahab really samajh se pare hai......
hindi me meaning samjhne ke baad 😩❤️
Sir Ji ek video jawab-e-shikwa ke upar aur banaa dijiye Hindi me ..
Jald hi upload hoga
जिहादी सोच वाला देश
Solace voice ❤️
Please upload jawab e shikwa 🙏
Sure, It will be soon
Abe, p.hd. Kar le is pe...
Jawab e shikwa upload ho gya hai
Alhumdulilah
❤️❤️❤️❤️
@@qalam_kaar7974 sukrana Allah aapko barqat de
Bahut shukriya bhai
Allahu Akbar ❤️❤️
Beshak
I don't like this Voice ...... Need different voice...
I had made some vedio in my voice..you may watch them
❤️❤️❤️🌹🌹👍👍
Thank you bhai❤️❤️❤️❤️
Kitni bhi baaar sun lo Dil nahi bharta ❤️❤️
❤️❤️❤️❤️
Mai kab se ye dhoond raha tha par mujhe mill nahi raha tha ... Thankyou 🙏🙏 Hindi matlab ke saath vedio bnaane ke kiye
Thank you bhai
Aala👌👌
❤️❤️❤️
अल्लामा इक़बाल शहाब ज़बरदस्त कलाम
👌
mashaAlhall
Thank you
SubhanAllah
Thank you bhai
Mashallah
Thank you Safat
❤️❤️❤️❤️🔥🔥
Thank you ❤️❤️❤️
Informative and nice video
Thank you ❤❤❤
👌👌👌👌👌👌👌👌
Thank you
ua-cam.com/video/sjD-EF4Cp-A/v-deo.html
Wahh wahhh What a wonderful ghazal 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥
Thank you Bhai
Super 🧡
Thanks
Super voice ,keep moving dear
Thank you❤️
Super , sound is safe and sound
MaSha Allah... Behtareen...
Bhut bhut shukriya aap ke positive comments ke liye
Sweet sound.
Thank you 💗
Good job ❤️❣️
Bahut khub ❣️
Thank you
Stealing my heart your words
❤️❤️❤️
Kya khub kaha hai sahab aapne
Thank you for your comments
Dr Israr Ahmads voice is best on this poem. Try that
Sahi kha Zoya... Mane first time unka hi clip dekha tha... Tabhi mane ye vedio bnya.... I am big fan of him
Good going bro
Thank you bro❤️
Suraj 💚💛💜
❤️❤️❤️
Awsome 👍👍
Thank you bro
Good job👍
Thank your positive vibe
Super and motivational
U always inspire ud 🙏🙏🙏