JK Prem Ras
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पिय! मोल अमोलक लीजिये (ये बात मान कर अपना जन्म सफल कर लो अन्यथा पछताना पड़ेगा) || Braj Parikari Didi
प्रेम रस मदिरा
सिद्धांत-माधुरी (पद क्रमांक 63)
रचयिता एवं संगीत - जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
स्वर - सुश्री ब्रज परिकरी देवी जी
पिय मोल अमोलक लीजिये।
अस अवसर फिर नाहिँ मिलैगो, बातन मोर पतीजिये।
बनन चहत जो अमर-सुहागिनि, तन-मन-प्रानन दीजिये।
दै सरबस लै प्रेम-सुधा-रस, तेहि रस महँ नित भीजिये।
पुनि तेहि रसहिं पिवाइय औरहिं, आपुहुँ सोइ रस पीजिये।
जनम कृपालु'सफल कर लीजिय,क्यों कर? निज कर मीजिये।।
भावार्थ- अरी सखि! अनमोल श्यामसुन्दर को मोल ले ले। मानव-देह प्राप्ति-रूपी ऐसा स्वर्ण अवसर फिर नहीं मिलेगा। मेरी बात पर विश्वास कर ले। यदि तू अनन्त-काल के लिए अमर सुहागिन बनना चाहती है, तो उन्हीं श्यामसुन्दर को सदा के लिए अपना सर्वस्व दे दे। प्राकृत, तन, मन आदि देकर अनन्त काल के लिए दिव्य प्रेमानन्द का आस्वादन कर। फिर उसी प्रेमानन्द को स्वयं पीते हुए औरों को भी पिलाती जा। 'कृपालु' कहते हैं कि उपर्युक्त बात मान कर अपना जन्म सफल कर ले अन्यथा पछताना पड़ेगा।
श्रीमद् सदगुरु सरकार की जय 🙏🌷🌺🌹
श्रीमद् सदगुरु सरकार की जय 🙏🌷🌺🌹
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नाथ ! अब भटकत थकि गये पाम || Nath Ab Bhatakat Thaki Gaye Paam || Braj Parikari Didi Ji
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कहाँ हरि! सोये हमरिहिं बार (दैन्य माधुरी कीर्तन) Soye Hamarihi Baar Kaha Hari || Braj Parikari Didi
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प्रेम रस मदिरा दैन्य-माधुरी (पद क्रमांक 26) रचयिता एवं संगीत - जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज स्वर - सुश्री ब्रज परिकरी देवी जी कहाँ हरि! सोये हमरिहिं बार। पतित पुकार सुनत ही धावत, नेकु न लावत बार। कारण रहित कृपालु सदा ते, जानत तोहिं संसार। कैसेहुँ पतित शरण टुक आये, राखत चरण मझार। पतितन ही सों प्यार करत नित, अस कह संत पुकार। पुनि अति पतित 'कृपालु' पेखि कत, उर निष्ठुरता धार॥ भावार्थ- हे श्या...
अहो हरि! तुम मम साहूकार | Aho Hari! Tum Mam Sahukar | Braj Parikari Didi Ji
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जेंवत मम सद्गुरु सरकार, गावो मिलि साधक जन जेंवनार (भोग गीत) || Braj Parikari Didi Ji
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राधे अधाधुंध दरबार रटे जा राधे-राधे ( ब्रज रस माधुरी अद्भुत कीर्तन ) || Braj Parikari Didi Ji
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हमारो धन, राधे जू को नाम (Radha Naam Mahima) Hamaro Dhan Radhe Ju Ko Naam || Braj Parikari Didi Ji
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धन्य प्रेम गोपीजन त्रिभुवन, पूरण ब्रह्म जासु भरमावत ( Gopi Prem Mahima ) || Braj Parikari Didi Ji
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One of the very first bhajans composed by Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj प्रेम रस मदिरा प्रकीर्ण-माधुरी (पद क्रमांक - १) रचयिता एवं संगीत - जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज स्वर - सुश्री ब्रज परिकरी देवी जी अपनापन रखना, मेरे घनश्याम। घड़ी-घड़ी पल-पल नाम तिहारो, रटे मेरी रसना मेरे घनश्याम। लली-लाल दोउ दै गरबाहीं, हमारे हिये बसना, मेरे घनश्याम। भाव-हिँडोरे डारि हिये में, झुलावूँ नित झुलना, मेर...
गुरुः कृपालुर्मम शरणं, वंदेऽहं सद्गुरुचरणम् Guru Mero Kripalu Subhag Hamaro || Braj Parikari Didi
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ब्रज रस माधुरी (भाग १) रचयिता एवं संगीत - जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज स्वर - सुश्री ब्रज परिकरी देवी जी गुरुः कृपालुर्मम शरणं, वंदेऽहं सद्गुरुचरणम्। मंगलमपि मंगल करणं, वंदेऽहं सद्गुरुचरणम्। माया मोहजाल हरणं, वंदेऽहं सद्गुरुचरणम्। त्रिगुण-त्रिताप - पाप हरणं, वंदेऽहं सद्गुरुचरणम्। मायिक भवसागर तरणं, वंदेऽहं सद्गुरुचरणम्। कृपया पंचकोश जरणं, वंदेऽहं सद्गुरुचरणम्। मायिक पंचक्लेश हरणं, वंदेऽहं...
अहो पिय! जब तुम्हरी बनि जैहौं (Beautiful Dainya Madhuri Kirtan) Aho Piya! Jaba Tumhari Bani Jaihaun
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दीनानाथ मोहिं काहे बिसारे (दैन्य माधुरी कीर्तन) Deenanath! Mohi Kahe Bisare || Braj Parikari Didi Ji
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जाउँ गुरु, चरण कमल बलिहार | Jaun Guru Charan Kamal Balihaar | Guru Mahima || Raseshwari Devi Ji
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